UN में इस वजह से भारत ने डाला अमेरिका और इजराइल के खिलाफ वोट
नई दिल्ली। येरुशलम को इजराइल की राजधानी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में हुई वोटिंग में 128 देशों ने इसका विरोध किया, जिसमें भारत भी शामिल था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा येरुशलम को इजराइली राजधानी की मान्यता देने के बाद यूएन में वोटिंग हुई थी, जिसके पक्ष में सिर्फ 9 देशों ने वोट किया। अमेरिका और इजराइल के साथ भारत के बेहतर रिश्ते होने के बावजूद भी नई दिल्ली ने यूएन में अमेरिका और इजराइल के खिलाफ वोट किया, सभी को चौंका दिया। हालांकि, यूएन में अमेरिका-इजराइल के खिलाफ वोटिंग को लेकर भारत की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन कई ऐसे कारण है जिस वजह से मोदी सरकार को येरुशलम मामले में अपना मत स्पष्ट करना पड़ा है।
ओआईसी के साथ भारत के स्ट्रैटजिक रिलेशन
हाल ही में इस्तानबुल में ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation) की मीटिंग हुई थी, जिसमें यूएस द्वारा येरुशलम को इजराइल की राजधानी बताए जाने का जमकर विरोध हुआ। इस मीटिंग में ओआईसी के सभी देशों ने ट्रंप के 6 दिसंबर वाले इजराइल मामले को लेकर विरोध करने की सहमति बनी। बता दें कि ओआईसी के सभी 57 देशों के साथ भारत के रिश्ते बहुत अच्छे हैं। ओआईसी के कई देशों के साथ जिसमें ईरान, सऊदी अरब और यूएई के साथ भारत के स्ट्रैटजिक रिलेशन है और नई दिल्ली इन देशों के साथ अपने रिश्तों बिल्कुल भी खराब नहीं करना चाहता है।
पश्चिम एशिया में स्वतंत्र विदेश नीति
इजराइल और फिलीस्तीन मुद्दे पर भारत की विदेश नीति हमेशा स्थिर रही है। हालांकि, भारत बहुत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इजराइल के साथ विदेश नीति से फिलीस्तीन पर कोई सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव ना पड़े। नई दिल्ली ने इन दोनों देशों के साथ हमेशा एक डिप्लोमेटिक रिलेशन साधने की कोशिश करती रही है। इस साल पीएम मोदी ने इजराइल की भी यात्रा की थी, लेकिन फिलीस्तीन मुद्दे पर भारत दोनों देशों के बीच एक स्थिर नीति बनाने की ही कोशिश की। भारत ने अपने इस कदम (यूएन में अमेरिका-इजराइल के खिलाफ वोट) से स्पष्ट करना भी चाहा है कि वे पश्चिमी एशिया नीति के मामले में पूरी तरह स्वतंत्र है।
येरुशलम पर भारत की राय
इस साल सितंबर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की मीटिंग हुई थी, जिसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जोर देते हुए कहा था येरुशलम मामला पूरी तरह से इजराइल-फिलीस्तीन की आपसी सहमति पर टिकी है। 1967 में अरब देशों के साथ छह दिन तक चले युद्ध में इजराइल ने येरुशलम का पूर्वी हिस्सा भी जीत लिया था, जिस पर जॉर्डन का राज था। हालांकि, ओआईसी और फिलीस्तीन नेशनल ऑथोरिटी ने पूर्वी येरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी घोषित कर दिया। फिलहाल, पूर्वी येरुशलम को लेकर इजराइल और फिलीस्तीन के बीच विवाद अपने चरम पर है। हालांकि, यूएन में अमेरिका के विपक्ष में वोट देकर भारत ने येरुशलम मामले में अपना मत स्पष्ट किया है, जो लंबे समय से चलता आ रहा है।