कंडोम इस्तेमाल क्यों नहीं करते गरीब?
झुग्गियों में रहने वालों लोगों को कंडोम मिलना कितना मुश्किल है?
"कुछ वक़्त पहले तक मैं आशा केंद्र से कॉन्डोम ले आता था. कभी-कभी मेडिकल स्टोर से भी खरीद लेता था. वैसे मैंने इसका इस्तेमाल कम ही किया है", अपनी छोटी सी दुकान के सामने बैठे सुखलाल बेहिचक होकर बताते हैं.
सुखलाल विवेकानंद कैंप की एक झुग्गी में रहते हैं.
दिल्ली में ये झुग्गी बस्ती चाणक्यपुरी की चमचमाती सड़कों पर शान से खड़े दूतावासों के ठीक पीछे बसी है. यहां तकरीबन 1500-2000 झुग्गियां हैं जिनमें हजारों परिवार रहते हैं.
एक तरफ़ अमरीका, स्विटरजरलैंड, और फ़िनलैंड जैसे देशों के राजदूतों के रहने के लिए ख़ूबसूरत इमारतें हैं तो दूसरी ओर ये सघन बस्ती जहां घुसते ही एकदम से सब कुछ बदल जाता है.
बहते नाले और भिनभिनाती मक्खियों के बीच नंगे पांव दौड़ते बच्चों को शायद ये भी पता नहीं है कि उनके घरों के ठीक सामने बड़े-बड़े नामी स्कूल हैं जहां अंग्रेजीदां परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं.
यहां एक-दूसरे से सटे छोटे-छोटे घरों में लोग ही लोग नज़र आते हैं. 28 साल के सुखलाल और उनका परिवार इन्हीं में एक है.
उनके दो बेटे और एक बेटी है. सुखलाल और उनकी पत्नी कौशल्या ने सोच लिया था कि उन्हें तीन से ज्यादा बच्चे नहीं चाहिए.
उन्होंने बताया,"बेटी के जन्म के बाद मैंने अपनी पत्नी का ऑपरेशन करा दिया था. इसलिए अब मुझे कॉन्डोम इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ती."
"सेक्स शिक्षा की कमी टाइम बम जैसी है"
पीरियड मिस, तो मैरिटल स्टेटस पर सवाल क्यों?
सुखलाल देश के उन लाखों-करोड़ों लोगों में से हैं जो दमघोंटू माहौल में रहने को मजबूर हैं,जिन्हें यौन संक्रमण और एड्स जैसी बीमारियों के बारे में बहुत कम जानकारी है.
ऐसी स्थिति में इन पर बीमारियों का सबसे ज्यादा ख़तरा मंडराता है.
परिवार कल्याण और स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों पर काम करने वाली संस्था 'पॉपुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया' के प्रोग्राम मैनेजर डॉ. नितिन बाजपेई ने कहा,"मुफ़्त में दिए जाने वाले निरोध की क्वालिटी अच्छी नहीं होती. ये काफी मोटे होते हैं इसलिए लोग इन्हें इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते.''
उन्होंने बताया, "क़ायदे के मुताबिक हर सरकारी अस्पताल में गरीबों को कंडोम मुफ़्त दिए जाने चाहिए लेकिन अक्सर इनकी कमी देखने को मिलती है."
हटा ली गई कॉन्डोम मशीन
बस्ती में कुछ और लोगों से बात करने पर पता चला कि वहां आशा केंद्र के पास एक कंडोम वेंडिंग मशीन भी लगाई गई थी जिसे बाद में हटा लिया गया.
मशीन किसने और क्यों हटाई, इसका जवाब किसी के पास नहीं था. आशा केंद्र पहुंचने पर हमने देखा कि दरवाजे पर ताला लगा हुआ है. बगल में एक आंगनवाड़ी केंद्र है जहां बच्चे खेल रहे हैं. आस-पास कुछ पुरुष भी नज़र आए.
वहां बैठे श्रीपत ने बताया कि आशा कर्मचारी के आने का कोई टाइम-टेबल नहीं है. कभी हफ़्ते में एक दिन आ जाती हैं तो कभी 15 दिन में.
गांवों और पिछड़े इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए जगह-जगह आशा केंद्र बनाए गए हैं.
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उन्होंने कहा,"कुछ साल पहले तक आशा कर्मचारी घर-घर जाकर कंडोम बांटती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं होता. वैसे भी मुझे नहीं लगता कि यहां कोई कंडोम इस्तेमाल भी करता है."
नहीं खरीद सकते कॉन्डोम
श्रीपत को लगता है कि मुफ़्त में मिलने पर लोग इस बारे में सोचें भी लेकिन हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम 50-60 रुपये खर्च करके एक पैकेट कंडोम खरीदें.
इसी इलाके में रहने वाली रिमझिम कहती हैं,"मैंने तो कभी फ़्री में कंडोम मिलते नहीं देखा. मुझे नहीं लगता की केमिस्ट के यहां जाकर खरीदने के अलावा कोई और विकल्प है."
'कारगर नहीं हैं सरकारी योजनाएं'
डॉ. नितिन मानते हैं कि सरकार की योजनाएं बेशक़ अच्छी हैं लेकिन इसका फ़ायदा बहुत कम मिल पा रहा है.
उन्होंने बताया,"गरीबों को मुफ़्त या सस्ते दाम पर कॉन्डोम दिलाने के लिए कई सरकारी योजनाएं हैं. मसलन इसी साल शुरू की गई 'मिशन परिवार विकास' योजना."
ये योजना बड़ी आबादी वाले सात राज्यों में लागू की गई है. इसके तहत गांवों में पंचायत भवन जैसी प्रमुख जगहों पर कॉन्डोम से भरा एक बॉक्स रखा जाएगा जहां से लोग मुफ़्त कॉन्डोम ले जा सकेंगे.
डॉ. नितिन ने कहा,''लोगों में कंडोम को लेकर जागरूकता की भी कमी है. उन्हें लगता है कि कॉन्डोम सिर्फ प्रेग्नेंसी रोकने के लिए है. वो ये नहीं जानते कि सुरक्षित सेक्स के लिए इसका इस्तेमाल कितना ज़रूरी है."
एचआईवी ग्रसित लोगों के लिए काम करने वाली संस्था नैको के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-16 में तकरीबन 90 हजार लोग ऐसे थे जो यौन संक्रमण के इलाज के लिए सामने आए थे.
'गरीब नहीं खरीदते कंडोम'
दिल्ली के साउथ एक्स में मेडिकल शॉप चलाने वाले गौरव की मानें तो उनकी दुकान पर कॉन्डोम खरीदने आने वालों में ज्यादातर मिडिल क्लास के लोग ही होते हैं.
गौरव याद करने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें याद नहीं आता कि उनकी दुकान पर कभी कोई मजदूर या रिक्शा चलाने वाला शख़्स कॉन्डोम खरीदने आया हो.
गरीब तबके में कंडोम के इतने कम इस्तेमाल की वजह क्या है? इसका ज्यादा दाम या जागरूकता की कमी?
इसके जवाब में डॉ. नितिन कहते हैं,"मुझे लगता है दोनों वजहें जिम्मेदार हैं. अगर हर किसी को मुफ़्त में बढ़िया क्वालिटी के कॉन्डोम उपलब्ध कराएं और समझाया जाए कि ये कितना जरूरी है तो निश्चित तौर पर इसका इस्तेमाल बढ़ेगा."