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क्या है गुजरात के विकास की हकीकत और क्यों कांग्रेस को 2 दशक बाद भी नहीं मिली सत्ता

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नई दिल्ली। गुजरात में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने 22 सालों के बाद एक बार फिर से लगातार छठी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है उसने कांग्रेस की उम्मीदों पर एक बार फिर से पानी फेर दिया है। जिस तरह से कांग्रेस ने इस बार गुजरात के चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकी और पाटीदार आंदोलन की आड़ में यहां भाजपा को सत्ता से बाहर फेंकने के लिए तमाम उधार के नेताओं के सहारा लिया वह उसे काफी हद तक महंगा पड़ा। कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव एक ऐसा मौका था जहां वह 22 साल के भाजपा शासन से लोगों के भीतर उपजे असंतोष को अपने पक्ष में भुना सकती थी, लेकिन गुजरात के विकास को पूरी तरह से दरकिनार करके जाति, धर्म और समुदाय के आधार पर भाजपा से भिड़ना काफी हद तक भारी पड़ा।

क्यो है गुजरात में भाजपा का दबदबा

क्यो है गुजरात में भाजपा का दबदबा

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल पर नजर डालें तो यहां विकास के तकरीबन हर पैमाने पर भाजपा खरी उतरती है। गुजरात में विकास के आंकड़ों पर नजर डालें तो गुजरात देश में एकमात्र ऐसा प्रदेश है जिसकी अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था की तुलना में कही अधिक और लगातार बढ़ी है। देश की औसत आर्थिक विकास दर से गुजरात की औसत आर्थिक विकास की तुलना करें तो 2005-06 से 2011-12 के बीच गुजरात का विकास 9.9 फीसदी की दर से बढ़ी 2012-13 से 2015-16 के बीच गुजरात की विकास दर 8.9 रही। वहीं इस अवधि में देश की विकास दर 6.9 फीसदी रही। प्रति व्यक्ति आय पर अगर नजर डालें 22 साल के दौरान भाजपा के कार्यकाल में गुजरात की प्रति व्यक्ति आय 13665 रुपए से 141504 रुपए हो गई है।

नरेंद्र मोदी और गुजरात

नरेंद्र मोदी और गुजरात

गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य रहा है और यहां के विकास को नरेंद्र मोदी ने दुनिया को एक अलग नक्शे पर पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। नरेंद्र मोदी ने ना सिर्फ कच्छ के रण को 2001 के भूकंप के बाद वापस बसाया, बल्कि यहां 2005 में तीन दिन चलने वाले रण उत्सव को तीन दिन की बजाए तीन महीने तक लगातार मनाया गया, इसके साथ ही वाइब्रैंट गुजरात के जरिए प्रदे को एक अलग पहचान और विकास के रास्ते पर बढ़ाने का श्रेय मोदी का जाता है। गुजरात के विकास को ना सिर्फ गुजरात के लोग बल्कि देशभर के लोग स्वीकार करते हैं और इसी की वजह से गुजरात को एक अलग पहचान मिली।

कांग्रेस की लगातार हार

कांग्रेस की लगातार हार

वहीं अगर कांग्रेस पर नजर डालें तो वर्ष 2014 के बाद लगातार कांग्रेस का जनसमर्थन देशभर में कम हुआ है, एक के बाद एक कांग्रेस को 2014 के बाद तमाम चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है। वर्ष 2014 में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की इतिहास में सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा और पार्टी सिर्फ 44 सीटों पर सिमटकर रह गई। जिस तरह से एक के बाद एक लगातार घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप यूपीए सरकार पर लगे उसने कांग्रेस की छवि को पूरी तरह से धूमिल करके रख दिया।

उधार के नेता पर भरोसा, अपनों ने डुबाई लुटिया

उधार के नेता पर भरोसा, अपनों ने डुबाई लुटिया

जिस तरह से कांग्रेस बगैर नेता और विजन के चुनावी मैदान में उतरी और उसने दूसरे नेताओं के सहारे यहां चुनाव जीतने की कोशिश की उसने पार्टी की उम्मीदों पर 22 साल बाद एक बार फिर से पानी फेरा। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, ,जिग्नेश जैसे नेताओं के सहारे गुजरात का रण जीतने की कोशिश की जिनकी ना तो कांग्रेस की विचारधारा से समहति थी और ना ही उन्हें कांग्रेस की ओर से नेता घोषित किया गया था। कांग्रेस को गुजरात के चुनावों में जो सबसे बड़ा झटका लगा वह यह कि उसके खुद के दिग्गज नेता ही चुनाव हार गए, जिसके चलते पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।

गुजरात के विकास पर हमला पड़ा भारी

गुजरात के विकास पर हमला पड़ा भारी

गुजरात के विकास को कांग्रेस ने लोगों के सामने कमतर आंकने की लगातार कोशिश की गुजरात मॉडल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। गुजरात में कांग्रेस ने जाति और समुदाय के आधार पर अपना चुनावी अभियान चलाया और प्रधानमंत्री के खिलाफ जमकर हमले किए और उनके खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल किया गया, जिसके चलते गुजराती अस्मिता को लेकर भाजपा ने जमकर कांग्रेस पर निशाना साधा और इसे गुजराती अस्मित से जोड़ दिया।

कांग्रेस की रणनीति

कांग्रेस की रणनीति

गुजरात में काफी हद तक कांग्रेस पाटीदार आंदोलन पर निर्भर थी, वह लोगों मे एक संदेश भेजना चाहती थी कि गुजरात में तमाम समुदाओं में असंतोष है, समाज में लोगों में नाराजगी है। कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन का समर्थन किया, यहां यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि पटेल समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा की समर्थक रही है, ऐसे में कांग्रेस यह चाहती थी कि वह पाटीदारों के समर्थन को भाजपा से अलग कर सकती है। कांग्रेस को इस बात की भी उम्मीद थी कि कालाधन को खत्म करने के लिए उसने नोटबंदी और जीएसटी जैसे जो कदम उठाए गए उसकी वजह से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, ऐसे में यह दोनों मुद्दे उसके लिए मददगार साबित होंगे।

भाजपा ने कांग्रेस के रणनीति को किया ढेर

भाजपा ने कांग्रेस के रणनीति को किया ढेर

लेकिन इससे इतर पाटीदार आंदोलन प्रदेशभर में हुआ जिसे शांत करने में भाजपा सरकार ने काफी हद तक सफलता हासिल की। पाटीदार आंदोलन के बावजूद भी पटेलों के एक गुट ने भाजपा को अपना समर्थन दिया। मतदान के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस की तमाम उम्मीदों को बड़ा आघात पहुंचा और कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग विफल हो गई। पाटीदार, आदिवासी और ओबीसी ने भाजपा को अपना मत दिया, यहां तक कि व्यापारी वर्ग ने भी भाजपा को अपना समर्थन दिया। भाजपा को व्यापारियों के गढ़ सूरत में 16 में से 14 सीटों पर जीत मिली तो आदिवासी इलाकों में भी उसे अच्छे मत मिले और पार्टी की सीटों में बढ़ोतरी हुई। भाजपा को एक बार फिर से सूरत और मेहसाणा में जीत मिली।

शहरी-ग्रामीण इलको में भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा

शहरी-ग्रामीण इलको में भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा

ग्रामीण और शहरी इलाकों पर नजर डालें तो यहां भी भाजपा काफी हद तक सफल हुई है, मतदान के आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा को ग्रामीण और शहरी इलाकों में वोट मिला, हालांकि कुछ ग्रामीण इलाकों में भाजपा को कुछ नुकसान जरूर हुआ है। ग्रामीण इलाकों में भाजपा तकरीबन 50 फीसदी समर्थन हासिल करने में सफल हुई, जहां राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि कांग्रेस को समर्थन मिलेगा और भाजपा को नुकसान होगा। ऐसे में अगर गुजरात चुनाव के नतीजों को मोटे तौर पर देखा जाए तो लोगों में भाजपा को लेकर कुछ असंतोष जरूर था लेकिन उनका लगाव भाजपा से खत्म नहीं हुआ था। भाजपा को चुनाव में कुल 49 फीसदी मत हासिल हुए और पिछले चुनाव की तुलना में उसका मत 1.5 फीसदी बढ़ा। वहीं कांग्रेस की हार इस बात को साफ करती है कि गुजरात के लोगों ने उसकी राजनीति को नकार दिया है।

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English summary
Why Gujarat proved to be a big failure for Congress against BJP mega strategy. Congress own strategy has hit back.
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