आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने क्यों छोड़ा मोदी सरकार का साथ?
देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने इसके पीछे निजी वजह बताई है. वो अब अमरीका लौट जाएंगे.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस्तीफे की जानकारी दी. इस बारे में उन्होंने फ़ेसबुक पर एक लंबा नोट लिखा है. उन्होंने लिखा है कि उनके इस्तीफे की वजहें निजी हैं, जो उनके लिए काफ़ी अहम हैं और मेरे पास उनके इस्तीफ़े को स्वीकार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने इसके पीछे निजी वजह बताई है. वो अब अमरीका लौट जाएंगे.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस्तीफे की जानकारी दी. इस बारे में उन्होंने फ़ेसबुक पर एक लंबा नोट लिखा है. उन्होंने लिखा है कि उनके इस्तीफे की वजहें निजी हैं, जो उनके लिए काफ़ी अहम हैं और मेरे पास उनके इस्तीफ़े को स्वीकार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
अरविंद सुब्रमण्यन ने 16 अक्टूबर, 2014 को मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद संभाला था.
इससे पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने पिछले साल अगस्त में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और जून, 2016 में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद वो अकादमिक क्षेत्र में लौट जाएंगे.
अब सवाल उठ रहे हैं कि देश के आर्थिक और नीतिगत क्षेत्र में बेहतरी के लिए सलाह देने और काम करने वाले लोग सरकार का साथ क्यों छोड़ रहे हैं?
यह सवाल बीबीसी ने आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता और एमके वेणु से किया.
https://www.facebook.com/notes/arun-jaitley/thank-you-arvind/804077679780782/
वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता का नज़रिया
अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा है कि वो निजी कारणों से अमरीका जाना चाहते हैं. इससे पहले भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उनके कार्यकाल को बढ़ाने से पहले पूछा था, पर अरविंद सुब्रमण्यन ने मना कर दिया था.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी फ़ेसबुक पर उनके जाने के फ़ैसले पर एक पोस्ट लिखा है कि वो निजी कारणों से अमरीका जाना चाहते हैं और उनके पास उन्हें रोकने का कोई विकल्प नहीं है.
मान लेते हैं कि ऐसा ही कुछ है. सरकार और वित्त मंत्रालय में बतौर मुख्य सलाहकार के रूप में अरविंद सुब्रमण्यन के चुनने का फ़ैसला भी अरुण जेटली का ही था.
चार साल पहले वो मुख्य सलाहकार बने थे. उस समय उन्होंने देश में दवा नीति की आलोचना की थी. उस समय सवाल उठा था कि इन्हें क्यों चुना गया.
ये भी सुनने में आया था कि आरएसएस और स्वदेशी जागरण मंच में उनके चुने जाने से नाराज़गी थी. फिर भी उन्हें आर्थिक सलाहकार बनाया गया.
इससे पहले भी कई अर्थशास्त्री आए और बाद में अमरीका वापस चले गए, उनकी तुलना नहीं कर सकते हैं.
अरविंद पनगढ़िया नीति आयोग का पद छोड़कर गए थे. वो नाखुश थे. अगर अरविंद सुब्रमण्यन नाखुश थे तो कभी उन्होंने इसका इज़हार नहीं किया. हम मान लेते हैं कि इस्तीफ़े के पीछे उनकी कोई निजी वजह है.
'देश की अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी नहीं'
आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन खुद कहते थे कि हम यहां नहीं रहेंगे. आरएसएस, स्वदेशी जागरण मंच और सरकार के कई लोग नहीं चाहते थे कि वो आगे का कार्यभार संभालें.
सुब्रमण्यम स्वामी ने साफ़-साफ़ कहा था कि वो रघुराम राजन को नहीं चाहते हैं.
दवाब में कुछ लोग तुरंत चले जाते हैं और कुछ इसके लिए समय लेते हैं. आज देश की जो अर्थव्यवस्था है, वो बहुत अच्छी नहीं है.
नोटबंदी और जीएसटी जैसे फ़ैसले हड़बड़ी में लिए गए. तेल के दाम बढ़ रहे हैं. इसका असर महंगाई पर पड़ रहा है.
बेरोज़गारी को कम करने की कोशिश नहीं हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को ख़ुद इसे दूर करने की सलाह दे रहे हैं और उद्यमी बनने को कह रहे हैं.
अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है. इससे रघुराम राजन दुखी थे. एक बात और ये कि इस सरकार में किसी की सुनी नहीं जाती है. आर्थिक समीक्षा को पढ़िए और फिर बजट को देखिए, आपको पता चल जाएगा कि कितनी सलाह सरकार ने स्वीकारी और कितनों को नज़रअंदाज कर दिया.
सलाहकार का काम है सलाह देना और वित्त मंत्री इसे चाहें तो शामिल कर सकते हैं या फिर नज़रअंदाज़ कर सकते हैं.
आर्थिक मामलों के जानकार एमके वेणु का नज़रिया
अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा है कि ये मेरी सबसे अच्छी नौकरी रही है. रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे रघुराम राजन के लिए भी ऐसा ही कुछ कारण बताया गया था.
तब लोगों को पता था कि उनकी सरकार के साथ ज़्यादा बन नहीं रही है. जहां तक अरविंद सुब्रमण्यन का सवाल है, इनका कार्यकाल ठीक रहा है. वो बाहर से आए थे इसलिए सलाह भी खुलकर दे रहे थे.
सरकार के जीएसटी लागू करने के फ़ैसले को उन्होंने सही नहीं ठहराया था. उन्होंने कहा था जिस तरह से टैक्स रेट तय किए गए हैं, वो चलेंगे नहीं.
सुब्रमण्यन की सलाह पर जीसीटी दरें घटाई गईं
आम आदमी के इस्तेमाल की वस्तुओं को 28 फ़ीसदी टैक्स रेट में रखने पर उन्होंने आपत्ति जताई थी. कुछ महीने बाद सरकार ने उनकी बात मानी और टैक्स रेट कम किए.
दूसरा, नोटबंदी पर भी इनकी सहमति नहीं थी पर वो खुलकर नहीं बोले. आर्थिक सर्वेक्षण में उन्होंने पिछले चार सालों में किसानों की आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं होने की बात कही. उन्होंने निवेश पर भी नाखुशी जताई.
सरकार के गुलाबी दावों को उन्होंने आंकड़ों के जरिए बदरंग कर दिया. अब चुनाव आ रहे हैं. अरविंद सुब्रमण्यन नहीं समझते हैं कि अब उनकी कोई उपयोगिता बची है. मुझे लगता है कि उन्होंने वापस जाने का फ़ैसला भी इसलिए लिया होगा, पर सार्वजनिक तौर पर उन्होंने निजी वजहों का ज़िक्र किया है.