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भारत में कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू क्यों हो गई?

भारत मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. कोरोना वायरस बेकाबू है. मरीज़ों की अधिक संख्या के कारण स्वास्थ्य तंत्र चरमरा गया है. लोगों के अंतिम संस्कार के लिए अस्थाई जगह तलाशी जा रही हैं. देश फिलहाल 'सांस के संकट' से जूझ रहा है.

By BBC News हिन्दी
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भारत में कोरोना महामारी
DIVYAKANT SOLANKI/EPA
भारत में कोरोना महामारी

लखनऊ में रहने वाले 65 साल के एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर अपना हाल बताते हुए मदद की गुहार की. उन्होंने लिखा कि वो ख़ुद में कोविड-19 के लक्षण महसूस कर रहे हैं और टेस्ट नतीजों का इंतज़ार कर रहे हैं.

इस बीच उनके ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है और उन्हें किसी अस्पताल में दाखिले की ज़रूरत महसूस हो रही है. वो ट्विटर पर जानकारी देते हैं, "मेरा ऑक्सीजन लेवल है 52. ऑक्सीजन का सामान्य स्तर 95 के क़रीब होता है."

वो लिखते हैं कि "अस्पताल और डॉक्टर मेरा फ़ोन नहीं उठा रहे हैं."

अगले दिन वो ट्विटर पर जानकारी देते हैं कि उनके ऑक्सीजन का स्तर गिरकर 31 हो गया है. वो पूछते हैं, "अगर कोई मेरी मदद करेगा तो कब?"

उसके बाद उनके ट्विटर अकाउंट से कोई ट्वीट सामने नहीं आता. ये तमाम ट्वीट लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार विनय श्रीवास्तव ने किए थे. उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि अस्पताल में दाखिले और ऑक्सीजन हासिल करने की उनकी तमाम कोशिश नाकाम साबित हुईं और उस दिन उनकी सांसें थम गईं.

सोशल मीडिया पर नज़र डालें तो मदद की गुहार लगाते संदेशों की भरमार दिखती है. देश के तमाम अस्पतालों का बुरा हाल है. ज़रूरी सामान की कमी होती जा रही है. कतारें श्मशानों और कब्रिस्तानों के बाहर भी दिखती हैं. यहां भी जगह कम पड़ने लगी है.

बीते हफ़्ते भारत ने एक दिन में नए कोविड केस का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. कोरोना संक्रमण से अब तक जान गंवाने वालों की आधिकारिक संख्या दो लाख के पार जा चुकी है.

अब सवाल है कि भारत में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बेकाबू क्यों हो गई? ग़लती कहां हुई? दुनिया जहान में इस हफ़्ते इसी सवाल की पड़ताल. इस मुद्दे पर हमने की चार एक्सपर्ट से बात.

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पार्ट-1

चुपके से वायरस का वार

अमेरिका के मिशिगन यूनिवर्सिटी में महामारी रोग विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी कहती हैं, "मुझे अच्छी तरह याद है, वो 14 फरवरी वेलेन्टाइन्स डे का दिन था. मैं भारत में मौजूद अपने दोस्तों की तस्वीरें देख रही थी. वो पार्टी कर रहे थे और किसी ने भी मास्क नहीं पहना था. मैं आगे की स्थिति के बारे में सोचकर फिक्रमंद हो उठी."

मिशिगन यूनिवर्सिटी में एपिडेमियोलॉजी की प्रोफ़ेसर मुखर्जी मूल रूप से भारत की हैं. वो बताती हैं कि उन्होंने फरवरी के मध्य में ही देश को अलर्ट किया था कि सभी को हाई अलर्ट पर रहना चाहिए. साल 2020 में जब इस महामारी की शुरुआत हुई तब भ्रमर मुखर्जी और उनके सहकर्मियों ने एक ऐप तैयार किया. इसके ज़रिए वायरस की ट्रैकिंग की जा रही थी और पूर्वानुमान लगाए जा रहे थे. कोरोना संक्रमण की पहली लहर के बाद नए मामलों की संख्या इतनी तेज़ी से कम हुई कि लगा कि ये प्रोजक्ट पूरा हो गया.

भ्रमर कहती हैं कि वो भी सोच रही थीं कि क्या इस ऐप को बंद कर देना चाहिए. तभी उन्हें लगा कि डेटा ख़तरे की वार्निंग दे रहा है.

"फरवरी के बीच में मुझे ग्राफ़ ऊपर जाता दिखा. मैं भारत में अपने सोशल सर्किल और दोस्तों के ज़रिए ये बात आगे तक पहुंचाना चाहती थी कि एक बड़ा उछाल आने जा रहा है. यहां तक कि मेरे माता-पिता को भी नहीं लगा कि वायरस का ख़तरा क़रीब है और वो अपना टीकाकरण टालते रहे. तब मैंने ज़ोर लगाया कि वो वैक्सीन ले लें."

जो संख्या भ्रमर देख पा रही थीं, उसने उन्हें चिंतित कर दिया और उन्होंने इसे लेकर आगाह करने में अपन पूरा ज़ोर लगा दिया. वो दावा करती हैं कि मार्च में उन्होंने एक इंटरव्यू में अपना अनुमान ज़ाहिर किया था कि भारत में हर दिन दो हज़ार लोगों की मौत हो सकती है.

कुछ ही हफ़्तों में नए मामलों की संख्या हैरान करने वाले अंदाज़ में बढ़ने लगी.

https://www.youtube.com/watch?v=t2xDbQmkplU

भ्रमर बताती हैं, "इस वायरस के साथ ख़तरे की बात यही है कि शुरुआत में इसकी ज़्यादा ग्रोथ होती नहीं दिखती. हर दिन थोड़ा फैलाव होता है. ये बहुत खामोशी से कदम आगे बढ़ाता है. उसके बाद फट पड़ता है. आपको खामोशी से आगे बढ़ती पदचाप को सुनना और पहचानना होगा. आपको डेटा से संकेत लेते हुए जल्दी से कार्रवाई करनी होगी."

प्रोफ़ेसर भ्रमर मुखर्जी कहती हैं कि उन्होंने जो मॉडल तैयार किया है वो बताता है कि विनाशकारी साबित हो रही दूसरी लहर के लिए कई कारण ज़िम्मेदार हैं.

वो कहती हैं, "तमाम कारण सामने होने के बाद भी भारत में वायरस के कर्व में हमने जो उछाल देखा, उसकी वजह को समझाना मुश्किल है. ये आग की तरह फैल रहा है. मुझे लगता है कि ज़्यादा संक्रामक नए वैरिएंट भी इस उछाल की एक वजह हो सकते हैं. ये एक तूफ़ान-सा है."

भारत में हर दिन रिकॉर्ड संख्या में नए मामले सामने आ रहे हैं. मौत की संख्या का भी रिकॉर्ड बन रहा है.

प्रोफ़ेसर भ्रमर मुखर्जी कहती हैं कि जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, असल में वास्तविक संख्या उससे कहीं अधिक है.

उनका कहना है कि ख़तरे की चेतावनी को अनसुना करना एक बड़ी ग़लती था. वो ये भी कहती हैं कि उन्हें जब लोग ये कहते हैं कि आपके अनुमान सही साबित हुए तब वो दुखी हो जाती हैं. वो कहती हैं, "आप ये सोचकर सिस्टम को आगाह करते हैं कि लोग एक्शन लेंगे."

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पार्ट-2

स्वास्थ्य तंत्र का हाल

कोलकाता में सालों से प्रैक्टिस कर रहीं डॉक्टर शाश्वती सिन्हा कहती हैं, "ये सिर चकरा देने वाली स्थिति है. फिलहाल हमारे सभी आईसीयू और कोविड-19 आईसीयू पूरी तरह भरे हुए हैं. इसके बाद भी हमें लगातार फ़ोन मिल रहे हैं और मरीज़ों को भर्ती कर लेने के लिए कहा जा रहा है. बीते कुछ हफ़्तों में स्थिति बेहद डरावनी रही है."

ये हैं हमारी दूसरी एक्सपर्ट. डॉक्टर शाश्वती सिन्हा. वो कोलकाता के एक अस्पताल के क्रिटिकल केयर विभाग में सीनियर कंस्लटेंट हैं.

वो कहती हैं कि ये जानकारी सबको थी कि "महामारी का सेकेंड वेव आएगा. लेकिन ये इस कदर ज़ोर से झटका देगा, इसका बात का अंदाज़ा किसी ने भी नहीं लगाया था. बढ़ती मांग का मुक़ाबला करने के लिए अस्पतालों में आईसीयू बिस्तरों की संख्या बढ़ाई जा रही है."

डॉक्टर सिन्हा कहती हैं कि इस बार एक ही परिवार के अलग-अलग पीढ़ी के लोग भर्ती हो रहे हैं. अब सवाल सिर्फ़ ये नहीं है कि क्या अस्पतालों में सभी ज़रूरतमंद मरीज़ों के लिए कमरे हैं, सवाल ये भी है कि अस्पतालों का स्टाफ़ कितना दबाव झेल सकता है.

https://www.youtube.com/watch?v=7yp4IfM3Is4

डॉक्टर शाश्वती सिन्हा कहती हैं, "इन दिनों आपको पता ही नहीं चल पाता है कि कब दिन ख़त्म हो गया और दूसरा दिन शुरू हो गया. ये 24×7 यानी सातों दिन और चौबीसों घंटे काम करने वाले स्थिति है. हम अपनी क्षमता से कहीं ज़्यादा काम कर रहे हैं. हमने पहले कभी ऐसी स्थिति नहीं देखी थी. हम भावनात्मक तौर पर, शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत थक चुके हैं."

डॉक्टर सिन्हा का कहना है कि अभी उनके पास पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में वो ऑक्सीजन की कमी की दिक्कत से जूझते देख रही हैं.

वो कहती हैं, "देश के दूसरे हिस्सों खासकर दिल्ली से जो रिपोर्ट आ रही हैं वो बहुत डराने वाली हैं. वहां पीक आ चुका है, ऐसा पूर्वानुमान है कि हम यहां आने वाले कुछ हफ़्तों में पीक देख सकते हैं. मुझे नहीं पता कि आने वाले दिनों में हालात कैसे होंगे."

https://www.youtube.com/watch?v=m5YErf-LCxM

भारत ने बीते साल कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला बेहतर तरीके से किया लेकिन इस बार जिन लोगों की जान बचाई जा सकती थी, उनकी मौत हो रही है. उनकी राय है कि ऐसा हाल होना नहीं चाहिए था.

डॉक्टर शाश्वती सिन्हा कहती हैं, "कुछ महीने पहले हम निश्चिंत से हो गए थे. जब केस कम होने लगे तो लोग छुट्टियां बिताने के लिए दूसरी जगहों पर जाने लगे. शादियों का मौसम आया तो शादियों में भीड़ दिखने लगी. वहां कोविड-19 से बचाव के लिए तय तरीकों का पालन नहीं किया जा रहा था. लोग सड़कों पर बिना मास्क लगाए घूम रहे थे. मेरी राय में हम यहीं ग़लती कर बैठे."

जिस वक़्त बीमारों और मरने वालो की संख्या लगातार बढ़ रही है एक और सवाल पूछा जा रहा है - भारत के टीकाकरण अभियान ने सेकेंड वेव या दूसरी लहर पर लगाम क्यों नहीं लगाई?

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https://www.youtube.com/watch?v=Uqn-TegP9c0

पार्ट-3

उम्मीद का टीका

वॉशिंगटन स्थित सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में सीनियर फेलो प्रोफ़ेसर प्रशांत यादव कहते हैं, "हममें से बहुत से लोगों ने भारत के कोविड-19 टीकाकरण अभियान से बहुत उम्मीद लगाई हुई थी."

वो कहते हैं कि भारत के हक़ में दो फायदेमंद बातें थीं. पहला ये कि भारत के पास एक तो बड़े पैमाने पर वैक्सीन उत्पादन की क्षमता है, और दूसरा ये कि भारत के पास बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाने का अनुभव भी है.

लेकिन अप्रैल के आख़िर तक क़रीब दस फ़ीसदी आबादी को ही टीके की पहली ख़ुराक मिली और क़रीब दो फ़ीसदी आबादी ही ऐसी थी जिसने दोनों टीके लगवाए थे.

प्रोफ़ेसर यादव कहते हैं कि भले ही भारत में हर बच्चों के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जाता है लेकिन एक अरब से ज़्यादा कुल आबादी को टीके लगाना कहीं बड़ा काम था और इस चुनौती से तालमेल बिठाने में दिक्कत हुई.

https://www.youtube.com/watch?v=BeK8ADayiD0

"भारत में हर दिन जिन लोगों को टीके दिए जाते हैं उनकी संख्या क़रीब 20 या 25 लाख होती है और अगर भारत की पूरी आबादी को अगले आठ महीने के दौरान टीके लगाने हैं तो हर दिन लगाए जाने वाले टीकों की संख्या 70 से 80 लाख या एक करोड़ होनी चाहिए. ऐसा करने के लिए बड़े ढांचे की जरूरत होगी. इसके लिए सबसे ज़्यादा वैक्सीन की सप्लाई की ज़रूरत होगी."

ये एक जटिल मुद्दा है.

वो कहते हैं कि अप्रैल की शुरुआत में देखने को मिला कि जितनी मांग है उतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही है. जहां टीके लगाए जा रहे थे वहां भी पहली और दूसरी ख़ुराक के लिए समय देने में दिक्कतें आ रहीं थीं. कुछ केद्रों पर वैक्सीन ही नहीं थीं.

ये स्थिति तब है जबकि वैक्सीन उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. भारत में कोविड-19 वैक्सीन की करोड़ों ख़ुराक तैयार हुईं और उनका निर्यात भी किया गया. इसलिए वैक्सीन उत्पादन की क्षमता भारत के लिए दिक्कत का मामला नहीं हो सकती है.

https://www.youtube.com/watch?v=cNQrpDsebvw

भारत ने कोवैक्सीन के नाम से अपनी वैक्सीन भी विकसित की. इसे बना रही कंपनी को बड़े पैमाने पर दूसरी वैक्सीन के उत्पादन का अनुभव है लेकिन कोवैक्सीन नई है. प्रोफ़ेसर यादव कहते हैं कि कोई ज़रूरी नहीं कि नई वैक्सीन की उत्पादन क्षमता भी पुरानी वैक्सीन के बराबर ही रहे.

वो ये भी कहते हैं कि उत्पादन क्षमता बढ़ाने को लेकर लगाए गए अनुमान भी कई बार सही साबित नहीं होते हैं.

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि भारत सरकार की मनोदशा ऐसी थी कि मानो उन्हें अपनी उत्पादन क्षमता पर पूरा भरोसा हो."

भारत स्थित सीरम इंस्टीट्यूट एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है. इसे जनवरी में क़रीब एक करोड़ दस लाख वैक्सीन का शुरुआती ऑर्डर दिया गया. भारत के बाहर तैयार वैक्सीन को खरीदने के लिए सरकार ने कोई ऑर्डर नहीं दिया.

https://www.youtube.com/watch?v=Obq4H2jBkv8

प्रोफ़ेसर यादव कहते हैं कि वैक्सीन बनाने वाली सिर्फ़ दो घरेलू कंपनियों पर भरोसा के मायने ये थे कि आबादी के मुताबिक़ जल्दी आपूर्ति होना मुमकिन नहीं था.

प्रोफ़ेसर यादव कहते हैं कि सरकार ने अब नियम बदले हैं. वो कहते हैं, "अब कंपनियां और राज्य सरकारें वैक्सीन का आयात कर सकती हैं. लेकिन अप्रैल महीने के आख़िर तक केंद्र सरकार ने बाहर से टीकों की खरीद के लिए कोई ऑर्डर नहीं दिया."

वो ये भी कहते हैं कि अगर बाहर से तुरंत वैक्सीन आ भी गईं तब भी नए मामलों के हालिया उछाल पर तुरंत रोक लगाना संभव नहीं होगा. अमेरिका जैसे देशों ने भारत को वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल देने की बात कही है. भारत के लिए बड़ी आबादी का तुरंत टीकाकरण मुमकिन नहीं है तो दूसरे उपाय किए जाने चाहिए.

"वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के साथ दूसरे उपाय मसलन मास्क का इस्तेमाल, सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरी सावधानियां रखना जरूरी होगा."

भारत को इस मुश्किल से बाहर निकालने के लिए मज़बूत नेतृत्व और व्यापक प्रयास की जरूरत होगी.

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https://www.youtube.com/watch?v=d3OVHf6DKcA

पार्ट-4

प्रभावी रोक

बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास कहते हैं, "इस बात में कोई शक़ ही नहीं है. अगर आप दिल्ली आते हैं और किसी अस्पताल के बाहर खड़े हो जाते हैं तो आपको महसूस हो जाएगा कि यहां कोई तंत्र नहीं है. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं कि मैं किसी को अस्पताल में दाखिल कराने की कोशिश कर रहा था. उन्हें दाखिला मिल गया लेकिन फिर उस व्यक्ति की हालत ख़राब हो रही थी, वहां पर्याप्त संख्या में डॉक्टर नहीं थे."

ये हैं हमारे चौथे एक्सपर्ट. सौतिक बिस्वास. दिल्ली में मौजूद बीबीसी संवाददाता.

वो इसे भारत की आज़ादी के बाद से अब तक का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट बताते हैं.

सौतिक कहते हैं, "सरकार में ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि हालात के सकारात्मक पहलू की तरफ देखा जाए लेकिन इन हालातों के बीच मुझे कोई उजला पक्ष दिखता ही नहीं है. सही में कहा जाए तो पूरा ढांचा ही ध्वस्त हो गया है. कुछ हफ़्ते पहले ही स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि हम महामारी के आख़िरी दौर में हैं. फरवरी के आख़िर में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनाव कराने का एलान किया. इन राज्यों में 18 करोड़ से ज़्यादा वोटर हैं."

https://www.youtube.com/watch?v=WTbT8BfJ6kY

सौतिक बिस्वास मार्च में कुछ रैलियों की कवरेज के लिए पश्चिम बंगाल गए थे. उन्होंने कार में बैठकर रिपोर्टिंग की.

वो बताते हैं, "मैंने देखा कि किसी ने भी मास्क नहीं पहना हुआ था. मैंने कोरोना के बारे में पूछा तो लोगों ने कहा कि ये अब तक गांवों में नहीं आया है. कई जगह रैलियों में लाखों की संख्या में लोग आ रहे थे. आला नेता रैलियों को संबोधित कर रहे थे."

क़रीब-क़रीब उसी दौरान भारत और इंग्लैंड के बीच वनडे मैच खेले गए. इन मैचों को देखने के लिए हज़ारों लोग आए.

सौतिक कहते हैं कि उसके बाद कुंभ मेला शुरू हो गया. वहां दसियों लाखों लोग पहुंचे. कुंभ मेले की हिंदुओं के लिए बड़ी अहमियत है. इसका आयोजन 12 साल में एक बार होता है.

सौतिक कहते हैं कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने दावा किया कि गंगा में डुबकी लगाने से प्रतिरोधक क्षमता मिल जाएगी. ऐसे में कोरोना की वजह से जो भयावह स्थिति बनी है, वो होनी ही थी.

लेकिन मौजूदा स्थिति के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करना कितना सही है?

वो कहते हैं, "ये सरकार निश्चित तौर पर ऐसे बयानों से बच सकती थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने कामयाबी के साथ कोविड-19 को ख़त्म कर दिया. अगर ऐसा नहीं हुआ होता और धार्मिक आयोजनों, क्रिकेट मैच और चुनाव आयोजन पर सख्ती की गई होती तो स्थिति काफी हद तक काब़ू में होती. इसी जगह सरकार की नाकामी उजागर होती है."

सौतिक ये भी कहते हैं कि नेताओं के ढुलमुल रवैए की वजह से भ्रम की स्थिति बनी. अलग-अलग बयान आने लगे और लोगों को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो किसकी बात मानें.

वो कहते हैं, "सरकार की बड़ी नाकामी ये रही कि उसे समझ नहीं आया कि ऐसी बीमारी सिर्फ़ एक लहर के बाद जाती नहीं है. उन्होंने बीते साल से कोई सबक नहीं लिया गया और जो कामयाबी हासिल हुईं थीं वो गंवा दी गईं.

अगर भारत में अब बड़े पैमाने पर लॉकडाउन लगाया जाता है और सख्ती की जाती है तो नए मामलों की संख्या की घटेगी."

लेकिन अभी भारत मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. कोरोना वायरस बेकाबू है. मरीज़ों की अधिक संख्या के कारण स्वास्थ्य तंत्र चरमरा गया है. लोगों के अंतिम संस्कार के लिए अस्थाई जगह तलाशी जा रही हैं. देश फिलहाल 'सांस के संकट' से जूझ रहा है.

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English summary
Why did the second wave of Coronavirus in India become uncontrollable
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