भाजपा सांसद से बहुत नाराज मतदाता भी उसी को क्यों देना चाहते हैं वोट?
नई दिल्ली- कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ सीट पर बीजेपी को हमेशा से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा मिला है। लेकिन, इसबार बालाकोट और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों ने उसकी सियासी जमीन और मजबूत कर दी है। यही कारण है कि पिछले 13 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी जब एक चुनावी रैली को संबोधित करने के लिए मैंगलोर एयरपोर्ट पर उतरे, तो वहां से 15 किलोमीटर दूर नेहरू मैदान तक सड़क पर समर्थकों का हुजूम उमड़ आया। मोदी-मोदी के नारे लगा रहे उत्साही समर्थकों को देखकर खुद मोदी ने रैली में इसका जिक्र कर कहा भी था, "यह भगवा समंदर है.....मैं रास्ते में ये सोचकर हैरान था, कि यहां कोई होगा क्या, क्योंकि इतने सारे लोग तो सड़क पर ही कतार लगाकर खड़े थे..." लेकिन, मोदी की इस लोकप्रियता में जो एक शख्स नजरअंदाज हो रहे थे, वे हैं दक्षिण कन्नड़ सीट से बीजेपी के दो बार के सांसद नलिन कुमार कातील। क्षेत्र में उनकी अलोकप्रियता के चर्चे आम हैं। लेकिन, बीजेपी के समर्थक फिर से उन्हें वोट डालने के लिए तैयार हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इसका कारण क्या है?
नाराजगी नजरअंदाज क्यों करना चाहते हैं लोग?
दक्षिण कन्नड़ सीट पर 18 अप्रैल को वोटिंग है। अबतक अपने स्थानीय सांसद से नाराज रहे भाजपा समर्थक अब फिर से उन्हें वोट देने का मन बना चुके हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक जब वहां लोगों से यह सवाल पूछा गया कि वे अपने मौजूदा सांसद से इतने नाराज हैं, तो फिर उन्हें वोट क्यों देना चाहते हैं? इसपर एक ऑटो ड्राइवर कृष्णा पुजारी का जवाब हैरान कर देने वाला था। उसने कहा, "यह सांसद बेकार का आदमी है, लेकिन लोग मोदी को वोट देने जा रहे हैं।" वो आगे कहता है, "अगर बच्चे भी वोट डाल सकते, तो वो मोदी को ही वोट देते।" माना जा रहा है कि इस इलाके में पहले से ही मजबूत भारतीय जनता पार्टी की सियासी जमीन बालाकोट और पाकिस्तान के साथ विवाद से और बेहतर हो गई है। यानी मौजूदा सांसद कातील की 2014 के मोदी लहर की तरह ही फिर से एकबार लोकसभा में पहुंचने की संभावना बन रही है। आशा नायक नाम की एक वरिष्ठ वकील बताती हैं, कि "युवाओं के दिमाग में मोदी को लेकर एक अजीब लगाव है। वे उनपर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं।"
हालांकि, बावजूद इसके सांसद की अलोकप्रियता के चलते इलाके में भाजपा के आधार खिसकने को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। कातील को फिर से टिकट दिए जाने को लेकर नाराजगी जताते हुए संघ के एक संगठनकर्ता कहते हैं, "अगर कैडर के हित का ध्यान नहीं रखा गया तो एक नया राइट-विंग फोर्स उभर सकता है।" वे ये भी कहते हैं कि शुरू में वे चाहते थे कि कातील का समर्थन न करें। उनके मुताबिक, "जब शुरुआती अनुमानों में बताया गया कि मोदी 300 से ज्यादा सीटें जीतेंगे,तो हमनें कातील को सबक सिखाने का सोच लिया था। लेकिन नए अनुमान में आंकड़े कम बताए जा रहे हैं, तब हमने अपना मन बदल लिया।"
सांसद से क्यों है नाराजगी?
इलाके के मौजूदा सांसद नलिन कुमार के खिलाफ पार्टी कैडर में नाखुशी खुलेआम महसूस की जा रही है। संघ परिवार के एक पुराने संगठनकर्ता कहते हैं, "यहां जाति के आधार पर बंटवारा है, कातील के काम को लेकर नाखुशी है, कार्यकर्ताओं में भी उनके खिलाफ नाराजगी है, लेकिन देशहित, हिंदुत्व और मोदी के चलते ये सारी चीजें किनारे रहने वाली हैं।" वहीं मैंगलोर यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रोफेसर राजाराम तोलापैडी इससे सहमति जताते हुए कहते हैं, "आरएसएस के एक वर्ग में दक्षिण कन्नड़ और उडुपी के बीजेपी उम्मीदवार को लेकर गहरी नाराजगी है, लेकिन आखिरकार वे नरेंद्र मोदी को ही सपोर्ट करेंगे।" बीजेपी सांसद को भी अपनी अलोकप्रियता का अहसास है। हालांकि, वे इसे प्रोपेगेंडा बताने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि, "मैंने मैंगलोर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाया और घरों में पाइप से गैस पहुंचाई। पिछले साल के सर्वे में दक्षिण कन्नड़ के सासंद को अटेंडेंस एवं सेंट्रल स्कीम के इस्तेमाल के लिए सबसे बेहतर सांसद घोषित किया गया।"
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ध्रुवीकरण का किला
दक्षिण कन्नड़ में आरएसएस (RSS) की 40,000 से ज्यादा शाखाएं चलती हैं। इसके कार्यकर्ता चुनाव के दिन बूथ पर पार्टी के लिए मुस्तैदी से डटे रहते हैं, जो बीजेपी के पक्ष में जाता है। संघ परिवार के एक पुराने संगठनकर्ता कहते हैं कि, "देश में बहुत सी नीतियां पश्चिम से लाई गई हैं...इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री और होमोसेक्सुअलिटी के पक्ष में फैसला दिया है। इस तरह की चीजों को इजाजत कैसे दी जा सकती है? मोदी के कुछ और साल पश्चिम की इस सोच को बदल सकती है।" सामाजिक कार्यकर्ता विद्या दिनकर इलाके में बीजेपी-आरएसएस की सक्रियता के बारे में कहते हैं, कि कई वर्षों में ऐसी विचारधारा दिमाग में बिठा दी गई है, जो अब फायदेमंद साबित हो रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 20 साल में पहलीबार इस क्षेत्र में बीजेपी का सफाया हो गया था, क्योंकि तब कर्नाटक की बीजेपी सरकार से नाराज होकर संघ परिवार चुनाव से दूर हो गया था। बीजेपी से संघ की यह दूरी 2014 में भी थी, लेकिन तब मोदी लहर ने सबकुछ मिटा दिया। पिछले साल विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण के सहारे पार्टी ने फिर से यहां की 8 में 7 सीटों पर कब्जा कर लिया। इसलिए, मौजूदा चुनाव में तो पार्टी की राह और भी आसान मानी जा रही है। बीजेपी के इसी प्रभाव का असर है कि यहां पर कांग्रेस के युवा उम्मीदवार मिथुन राय को भी जगह-जगह जाकर कहना पड़ रहा है कि, "मैं हिंदू हूं..." अलबत्ता वे थोड़ा सॉप्ट हिदुत्व की मार्ग पर चलने की बात जरूर करते हैं। हालांकि, इसके चलते उनके मुस्लिम वोट छिटकने का भी खतरा है, क्योंकि इलाके में प्रो-मुस्लिम एसडीपीआई (SDPI) भी रेस में उतर आई है।