झारखंड की इन औरतों को क्यों चुभता है अफ़ग़ानिस्तान
उनसे मिलने के बाद प्रमिला देवी ने बताया कि मुख्यमंत्री ने भी उनके अपहृत पति का पता जल्दी ही लगाने की बात कही थी, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
प्रवासी समूह के संचालक सिकंदर अली और बगोदर पश्चिम के मुखिया लक्ष्मण महतो ने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में अपहरण के बावजूद इस इलाक़े से मज़दूरों का पलायन नहीं रुका है. यहां बेरोज़गारी बड़ी समस्या है और लोग अभी भी अफ़ग़ानिस्तान जा रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में अज्ञात बंदूकधारियों ने इसी साल 6 मई को भारतीय मजदूरों का अपहरण किया गया था. इनमें से चार लोग झारखंड के हैं.
इनमें बगोदर प्रखंड के घाघरा गांव निवासी प्रकाश महतो, प्रसादी महतो, महूरी गांव के हुलास महतो और टाटीझरिया प्रखंड के बेडम गांव निवासी काली महतो शामिल हैं.
ये सभी अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय उद्योगपति हर्ष गोयनका के स्वामित्व वाली कंपनी केइसी इंटरनेशनल के लिए काम करते थे.
विदेश मंत्री के हस्तक्षेप के बाद कंपनी ने अगवा किए गए मज़दूरों के परिजनों को वेतन देना शुरू कर दिया है. हालांकि परिजनों को मीडिया से बात नहीं करने की हिदायत दी गई है.
अपहरण के तुरंत बाद कंपनी ने इस प्रकरण पर आज तक अपना आधिकारिक पक्ष नहीं रखा है.
केइसी इंटरनेशनल आरपी गोयनका (आरपीजी) समूह की कंपनी है जिसे अफ़ग़ानिस्तान में बिजली की ट्रांसमिशन लाइन लगाने का ठेका मिला हुआ है. वहां काम करने के लिए झारखंड के कई लोग अफ़ग़ानिस्तान गए हैं. इनमें से अधिकतर लोग बगोदर के हैं.
छह महीने पहले हुआ अपहरण
भारत और अफ़ग़ानिस्तान की सरकारें अपहरण के छह महीने बाद भी इनका पता नहीं लगा सकी हैं. इस कारण इनके परिजन हताश हैं.
मुलिया देवी प्रसादी महतो की पत्नी हैं और वो महीनों से अपने पति के आने का इंतज़ार कर रही हैं. इनकी बेटी ने इसी साल दसवीं की परीक्षा पास की है. मुलिया देवी कहती हैं कि उनकी बेटी ने पढ़ाई छोड़ दी है.
मुलिया देवी कहती हैं, ''हमलोग ग़रीब हैं. मेरे पति इसलिए परदेस गए कि चार पैसा कमा कर बच्चों को ठीक से पढ़ाएंगे-लिखाएंगे. अब उनका पता ही नहीं चल रहा है. हमलोग कैसे ज़िंदा रहें. किस पर भरोसा करें. कौन वापस लाएगा मेरे पति को. अब तो पता ही नहीं चलता कि सरकार उन्हें छुड़ाने के लिए कुछ कर भी रही है या नहीं. मुझे मेरे पति से मिलवा दीजिए.''
आंदोलन करेंगे ग्रामीण
प्रसादी महतो के गांव के ही संतोष रजक इस मसले पर मोदी सरकार ने निराश हैं. उनका कहना है कि सरकार अफ़ग़ानिस्तान पर दबाव नहीं बना पा रही है.
महुरी गांव के हुलास महतो अफ़ग़ानिस्तान में अगवा भारतीय मज़दूरों में से एक हैं. यहां उनकी पत्नी प्रमिला देवी की हालत ख़राब होती जा रही है. वो पति के ग़म में ठीक से खा-पी भी नहीं रही हैं. उन्होंने बताया कि बच्चे जब पापा के बारे में पूछते हैं, तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता.
काम न आया विदेश मंत्री का आश्वासन
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपहरण के 40 दिन बाद अगवा किए गए मज़दूरों में से तीन की पत्नियों और प्रसादी महतो के बेटे से दिल्ली में मुलाक़ात की थी.
घाघरा गांव के प्रकाश महतो की पत्नी चमेली देवी उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल थीं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि विदेश मंत्री ने एक महीने के अंदर सभी का पता लगा लेने का आश्वासन दिया था.
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी पिछले महीने इन मज़दूरों में से कुछ की पत्नियों से रांची में मुलाक़ात की थी. रघुवर दास ने इन्हें एक-एक लाख रुपए की मदद देने की घोषणा की थी, लेकिन यह पैसा अभी तक नहीं मिला है.
उनसे मिलने के बाद प्रमिला देवी ने बताया कि मुख्यमंत्री ने भी उनके अपहृत पति का पता जल्दी ही लगाने की बात कही थी, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
प्रवासी समूह के संचालक सिकंदर अली और बगोदर पश्चिम के मुखिया लक्ष्मण महतो ने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में अपहरण के बावजूद इस इलाक़े से मज़दूरों का पलायन नहीं रुका है. यहां बेरोज़गारी बड़ी समस्या है और लोग अभी भी अफ़ग़ानिस्तान जा रहे हैं.
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