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दिल्ली वालों को क्यों भाता है बिजली-पानी का मुद्दा?

पिछले कुछ दिनों में बीजेपी ने आक्रामक चुनाव प्रचार और शाहीन बाग जैसे मुद्दे को उठाकर चुनावी परिदृश्य बदल दिया है. अरविंद केजरीवाल अभी तक बिजली-पानी और शिक्षा व्यवस्था की बात कर रहे थे और सीएए और शाहीन बाग पर कुछ कहने से बच रहे थे. लेकिन बीजेपी ने बार-बार राष्ट्रवाद और शाहीन बाग की बात करके आम आदमी पार्टी को काफ़ी हद तक असहज किया है.

By कमलेश
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PRADEEP GUAR/MINT VIA GETTY IMAGES

'बिजली का बिल ज़ीरो है, पानी का बिल ज़ीरो, केजरीवाल हीरो है'... '200 यूनिट बिजली मुफ़्त', '300 यूनिट बिजली मुफ़्त'...

इसी तरह के नारे और वादे आजकल दिल्ली में खूब सुनाई दे रहे हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव नज़दीक आते-आते बिजली-पानी दिल्ली की आबोहवा में ऐसे छाए कि प्रदूषण, सड़क, शिक्षा और अवैध कॉलोनियों जैसे मुद्दे कहीं हवा ही हो गए.

आम आदमी पार्टी ने बिजली-पानी को चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया.

अगस्त, 2019 में दिल्ली सरकार ने बिजली की 200 यूनिट मुफ़्त देने की घोषणा की थी यानी कि 200 यूनिट तक खर्च करने पर बिजली का बिल ज़ीरो आएगा.

बिजली मुफ़्त देने का वादा

पिछले कुछ महीनों में लोगों के बिजली बिल ज़ीरो भी आए हैं. इसके एक महीने बाद सितंबर में उन्होंने 'मुख्यमंत्री किराएदार मीटर योजना' की घोषणा कर दी थी.

अब आलम ये है कि कांग्रेस और बीजेपी ने भी लोगों को बिजली मुफ़्त देने का वादा किया है.

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 300 यूनिट तक बिजली मुफ़्त देने का वादा किया है. इससे ज़्यादा यूनिट्स के इस्तेमाल पर भी सब्सिडी दी जाएगी.

पानी की बात करें तो इस समय दिल्ली सरकार 20 हज़ार लीटर तक पानी मुफ़्ते दे रही है.

वहीं, कांग्रेस ने भी इसी तरह की छूट देने का वादा किया है. पानी में कैशबेक की व्यवस्था भी की गई है.

बीजेपी नेता मनोज तिवारी
Getty Images
बीजेपी नेता मनोज तिवारी

भ्रष्टाचार का मुद्दा

बीजेपी भी अपने चुनावी भाषणों में बार-बार बिजली-पानी में मिल रही मौजूदा छूट को बनाए रखने की बात कह रही है.

बिजली-पानी का मुद्दा पिछले विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण रहा था.

जब आम आदमी पार्टी ने राजनीति में कदम रखा तो उसने बिजली-पानी को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला.

पार्टी ने दिल्ली में महंगे बिजली बिलों और भ्रष्टाचार का मसला उठाया.

राजधानी दिल्ली जिसे बार-बार वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने की बात होती है, जहां लोग उच्च शिक्षा और नौकरी की तलाश में आते हैं, जहां प्रदूषण, परिवहन, महिला सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था जैसे मसले समय-समय पर उठते रहते हैं लेकिन चुनाव आते ही बिजली-पानी दिल्ली वालों के लिए सबसे अहम क्यों हो जाते हैं?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
EPA
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

सार्वजनिक बनाम निजी फ़ायदे

इसके कारणों में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह मानते हैं कि लोगों के लिए कोई भी वो मुद्दा महत्व रखता है जो उनके निजी फायदे से जुड़ा हो.

प्रदीप सिंह कहते हैं, "सड़क, प्रदूषण ऐसा मुद्दा है जिससे सार्वजनिक तौर पर लाभ होगा. इसका फायदा सीधे तौर पर निजी ज़िंदगी में नहीं दिखाई देगा. लेकिन, बिजली-पानी का बिल ऐसी चीज़ है जिसे लोगों को हर महीने भरना पड़ता है. इसका असर उनके बजट पर पड़ता है. इसलिए ये मुद्दे लोगों को हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं."

"बिजली में ही स्ट्रीट लाइट की बात करेंगे तो उसका उतना असर नहीं होगा बशर्ते कि वो किसी खास इलाक़े में एक बड़ी समस्या न बन गया हो या ट्रैफ़िक जाम की बहुत बड़ी दिक्कत हो या सड़क पर गड्ढे हों जिससे रोज आने-जाने में परेशानी होती है, तो वो जनता का मुद्दा बन सकता है."

"लेकिन, दिल्ली में फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है. इसलिए सार्वजनिक और निजी हित की जब बात होती है तो मतदाता निजी हित को ही तरजीह देता हैं. जब निजी हित का एजेंडा पूरा हो जाता है तब दूसरे मुद्दों की तरफ़ देखते हैं."

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन इसके पीछे दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे को एक बड़ी वजह बताते हैं.

वोटर आईडी दिखाती महिलाएं
Getty Images
वोटर आईडी दिखाती महिलाएं

रेवेन्यू सरप्लस वाला राज्य

अरविंद मोहन ने बताया कि प्रशासन के मामले में दिल्ली सरकार के जिम्मे बहुत कम काम हैं. क़ानून व्यवस्था, ज़मीन जैसी कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां केंद्र सरकार के हवाले हैं वहीं, सड़क, पार्क और साफ-सफाई के काम नगर निगम के पास हैं, तो ऐसे में दिल्ली सरकार के पास जनता को देने और परफॉर्म करने के लिए बहुत कम चीज़ें हैं.

"दूसरे राज्यो में ऐसा नहीं है, वहां राज्य के हाथ में बहुत कुछ होता है. दिल्ली रेवेन्यू सरप्लस वाला राज्य है यानी यहां खर्चे से ज़्यादा कमाई होती है. इसका इस्तेमाल उत्पादक कामों में तो खास नहीं हुआ है लेकिन उसे मुफ़्त की चीज़ों के लिए इस्तेमाल करना ज़रूर आसान हो गया है."

इसके अलावा अरविंद मोहन दिल्ली में रहने वाले लोगों के स्वभाव को भी इसका एक बड़ा कारण बताते हैं.

वह कहते हैं, "असल मैं दिल्ली तुलनात्मक रूप से खाए-अघाय लोगों का, बाबुओं का शहर है. यहां मुफ़्त में जो मिल जाए अच्छा है. इसलिए इन्हें मुफ़्त का बिजली-पानी काफ़ी पसंद है. फिर मुफ़्त ऐसा शब्द है जिससे लोगों का ध्यान आसानी से भटकाया जा सकता है."

टैंकर से पानी भरते लोग
Getty Images
टैंकर से पानी भरते लोग

अन्य राज्यों में क्यों नहीं

हाल ही में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव हुए हैं लेकिन उनमें बिजली-पानी का मसला सुनाई नहीं दिया जबकि बिजली और पानी के बिल वहां भी लोगों को भरने पड़ते हैं.

ऐसा क्यों है, इस सवाल के जवाब में प्रदीप सिंह का कहना है, "बिजली-पानी का मसला दूसरे राज्यों में भी उठता है. 2003 में मध्य प्रदेश में बीजेपी बिजली, सड़क, पानी (बीएसपी) के नारे पर ही चुनाव जीती थी. ऐसा नहीं है कि दूसरे राज्यों में बिजली-पानी हर चुनाव में मुद्दा नहीं बनता."

"अलग-अलग समय पर लोगों की मन:स्थिति और पार्टी के एजेंडे पर मुद्दे निर्भर करते हैं. चुनाव से पहले पार्टियां हवा में कई मुद्दे छोड़ती हैं और पता लगाने की कोशिश करती हैं कि किसे ज़्यादा अहमियत मिल रही है. फिर उस मुद्दे को आगे बढ़ाती है."

प्रदीप सिंह बताते हैं कि दिल्ली में अब तक ये हुआ था कि कांग्रेस ने ना तो बिजली-पानी मुफ़्त किया था और ना ही इसका वादा किया.

लेकिन, अब लोगों को एक चीज़ मिल गई है इसलिए वो भी दिखाना चाहते हैं कि उन्हें ये सुविधा चाहिए, भले ही पार्टी कोई भी हो. इसलिए लोगों की तरफ़ से इस पर प्रतिक्रिया मिल रही है और पार्टियां भी इसे उठा रही हैं.

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और शीला दीक्षित
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कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और शीला दीक्षित

कांग्रेस के दौरान बिजली-पानी

कांग्रेस के दौरान बिजली की कीमतें काफ़ी अलग थीं. साल 2013 में 200 यूनिट तक 3.90 रुपये प्रति यूनिट, 201-400 यूनिट तक 5.80 रुपये प्रति यूनिट और 401-800 यूनिट तक 6.80 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना होता था.

पानी के बिल की बात करें तो चार से पांच सदस्यों के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हर महीने 300 से 400 रुपये तक बिल आता था. अब व्यवस्था बदल गई है. लेकिन, कांग्रेस की सत्ता के 15 सालों (1998 से 2013) में बीजेपी ने कभी इसे बड़ा मुद्दा नहीं बनाया. ये मसले तब भी थे लेकिन मुख्य चुनावी मुद्दा नहीं था.

अरविंद मोहन कहते हैं कि उस वक़्त बिजली-पानी की आपूर्ति, बिजली चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं हावी थीं जो ज़ाहिर है कि उतनी आकर्षक नहीं थीं.

वह कहते हैं, "कांग्रेस के समय में बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ था. बिजली और जल बोर्ड की बहुत संपत्ति थी, उन सबको हैंडओवर किया गया. उस वक़्त अरविंद केजरीवाल ने सही मसले उठाए थे जैसे कि इस संपत्ति के दाम किस तरह तय होने चाहिए और भ्रष्टाचार को ख़त्म किया जाना चाहिए."

"निजीकरण से फायदा तो हुआ, बिजली आपूर्ति बेहतर हुई और बिजली चोरी भी रुकी लेकिन आगे चलकर बिजली के दाम ज़रूर बढ़ गए. तब केजरीवाल ने इन्हीं दामों को घटाकर लोगों को लुभाया जो आज सबसे अहम हो गए हैं."

पानी पीता हुआ एक बच्चा
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पानी पीता हुआ एक बच्चा

बिजली-पानी का बिल

आज कांग्रेस भी बिजली मुफ़्त दे रही है जबकि अपने कार्यकाल में उसने ऐसा नहीं किया.

इस पर कांग्रेस नेता कीर्ति आज़ाद कहते हैं, "जब कांग्रेस सत्ता में थी तब उसने बिजली की आपूर्ति और चोरी जैसे मसलों को सुलझाया और जब वो लोगों को कुछ फायदा दे पाती तब तक कांग्रेस सत्ता से चली गई. इसलिए अब हमने सत्ता में आने पर लोगों को उनका हक़ देने का वादा किया है."

जबकि आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज कहते हैं कि कांग्रेस ने उनकी देखादेखी की है. आप पार्टी ने लोगों की ज़रूरत को समझा क्योंकि बिजली-पानी के बिल उनके बजट को बिगाड़ रहे थे. लोग टैक्स देते हैं तो उन्हें वापसी में भी कुछ मिलना चाहिए. इसलिए आप पार्टी ने बिजली-पानी मुफ़्त देने की घोषणा की.

वोट की स्याही लगी उंगली
Getty Images
वोट की स्याही लगी उंगली

किराएदार क्यों हैं साथ

दिल्ली में वोट देने वालों की एक बड़ी संख्या किराएदारों की भी है लेकिन बिजली-पानी में छूट का पूरा फ़ायदा उन तक नहीं पहुंच पाता है.

कई बार किराएदारों की परेशानियां उठती रही हैं कि उनसे सात से आठ रुपये प्रति यूनिट बिजली बिल लिया जाता है और उन्हें बिजली के बिल तक नहीं दिखाए जाते.

फिर दिल्ली में बिजली-पानी के मुद्दे को मकानमालिक ही नहीं बल्कि किराएदार भी महत्व देते हैं.

इसके लिए प्रदीप सिंह कहते हैं कि ये सच है कि इसका सीधा फायदा किराएदारों को नहीं मिलता लेकिन उम्मीद एक बड़ी चीज़ है. उन्हें उम्मीद होती है कि आज मकानमालिकों के लिए मुफ़्त किया गया है तो कल उन्हें भी फायदा हो सकता है. शायद यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने 'मुख्यमंत्री किराएदार मीटर योजना' की घोषणा की थी.

बल्ब की रोशनी में बैठा बच्चा
BBC
बल्ब की रोशनी में बैठा बच्चा

कितना टिकेगा बिजली-पानी

पिछले कुछ दिनों में बीजेपी ने आक्रामक चुनाव प्रचार और शाहीन बाग जैसे मुद्दे को उठाकर चुनावी परिदृश्य बदल दिया है.

अरविंद केजरीवाल अभी तक बिजली-पानी और शिक्षा व्यवस्था की बात कर रहे थे और सीएए और शाहीन बाग पर कुछ कहने से बच रहे थे. लेकिन बीजेपी ने बार-बार राष्ट्रवाद और शाहीन बाग की बात करके आम आदमी पार्टी को काफ़ी हद तक असहज किया है.

ऐसे में दोनों में से कौन-सा मुद्दा लोग चुनेंगे ये देखने लायक होगा. इस पर विश्लेषकों की राय भी बंटी हुई नज़र आती है.

जहां प्रदीप सिंह कहते हैं कि बिजली-पानी एक वक़्त पर आम आदमी पार्टी ने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया था और ये इतना प्रचलित था कि बीजेपी ने मुद्दा बदलने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. बीजेपी इसमें सफल भी हुई है और उसने अपनी सहजता वाले राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और शाहीन बाग जैसे मसले ज़्यादा हावी कर दिए.

लेकिन, अरविंद मोहन कहते हैं कि बीजेपी ने आते-आते बहुत देर कर दी. एक हफ़्ते में वो आम लोगों के दिमाग पर ख़ास असर नहीं डाल सकते. लोगों को भी समझ आता है कि ये चुनावी खेल है. हालांकि, उन्होंने अरविंद केजरीवाल को थोड़ा मज़बूर ज़रूर किया है कि वो शाहीन बाग को एक ट्रैफिक की समस्या बताकर नहीं छोड़ सकते. हालांकि, शाहीन बाग इससे बड़ा मसला नहीं बन पाएगा.

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English summary
Why do the people of Delhi like the issue of electricity and water?
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