ब्लॉगः आपके ब्वॉयफ़्रेंड से पड़ोसी को क्यों है दिक़्कत?
निजी ज़िंदगी में दूसरों की दख़लंदाज़ियां कितना असर डालती हैं, दिव्या आर्य का ब्लॉग.
याद है जब घर में आप अकेली थीं और ब्वॉयफ़्रेंड को बुलाया. पर बगल में रहने वाली आंटी ने मम्मी से चुगली कर दी.
या जब मामा जी ने मम्मी से कहा, 'बेटा 28 साल का हो गया है अब तक तो शादी हो जानी चाहिए थी', और मम्मी ने वही चाहत आपके भाई को एक बार फिर सुना दी.
और तब जब क्लास के टॉपर के पापा ने पैरन्ट्स टीचर मीटिंग में कहा था, 'मेरी बेटी तो आईआईटी जाएगी, वैसे आपकी बेटी का थिएटर में करियर बनाने का प्लान थोड़ा जोख़िम भरा नहीं है? '
और पापा ने वही सवाल आपको दाग दिया था.
कितना दख़ल करते हैं ना सब? ख़ास तौर पर जब बचपन से जवानी की सीढ़ी चढ़ते हैं तो लगता है ये सारे दख़ल मानो नीचे गिराने पर तुल जाते हैं.
ज़िंदगी में वो व़क्त होता है अपने फ़ैसले ख़ुद लेने का पर उंगलियां इतना दबाव बनाती हैं कि मत पूछिए.
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रिश्तेदार क्या सोचते हैं?
अभी हाल में ही बॉलीवुड हीरोइन कंगना रनौत से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि, 'मंडी (जहां वो पैदा हुईं) से मुंबई (जहां उन्होंने अपना करियर बनाया) आने पर वहां के लोग कैसे लगे?'
कंगना ने कहा कि मंडी जैसे छोटे शहरों में रहने वाले लोग इस बात से बहुत परेशान रहते हैं कि उनकी बुआ, मौसी, रिश्तेदार वगैरह उनके बारे में क्या सोचते हैं.
मुंबई जैसे बड़े शहर में चिंताएं बदल जाती हैं, परेशानी इस बात से होती है कि कितने पैसे कमाए और उससे क्या ख़रीद पाए.
आपने दोनों में से कौन सी चिंता झेली है?
मोबाइल पर खेला जाने वाला एक गेम, 'नग्गेट' भी उंगलियों के ज़रिए कुछ ऐसा ही 'चैलेंज' सामने रखता है.
'बीबीसी मीडिया एक्शन' और यूनीसेफ़ की ओर से बने इस गेम में वास्ता पड़ता है 'उंगली आंटी', 'ताक-झांक पड़ोसी', 'फेंकू अंकल', और 'शो ऑफ़ दोस्त' जैसे किरदारों से.
जीत होती है इन सब उंगलियों से बचकर आगे बढ़ने में.
हर 'केयर' दखलंदाज़ी नहीं
गेम का संदेश है तरह-तरह के दबाव से बचकर अपने फ़ैसले करने और निभाने की हिम्मत रखने का.
पर क्या सारी उंगलियां और उनकी नीयत बुरी होती है?
जैस जब आपकी बहन का अपने पति से झगड़ा हुआ तो चिल्लाने और थप्पड़ की आवाज़ सुनकर उनकी पड़ोस की आंटी ने उनके घर की घंटी बजाई.
पूछा, 'ठीक हो'? और आपकी बहन का सूजा हुआ मुंह देखकर, उसके जवाब, 'हां, सब ठीक है', को दरकिनार कर आपको बताने के लिए फ़ोन किया.
या जब पापा ने आपके पढ़ने की पसंद को समझकर चार नए विषयों के बारे में बताया और पहले इसे दबाव और दख़लअंदाज़ी जानकर आपने उन्हें कोने में रख दिया.
पर बाद में ध्यान से पढ़कर अपने लिए एक नया रास्ता खोज लिया.
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वहां अस्तित्व गुम, यहां सरोकार
कंगना ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि मंडी और मुंबई के उनके दोनों अनुभव 'एक्सट्रीम' हैं.
मंडी में अपना अस्तित्व खो जाता है और मुंबई में अपनापन और सरोकार.
उंगलियां बुरी हैं या अच्छी, ये तो आपका अनुभव ही तय करेगा.
पर ये जान लें कि मुट्ठी तो पांचों उंगलियों से ही बनती है, कला इसमें है कि कब किसको कितना मोड़ने से ताकत मिलेगी और कब दर्द.
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