मोदी को महिला वोटरों ने भी क्यों किया पसंद
चुनाव बाद के सीएसडीएस सर्वेक्षण से अंदाज़ा मिलता है कि उज्ज्वला योजना का फ़ायदा 34 फ़ीसदी परिवारों को हुआ है और उनमें से एक बड़ी संख्या में लोग जानते थे कि यह योजना मोदी सरकार चला रही है. हो सकता है कि इस वजह से भी महिलाएं वोट देने के लिए पहले से ज़्यादा संख्या में निकलीं. हालांकि पुख़्ता तौर पर यह नहीं माना जा सकता
2019 के लोकसभा चुनाव को देखने के बहुत नज़रिये हैं पर कुछ जानकार भाजपा की बड़ी जीत के पीछे महिला वोटरों के समर्थन को बड़ी वजह मानते हैं.
कई लोगों का मानना है कि महिलाओं ने न सिर्फ़ इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई बल्कि बड़ी संख्या में भाजपा को समर्थन भी दिया.
मोदी सरकार की लोकप्रिय उज्ज्वला योजना से बड़े पैमाने पर ग्रामीण महिलाओं को गैस सिलिंडर मिले और कई जानकार मानते हैं कि इससे महिलाओं में भाजपा का समर्थन बढ़ा.
भाजपा के महिला-पुरुष वोटरों में संख्या का फ़र्क घटा
चुनाव बाद के सीएसडीएस सर्वेक्षण से अंदाज़ा मिलता है कि उज्ज्वला योजना का फ़ायदा 34 फ़ीसदी परिवारों को हुआ है और उनमें से एक बड़ी संख्या में लोग जानते थे कि यह योजना मोदी सरकार चला रही है.
हो सकता है कि इस वजह से भी महिलाएं वोट देने के लिए पहले से ज़्यादा संख्या में निकलीं. हालांकि पुख़्ता तौर पर यह नहीं माना जा सकता कि योजनाओं का फ़ायदा लेने वाले वोटर हमेशा सत्ताधारी पार्टी को ही वोट देते हैं.
चुनाव के बाद सीएसडीएस की ओर से किए गए चुनाव सर्वेक्षण ये संकेत देते हैं कि भाजपा के महिला और पुरुष वोटरों में संख्या का फ़र्क़ घटा है लेकिन भाजपा अब भी महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों में ही ज़्यादा लोकप्रिय है.
2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 37 फ़ीसदी था जबकि उसे वोट देने वाली महिलाओं में से 36 फ़ीसदी के वोट मिले. वहीं पुरुष वोटरों में से 39 फ़ीसदी ने भाजपा को चुना.
हालांकि यह सिर्फ़ इसी चुनाव की बात नहीं है. भाजपा हमेशा महिलाओं के मुक़ाबले पुरुष वोटरों में अधिक लोकप्रिय रही है. 2004 के बाद हुए लोकसभा चुनावों के आंकड़े भी इस ओर इशारा करते हैं.
यह ट्रेंड कई प्रदेशों में दिखता है लेकिन कुछ प्रदेश अपवाद ज़रूर हैं. गुजरात, कर्नाटक, असम और उत्तर प्रदेश में भाजपा को पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं के वोट अधिक मिले. लेकिन बीजेपी के प्रभाव वाले बाक़ी सभी प्रदेशों में भाजपा को वोट देने वालों में पुरुष अधिक थे.
महिलाओं के मतदान में आम तौर पर बराबर बँटवारा दिखता है जिसमें किसी पार्टी के पक्ष या विरोध में ख़ास रुझान नहीं है. लेकिन पश्चिम बंगाल एक अपवाद है जहां महिलाएं दूसरे दलों के मुक़ाबले ममता बनर्जी को अधिक पसंद करती हैं.
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महिलाओं की भागीदारी का तरीक़ा बदला
महिलाओं का वोटिंग पैटर्न 2019 चुनावों में भी कमोबेश वैसा ही रहा. लेकिन लोगों का ध्यान इस ओर जाना चाहिए कि इस चुनाव में महिलाओं के चुनावों में भागीदारी के तरीक़े में बड़ा बदलाव हुआ. यह महत्वपूर्ण बात है कि यह पहला लोकसभा चुनाव है जिसमें महिलाओं और पुरुषों ने बराबर संख्या में वोट किया है.
2019 चुनाव में कुल 66.8 फ़ीसदी मतदान हुआ. 66.8 फ़ीसदी पुरुष वोटर मतदान के लिए बाहर निकले और महिला वोटरों का फ़ीसदी भी इतना ही रहा.
महिलाओं और पुरुषों दोनों को मताधिकार एक साथ ही मिला था लेकिन चुनावों में महिलाओं में मतदान प्रतिशत हर बार पुरुषों के मुक़ाबले कम ही रहता था. आज़ादी के बाद हुए कुछ लोकसभा चुनावों में दोनों के बीच मतदान प्रतिशत का अंतर 12 से 14 फ़ीसदी तक था. 2004 के चुनावों तक यह 9 से 10 फ़ीसदी पर आ गया था.
2009 में इसमें चार फ़ीसदी की गिरावट हुई और 2014 में यह अंतर महज़ 1.6 फीसदी रह गया. लेकिन 2019 में यह बराबरी पर आ गया है.
अहम बात यह भी है कि बहुत सारे प्रदेश ऐसे भी हैं जहां महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है. मसलन अरुणाचल प्रदेश, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तराखंड ऐसे ही प्रदेश हैं.
इतना ही नहीं मौजूदा लोकसभा में 78 महिला सांसद चुनी गई हैं जो अब तक के इतिहास में सर्वाधिक है. 2019 के लोकसभा चुनाव में ये बातें काफ़ी अहम और सकारात्मक हैं. हालांकि संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के सवाल पर हमें अभी और आगे जाना है.