क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पुरानी फ़िल्मों में क्यों होते थे कैबरे डांस?

और कैबरे के दायरे में रहते हुए भी कई जज़्बात बयां किए जा सकते थे. मसलन पवन कुमार झा ज़िक्र करते हैं बॉन्ड 303 में कैबरे करती हेलेन का जो जासूस जितेंद्र को कैबरे में गूगल की तरह उनकी मंज़िल का पूरा नक्शा बता देती हैं. -"माहिम से आगे वो पुल है उसके बायें तू मुड़ जाना, आगे फिर थोड़ी ऊँचाई है, कोने में है मैख़ाना."

या फिर 1978 की फ़िल्म 'हीरालाल पन्नालाल' का वो कैबरे जिसमें एक पिता बरसों से बिछड़ी बेटी ज़ीनत अमान से दोबारा मिलता है जब वो एक उदास कैबरे कर रही होती हैं,

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
पुरानी फ़िल्मों में क्यों होते थे कैबरे डांस?

"लेडीज़ एंड जेंटलमैन, जिस प्रोग्राम का आपको इंतज़ार था वो अब शुरू होता है. दिल थाम कर बैठिए, पेशे ख़िदमत है हिंदुस्तान की मशहूर कैबरे डांसर. वन एंड दो ओनली वन... मोनिका."

1971 में आई फ़िल्म कारवां का ये डायलॉग बताता है कि फ़िल्मों में किस शाही अंदाज़ में हेलेन और उनके कैबरे डांस का इंट्रोडक्शन किया जाता था. इस परिचय के बाद फ़िल्म में आता है हेलेन का वो कैबरे जो आज भी डांस पार्टियों की जान है- 'पिया तू...अब तो आजा'.

ऋचा चड्ढा और क्रिकेटर श्रीसंत की नई फ़िल्म कैबरे में ऋचा कैबरे डांसर का रोल कर रही हैं. हिंदी सिनेमा में 50 और 60 के दशक में कैबरे डांस का होना लाज़िमी था.

हेलेन, जयश्री टी, बिंदू, अरुणा ईरानी, पदमा खन्ना - ये सब ऐसी कलाकार रहीं जो फ़िल्मों में कैबरे करके मशहूर हुईं.

कैबरे पर नज़र डालें तो हिंदी फ़िल्मों में हेलेन से भी पहले एंगलो-इंडियन मूल की कुकु 40 और 50 के दशक में अपने डांस के लिए ख़ूब मशहूर हुईं- चाहे वो राज कपूर की आवारा और बरसात हो या महबूब ख़ान की आन.

संगीत से जुड़ी बेबसाइट द सॉन्गपीडिया की संस्थापक दीपा याद दिलाती हैं कि गीता दत्त की आवाज़ और ओपी नैयर के संगीत में 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' का एक गाना - 'नीले आसामनी, बूझो तो ये नैना बाबू किसके लिए हैं'.

इस गाने में यूँ तो मधुबाला है लेकिन गाने में कैबरे करती कुकु की मौजूदगी कम दिलकश नहीं.

कैबरे क्वीन हेलेन

कुकु ने ही हेलेन को फ़िल्मों में काम दिलवाया जब हेलेन सिर्फ़ 12 -13 साल की थीं. हेलेन कुकु के पीछे कोरस में डांस किया करती थी.

कुकु की शागिर्दी में हेलेन सबसे मशहूर कैबरे डांसर बनकर उभरीं.

चाहे 1969 में क्लब डांसर रीटा के तौर पर हल्के-फुल्के अंदाज़ में गाती 'करले प्यार करले कि दिन है यही' वाली हेलेन हों,

या फिर 1978 में डॉन की कामिनी जो डॉन (अमिताभ) को लुभाने के लिए कैबरे का सहारा लेती है- 'ये मेरा दिल, प्यार का दीवाना'..

कारवां की' पिया तू अब तो आजा' पर कैबरे करती हेलेन हो या फिर अनामिका में वैंप बन 'आज की रात कोई आने को' है गाती हेलेन हो.

ग़जब का लचीलापन, चमकीले कपड़े और भड़कीला मेकअप, ख़ास जालीदार स्टॉकिंग और उस पर कैबरे ..ये हेलेन की ख़ासियत थी.

कहानी को आगे बढ़ाते थे कैबरे

50-60 के दौर की फ़िल्मों की कहानी में ही कैबरे डांस रचा-बसा होता था.

द सॉन्गपीडिया की दीपा कहती हैं कि आज के आइटम नंबर और तब के कैबरे में शायद ये बड़ा फ़र्क़ है.

मसलन 1971 में आई फ़िल्म कटी पतंग में बिंदू का वो हिट कैबरे- 'मेरा नाम है शबनम, प्यार से लोग मुझे कहते हैं शब्बो'.

अभिनेत्री बिंदू जहाँ कैबरे करती है वहाँ आशा पारिख और राजेश खन्ना भी देखने आते हैं और कैबरे के ज़रिए बिंदू आशा पारिख को इशारों-इशारों में बता देती है कि वो उसकी ज़िंदगी का काला सच जानती हैं. और कहानी आगे बढ़ती रहती है.

बिंदू, जयश्री और अरुणा ईरानी का कैबरे

बिंदू की बात चली है तो उन्होंने भी कैबरे में नाम कमाया. चाहे 1973 में फ़िल्म अनहोनी में 'मैंने होंठो से लगाई तो हंगामा हो गया' हो , या जंज़ीर की मोना डार्लिंग हो जब वो अमिताभ के सामने 'दिल जलों का दिल जला के' गाती हैं.

या फिर जयश्री तलपड़े जो जयश्री टी के नाम से मशहूर हुईं. जैसे 1971 में शर्मिली में जयश्री पर फ़िल्माया और आशा भोंसले की आवाज़ में गाया कैबरे 'रेश्मा उजाला है, मखमली अंधेरा'.

यहाँ अरुणा ईरानी का नाम लेना भी लाज़िमी है. बाद में वो चरित्र किरदारों में नज़र आने लगी लेकिन 70 के दशक में उन्होंने कैबरे के ज़रिए काफ़ी लोकप्रियता पाई जैसे कारवां का गाना 'दिलबर दिल से प्यारे'.

आरडी बर्मन और नैय्यर

संगीत विशेषज्ञ पवन कुमार झा की मानें तो हेलेन कैबरे की सर्वश्रेष्ठ एम्बेसेडर थी जबकि आशा भोंसले और गीता दत्त सबसे अच्छा कैबरे गाती थीं.

उनके मुताबिक़ एसडी और आरडी बर्मन के साथ साथ ओपी नैय्यर ने शायद कैबरे से जुड़े गानों में सबसे अच्छा संगीत दिया है.

फ़िल्म अपना देश के कैबरे 'दुनिया में लोगों को धोखा कहीं हो जाता है' में तो संगीत आरडी ने दिया ही है, आशा भोंसले के साथ गाया भी है.

जहाँ तक कैबरे की बात है तो लता ने कम कैबरे गाए हैं .यहाँ हेलेन पर फ़िल्माया गया इंतक़ाम का कैबरे 'आ जाने जा' अपवाद है जो लता मंगेशकर ने गाया है.

कैबरे और वैंप का नाता

यूँ तो शर्मिला टैगोर से लेकर कई हीरोइनों ने कैबरे किया है. 1967 में एन इवनिंग इन पेरिस में शर्मिला टैगोर ज़ुबी ज़ुबी में कैबरे करते हुई दिखती हैं.

लेकिन उस दौर में अकसर कैबरे फ़िल्म की वैंप या खलनायिका के हिस्से आया करता था. या फिर जहाँ औरत को बिगड़ी हुई या वैस्टर्न दिखाना हो. जैसे पदमा खन्ना पर फ़िल्माया गया 'हुस्न के लाखों रंग'.

हालांकि, 80 के दशक तक आते-आते कैबरे का मिजाज़ बदलने लगा. परवीन बॉबी और ज़ीनत अमान जैसी हीरोइनें उस आदर्श नारी की इमेज से बिल्कुल अलग थीं जो 50 और 60 के दौर में हीरोइन की होती थी. यहाँ वैंप नहीं हीरोइन भी कैबरे कर सकती थी.

पवन कुमार झा के मुताबिक़ हीरोइन के तौर पर परवीन बॉबी को 'जवानी जानेमन' (नमक हलाल) या 'सनम तुम जहाँ मेरा दिल वहाँ' (कालिया) पर कैबरे करते देखना सहज लगने लगा. या फिर द ग्रेट गैंबलर में ज़ीनत अमान का 'रक़्क़ासा मेरा नाम'.

आइटम सॉन्ग बनाम कैबरे

जैसे -जैसे संगीत बदला 90 का दशक आते-आते कैबरे ग़ायब सा होने लगे.

पवन कुमार झा बताते हैं कि 1992 में आई राम गोपाल वर्मा की द्रोही में सिल्क स्मिता पर एक कैबरे फ़िल्माया गया था. ये शायद आरडी बर्मन के साथ आशा भोंसले का आख़िरी कैबरे था.

2000 के बाद से तो आइटम सॉन्ग का ऐसा चलन शुरू हुआ कि कैबरे डांस बेदखल ही हो गया. न तो फ़िल्म की कहानी में कैबरे की कोई जगह बची न संगीत में.

आइटम नंबर ने शायद कैबरे की जगह ले ली - ऐसे गाने जिनका कैबरे की तरह कहानी से कोई लेना देना नहीं होता.

हाँ कभी-कभार एक-आध कैबरे ज़रूर देखने को मिल जाता है जैसे परिणिता में रेखा पर फ़िल्माया गया 'कैसी पहेली है ये ज़िंदगानी' या गुंडे में प्रियंका चोपड़ा.

कैबरे का वो दौर

इसमें कोई शक नहीं कैबरे को बॉक्स ऑफ़िस पर दर्शक खींचना का भरोसेमंद तरीक़ा माना जाता था, इन गानों में सेक्स अपील और सेंशुएलिटी का मिलन होता था.

लेकिन ये भी सच है कि म्यूज़िक और डांस के एक फॉर्म के तौर पर हिंदी फ़िल्मों में कैबरे एक ख़ास कला मानी जाती थी.

और कैबरे के दायरे में रहते हुए भी कई जज़्बात बयां किए जा सकते थे. मसलन पवन कुमार झा ज़िक्र करते हैं बॉन्ड 303 में कैबरे करती हेलेन का जो जासूस जितेंद्र को कैबरे में गूगल की तरह उनकी मंज़िल का पूरा नक्शा बता देती हैं. -"माहिम से आगे वो पुल है उसके बायें तू मुड़ जाना, आगे फिर थोड़ी ऊँचाई है, कोने में है मैख़ाना."

या फिर 1978 की फ़िल्म 'हीरालाल पन्नालाल' का वो कैबरे जिसमें एक पिता बरसों से बिछड़ी बेटी ज़ीनत अमान से दोबारा मिलता है जब वो एक उदास कैबरे कर रही होती हैं,

जाते-जाते ज़िक्र 1973 में आई एक फ़िल्म धर्मा का जिसमें उस दौर की पाँच कैबरे डांसर एक साथ दिखी थीं- हेलेन, जयश्री, बिंदू, सोनिया और फ़रयाल.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why did the cabaret dance in old films
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X