क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

लोकसभा चुनाव 2019: हिंदीभाषी क्षेत्रों में मोदी की लोकप्रियता बरकरार फिर एससी के आधे सांसदों पर क्यों चली तलवार?

Google Oneindia News

नई दिल्ली- 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देशभर की 400 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बाकी सीटें उसने सहयोगी दलों के लिए छोड़े हैं। पार्टी की ओर से घोषित 355 उम्मीदवारों के नामों के विश्लेषण से कई चौंकाने वाली बात सामने आती है। मसलन पार्टी ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC-ST) के जितने प्रत्याशियों की घोषणा की है, उसमें 2014 में जीतने वाले करीब 50% सांसदों का पत्ता कट गया है। जबकि, घोषित उम्मीदवारों में से टिकट कटने वालों का आंकड़ा सिर्फ 18% ही बैठता है। यानी एससी-एसटी उम्मीदवारों के टिकट कटने का का औसत ज्यादा है। इस बीच इंडिया टुडे के पॉलिटिक्ल स्टॉक एक्सचेंज के एक ताजा सर्वे से पता चला है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बीजेपी एवं एनडीए के सांसदों के खिलाफ काफी नाराजगी है। हालांकि, इसी सर्वे में यह भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी लोकप्रियता का ग्राफ उत्तर भारत और पश्चिम भारत में काफी ऊपर चढ़ा है।

हर मौजूदा सांंसद को टिकट की गारंटी नहीं

हर मौजूदा सांंसद को टिकट की गारंटी नहीं

बीजेपी ने 355 घोषित उम्मीदवारों में से 63 मौजूदा सांसदों का टिकट काट दिया है। लेकिन, अगर एसटी-एससी (SC-ST) की बात करें तो 355 सीटों में से पार्टी के जो 49 लोग पिछली बार जीते थे, उनमें से करीब आधे यानी 24 को दोबारा टिकट नहीं दिया गया है। इसका मतलब ये हुआ कि पार्टी ने जिन लोगों पर दोबारा यकीन नहीं किया है, उनमें से 38% इसी वर्ग के मौजूदा सांसद हैं। अगर 2014 की बात करें तो तब बीजेपी कुल 282 लोकसभा सीटों पर जीती थी। इनमें एससी-एसटी (SC-ST) समुदाय के 71 सांसद शामिल हैं। तब अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित कुल 84 सीटों में से पार्टी के 40 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल 47 सीटों में से पार्टी के 27 प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। जबकि पार्टी के 4 अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार सामान्य सीटों से जीतकर संसद पहुंचे थे।

एंटी इंकम्बेंसी सब पर भारी!

एंटी इंकम्बेंसी सब पर भारी!

दरअसल, पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार के बाद से तय लग रहा था कि बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से उबरना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। पार्टी का सबसे बुरा हाल छत्तीसगढ़ में हुआ और इसलिए पार्टी ने वहां के अपने 10 के 10 मौजूदा सांसदों का टिकट काटने का फैसला किया। इनमें से 4 एसटी और 1 एससी समुदाय के हैं। मध्य प्रदेश में पार्टी ने अबतक 5 मौजूदा सांसदों का टिकट काटा है, उनमें से 4 एससी-एसटी सांसद हैं। बीजेपी को पता है कि वह 5 साल से केंद्र में सत्ता में है। 10 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। बिहार, मेघालय और नगालैंड में वो सरकार का हिस्सा है। गोवा में भी वो गठबंधन सरकार की अगुवाई कर रही है। इसलिए पार्टी ने हर लोकसभा सीट से उम्मीदवारों का फीडबैक मंगवाकर उसके आधार पर उन्हें टिकट देने का रास्ता चुना है।

इसी के तहत महाराष्ट्र में भी जिन 7 मौजूदा सांसदों को फिर से टिकट नहीं दिया गया है उनमें से दो एससी और एक एसटी के उम्मीदवार हैं। असम में पार्टी ने 5 नए चेहरों को मौका दिया है। इसमें लखीमपुर सीट पर प्रदान बरुआ को मौका दिया गया है। वे सर्बानंद सोनोवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव जीते थे। 2014 में एसटी के लिए आरक्षित इस सीट पर सोनोवाल ने जीत दर्ज की थी। उधर हिमाचल में भी पार्टी ने 2 सीटों पर उम्मीदवारों को बदलने का फैसला किया है, उनमें से एक अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। जबकि, राजस्थान में पार्टी ने घोषित 16 उम्मीदवारों में से सिर्फ झुंझुनूं की संतोष अहलावत का टिकट काटा है। गौरतलब है कि पिछली बार प्रदेश की सभी 25 सीटें बीजेपी ने जीती थीं और अहलावत राज्य से एकमात्र महिला सांसद थीं। पार्टी ने इसबार उनके स्थान पर नरेंद्र खीचड़ को टिकट दिया है।

लेकिन यूपी की स्थिति थोड़ी अलग मानी जा सकती है। 2014 में पार्टी वहां 80 में से 71 सीटें जीती थी, जिनमें से अबतक 61 उम्मीदवारों को टिकट दिया जा चुका है। इन 61 उम्मीदवारों में से 15 नए नाम हैं, जिनमें से 8 उम्मीदवार आरक्षित सीटों से हैं। यूपी में टिकट कटने वालों में आधे से अधिक अगर एससी वर्ग के हैं, तो उसके पीछे वहां के बदले हुए जातीय समीकरण ने भी अहम रोल निभाया है। महागठबंधन की वजह से पार्टी ने बीएसपी के वोट बैंक को ध्यान में रखकर कुछ नए चेहरों को मौका देने का फैसला किया है। हालांकि बहराइच लोकसभा सीट से उसकी सांसद सावित्री बाई फुले खुद ही पार्टी छोड़कर जा चुकी हैं।

इसे भी पढ़ें- भाजपा ने जारी की उम्मीदवारों की 12वीं लिस्ट, जानिए किसे मिला टिकटइसे भी पढ़ें- भाजपा ने जारी की उम्मीदवारों की 12वीं लिस्ट, जानिए किसे मिला टिकट

बुजुर्गों को आराम, युवा करें काम!

बुजुर्गों को आराम, युवा करें काम!

बीजेपी इस बार अपने उम्रदराज सांसदों को भी दोबारा लोकसभा नहीं भेजने की नीति पर काम कर रही है। इसी नीति के तहत पार्टी ने अबतक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, करिया मुंडा, भगत सिंह कोश्यारी, बी सी खंडूड़ी जैसे अपने बुजुर्ग एवं वरिष्ठ सांसदों को टिकट नहीं देने का फैसला किया है। बलिया के सांसद कलराज मिश्र और मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण पहले ही चुनावी रेस से हट चुके थे। दरअसल पार्टी 75 साल से ऊपर के नेताओं को मंत्री या सांसद नहीं बनाए जाने की एक नीति बनाकर चल रही है। माना जा रहा है कि इस नीति की वजह से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का टिकट भी फंस सकता है। वो इंदौर से पार्टी की मौजूदा सांसद हैं और बीजेपी के लिए चुनावी अभियान में भी उतर चुकी हैं।

इसे भी पढ़ें- इन 2 राज्यों में 70% लोग पीएम मोदी से नाखुश, उत्तर भारत में 60 फीसदी खुशइसे भी पढ़ें- इन 2 राज्यों में 70% लोग पीएम मोदी से नाखुश, उत्तर भारत में 60 फीसदी खुश

Comments
English summary
Why did the BJP have to change its almost half of the SC-ST's face so far?
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X