ये मुसलमान दुर्गा पूजा क्यों मनाते हैं?
कोलकाता के खेदिरपुर की मुंशीगंज बस्ती में रहने वाले मोहम्मद अली ये बात बहुत सहज होकर कहते हैं. मोहम्मद अली कहते हैं, "अब देखिए, ये हिंदू है और मैं मुसलमान है. ये दुर्गा माँ को मानता है. मैं अल्लाह को मानता हूँ. अब एक बात सोचो कि क्या कभी अल्लाह और दुर्गा माँ के बीच झमेला सुना है. बताइए...सुना है क्या? नहीं. कभी नहीं सुना.
"मैं मुसलमान हूं. ये हिंदू है. मैं इसके साथ दुर्गा पूजा मनाता हूँ. ये मेरे साथ ईद मनाता है. अब आप सोचेंगे कि ऐसा क्यों है?"
कोलकाता के खेदिरपुर की मुंशीगंज बस्ती में रहने वाले मोहम्मद अली ये बात बहुत सहज होकर कहते हैं.
मोहम्मद अली कहते हैं, "अब देखिए, ये हिंदू है और मैं मुसलमान है. ये दुर्गा माँ को मानता है. मैं अल्लाह को मानता हूँ. अब एक बात सोचो कि क्या कभी अल्लाह और दुर्गा माँ के बीच झमेला सुना है. बताइए...सुना है क्या? नहीं. कभी नहीं सुना. अरे, जब उनके बीच झमेला नहीं होता तो हम यहां धरती पर आपस में झगड़ा क्यों करें?"
कोलकाता के खेदिरपुर की मुंशीगंज बस्ती में रहने वालों का दावा है कि वे बीते 70 सालों से लगातार दुर्गा पूजा मनाते आए हैं.
दुर्गा पूजा मनाने वाले अब्दुल अली बताते हैं, "हम यहां हर साल दुर्गा पूजा मनाते आए हैं. यहां पर मुस्लिम हिंदू कुछ नहीं है. हम सब लोग मिलजुलकर सारे काम करते हैं."
कोलकाता की इस बस्ती में अब शाम के 10-11 बजने को आए हैं. लोग अपने घरों की ओर रवाना होने लगे हैं. कभी वामपंथी राजनीति के गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में बीते कुछ सालों से हिंदुत्ववादी ताक़तों का उभार होता दिख रहा है.
पश्चिम बंगाल के आसनसोल, रानीगंज, पुरुलिया या 24 परगना में धार्मिक तनाव के कुछ मामले सामने आए थे. पिछले कई मामलों में ये देखा गया है कि सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में झूठी ख़बरों और भड़कीले बयानों ने बड़ी भूमिका अदा की.
लेकिन जब सात सौ लोगों की आबादी वाली इस बस्ती में लोगों से सवाल किया गया कि क्या उन पर इस तरह के बयानों और अफ़वाहों का असर नहीं होता.
इसके जवाब में इसी इलाके में रहने वाले विकास बताते हैं, "एक बात मैं जानता हूं कि इस बस्ती में कभी हिंदू-मुस्लिम झगड़ा नहीं हुआ. और अल्लाह ने चाहा तो कभी होगा भी नहीं. लेकिन हम पैदा होने के बाद से यहीं रह रहे हैं. एक-एक आदमी को जानते हैं. प्यार से भी रहते हैं. झगड़े भी करते हैं. ये तो आम बात है. लेकिन ये साफ़ है कि कभी यहां हिंदू-मुस्लिम झगड़ा नहीं हुआ. और नही बस्ती के झगड़े में कोई धार्मिक एंगल नहीं आया."
वहीं, मौजूद प्रेम शुक्ला बताते हैं कि अख़बार, टीवी चैनल और मोबाइल पर आए वीडियो पर भरोसा करें कि अपने देखे और भोगे को.
वह कहते हैं, "हमारी इतनी पढ़ाई नहीं हुई है कि हम बड़ी-बड़ी बातें समझ सकें. लेकिन इतना समझते हैं कि सुबह उठो तो मजे में रहो और शाम भी मजे में दोस्तों के साथ हंसते-खेलते हुए बीते."
इसी बीच इस बस्ती में रहने वाली कोयनूर बेगम दुर्गा पूजा पंडाल से गुजरते हुए दुर्गा जी की मूर्ति के सामने सिर झुकाने के बाद हमसे मिलती हैं.
कोयनूर बेगम से जब हमने पूछा कि क्या धार्मिक मान्यताओं के लिहाज़ से मूर्ति पूजा उनके लिए ग़लत नहीं है.
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "ये बताइए कि जब हमारा सड़क पर एक्सीडेंट होता है, सिर से खून बहना लगता और हमें ख़ून की ज़रूरत होती है तो क्या धार्मिक मान्यताओं को देखकर खून लेते हैं. क्या कभी ये देखते हैं कि हिंदू का खून लेना चाहिए या मुस्लिम का खून लेना चाहिए?"