दिल्ली में 'आप' (AAP) ने इन छह चेहरों को ही क्यों चुना?
नई दिल्ली- दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सात लोकसभा सीटों में से छह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा बहुत सोच समझकर की है। सारे नाम वो हैं, जो शुरुआती दिनों से ही पार्टी से जुड़े हैं और जमीन से लेकर टीवी डिबेट तक में आम आदमी पार्टी का चेहरा रहे हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपने भरोसेमंद चेहरों पर इसलिए भी भरोसा किया है कि अगर आखिरी समय में कांग्रेस से तालमेल हो जाय, तो इनमें से कोई भी उनके कहने पर तत्काल अपनी उम्मीदवारी छोड़ने के लिए राजी हो जाएगा। इसके साथ-साथ पार्टी ने जातिगत समीकरणों का भी भरपूर ख्याल रखने की कोशिश की है।
वफादारी को इनाम
आतिशी, राघव चड्ढा, दिलीप पांडे ये सारे वो नाम है, जिन्हें दिल्ली में ही नहीं दिल्ली से बाहर के लोग भी जानते हैं। ये सारे वो चेहरे हैं, जिन्होंने मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल का हर मंच पर बचाव किया है।
उन्हें भरोसा है कि जिस तरह से पुराने किचेन कैबिनेट के कुछ सदस्यों ने धोखा दिया है, ये लोग वैसा नहीं करेंगे। इन तीनों के अलावा बाकी उम्मीदवार भी शुरू से केजरीवाल एंड कंपनी के भरोसेमंद और चहेते रहे हैं।
काम का भी रखा ध्यान
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने जिन तीन चीजों पर बहुत फोकस किया है, उनमें से बिजली-पानी, मोहल्ला क्लिनिक के अलावा स्कूली शिक्षा भी है। माना जाता है कि दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों की नकेल कसने में अगर केजरीवाल सरकार कामयाब रही है, तो उसमें आतिशी का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में स्कूली फीस पर नियंत्रण और पैरेंट्स-टीचर मीटिंग का भी नाम लिया जा सकता है, जो आम आदमी पार्टी का प्रमुख चुनावी मुद्दा भी होने जा रहा है।
इसी तरह आतिशी, राघव चड्ढा और दिलीप पांडे 2013 विधानसभा चुनावों से लेकर आगे तक पार्टी का मैनिफेस्टो तैयार करने में भी अहम योगदान दे चुके हैं। राघव चड्ढा ने दक्षिणी दिल्ली में पानी की समस्या दूर करने के लिए काफी मशक्कत की है और उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है।
वहीं नई दिल्ली सीट से 'आप' उम्मीदवार बृजेश गोयल पिछले 7 साल से दिल्ली में व्यापारियों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और उनके कल्याण के क्षेत्र में भी काफी काम किया है। पार्टी को लगता है कि मध्यम वर्ग और सरकारी कर्मचारियों के दबदबे वाली सीट पर गोयल की दावेदारी काम आ सकती है।
वैसे ही उत्तरी पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार गुगन सिंह आईटीबीपी से रिटायर्ड होने के बाद गांव और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं। उन्होंने बुनकर समाज के कल्याण में भी योगदान दिया है। जबकि, पंकज गुप्ता स्थापना के समय से ही पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं। वे कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र में पार्टी प्रभारी की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं।
जातिगत समीकरणों को समर्पित
केजरीवाल की पार्टी जातिय समीकरणों के इस्तेमाल में दूसरों से अलग नहीं है, यह पिछले लोकसभा चुनावों में ही साफ हो गया था। तब चांदनी चौक से पार्टी उम्मीदवार आशुतोष के लिए पहली बार गुप्ता टाइटल का प्रयोग सामने आया था। क्योंकि, उस क्षेत्र में बनिया मतदाताओं की भूमिका निर्णयाक मानी जाती है। अलबत्ता वहां के लोगों ने आशुतोष गुप्ता की जगह दूसरे बनिया डॉक्टर हर्षवर्धन को चुनकर लोकसभा में भेज दिया था।
इसबार
भी
जैसे
ही
पूर्वी
दिल्ली
से
आतिशी
को
उम्मीदवार
बनाने
की
पहल
शुरू
हुई
,
तो
सबसे
पहले
उन्होंने
अपने
नाम
के
आगे
से
'मार्लेना'
टाइटल
हटा
लिया।
क्योंकि,
उनको
और
उनकी
पार्टी
को
ये
डर
था
कि
'मार्लेना'
टाइटल
का
विरोधी
गलत
फायदा
उठाकर
खेल
बिगाड़
सकते
हैं।
यानी,
पार्टी
ने
पूरा
ध्यान
इस
बात
पर
भी
दिया
है
कि
जात-धर्म
इन
समीकरणों
में
भी
वो
बीजेपी
को
चुनौती
दे
सके।
इसलिए फिर इसबार 35 प्रतिशत बनिया और पंजाबी व्यापारियों वाले चांदनी चौक से पंकज गुप्ता, 21 फीसदी से ज्यादा दलित वोट वाले उत्तर-पश्चिमी (आरक्षित) दिल्ली से गुगन सिंह को उम्मीदवार बनाया गया।
इसी तरह राघव चड्ढा मुस्लिम,पूर्वांचली और वैश्यों के वोट काटे जाना का मुद्दा भी उठा चुके हैं, इसलिए कहा तो यहां तक जा रहा है कि अगर कांग्रेस से समझौता हो भी गया, तो केजरीवाल दक्षिणी दिल्ली की सीट कतई नहीं छोड़ेंगे।
जीतने लायक उम्मीदवार पर लिया चांस
सबसे बड़ी बात ये है कि पार्टी ने जीतने लायक प्रत्याशी पर दांव लगाया है। मसलन दिलीप पांडे को उत्तर-पूर्वी दिल्ली से उतारा गया है, जहां बिहार और पूर्वी यूपी के मतदाताओं की संख्या 45 प्रतिशत यानी निर्णायक है। उत्तर प्रदेश में जन्मे दिलीप पांडे का पार्टी कार्यकर्ताओं पर भी अच्छी पकड़ है।
एक बात और कि भले ही पार्टी ने अब जाकर इनकी उम्मीदवारी घोषित की हो, लेकिन इन सभी को पांच-छह महीने पहले ही अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव की तैयारियां करने का काम सौंप दिया गया था। यानी, पार्टी के लगभग सभी उम्मीदवार करीब छह महीनों से उन्हीं सीटों पर एक संभावित प्रत्याशी के रूप में अपनी जमीन तैयार कर चुके हैं, इसलिए वो अपने विरोधी उम्मीदवारों को कड़ी चुनौती देने में ज्यादा सक्षम साबित हो सकते हैं।
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