शरद पवार ने मोदी का ऑफर ठुकरा कर उद्धव को क्यों बनाया CM ? इनसाइड स्टोरी
नई दिल्ली- महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार बनाने में शरद पवार ने जो भूमिक निभाई है, उसके चलते उन्हें सियासी गलियारों का सबसे माहिर चाणक्य बताया जाने लगा है। इस बात में कोई शक नहीं कि पिछले दो हफ्तों में एनसीपी प्रमुख देश के सबसे धुरंधर राजनीतिज्ञ साबित हुए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से लेकर अबतक की हालात को देखें तो इस राजनेता ने जितने माहिर तरीके से राजनीतिक गोटियां सेट की हैं, वह मामूली नहीं है। याद कीजिए जबसे परिणाम आया था, पवार साहब एक ही बात दोहराते फिर रहे थे कि हमें तो विपक्ष में बैठने का मैनडेट मिला है। लेकिन, आज सच्चाई ये है कि जिसे जनता ने मैनडेट देकर भेजा और सबसे बड़ी पार्टी बनाया, उसे विपक्ष में बैठना पड़ा है और देश की इकोनॉमिक पावर हाउस में पवार साहब की पसंदीदा और उनकी इच्छा से बनी हुई सरकार काम कर रही है। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों पवार ने पीएम मोदी का ऑफर ठुकरा कर खुद के लिए मौजूदा रोल चुना है। क्योंकि, अगर मोदी की मानते तो जितनी हिस्सेदारी महाराष्ट्र में उनकी पार्टी को अभी मिली है, उतनी तब भी मिल सकती थी और ऊपर से केंद्र सरकार में शामिल होने का भी मौका मिल सकता था।
2014 को याद कीजिए, तब क्या हुआ था?
एनसीपी सुप्रीमो के मौजूदा रवैये को समझने के लिए थोड़ा इस कहानी की बैकग्राउंड खंगालनी पड़ेगी। 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना अलग-अलग लड़ी थी। तब भी 288 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। जबकि, एनसीपी को 62 सीटें मिली थीं। उस दौरान पवार साहब की पार्टी ने बीजेपी सरकार को बिना शर्त समर्थन देने का ऑफर दिया था। लेकिन, बीजेपी उसके साथ सरकार बनाने को राजी नहीं हुई और शिवसेना के समर्थन मिलने तक का इंतजार किया था। आखिरकार भाजपा ने शिवसेना के समर्थन से ही सरकार बनाई।
2014 का बदला तो नहीं ले रहे पवार?
पिछले तीन-चार दिनों में शरद पवार ने टीवी चैनलों को दिए ताबड़-तोड़ इंटरव्यू में जो खुलासे किए हैं, वह सबसे ज्यादा भाजपा और उसमें भी प्रधानमंत्री मोदी को असहज करने वाले हैं। जब तक बीजेपी या पीएमओ की ओर से कोई आधिकारिक खंडन नहीं आता तब तक तो मानना ही पड़ेगा कि जो पवार कह रहे हैं, उस बात में जरूर कुछ न कुछ सच्चाई है। एक मराठी चैनल को दिए इंटरव्यू में पवार ने कहा कि उन्होंने साथ मिलकर काम करने का मोदी का ऑफर ठुकरा दिया। अगर एबीपी माझा और एनडीटीवी के इंटरव्यू में उनकी बातों पर ध्यान दें तो एकबार ऐसा भी लगता है कि कहीं एनसीपी प्रमुख ने बीजेपी से 2014 का बदला तो नहीं ले लिया है। क्योंकि, तब भाजपा ने उनका ऑफर ठुकराया था, आज उन्हें मौका मिला तो उन्होंने ठुकरा दिया?
ऑफर मान लेते तो क्या मिलता ?
राजनीति का को नया छात्र यह समझ सकता है कि पवार ने प्रधानमंत्री का ऑफर ठुकरा कर गलती कर दी। बीजेपी के साथ जाने पर उनकी बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में भारी-भरकम मंत्रालय मिल सकता था। केंद्र में साथ आने का मतलब था कि एनसीपी मोदी सरकार की एक अहम सहयोगी बन सकती थी। एनडीए के सहयोगियों में भी उसका दबदबा बन सकता था। रही बात महाराष्ट्र की तो जितना अभी मिला है, उतना तो बीजेपी के साथ सरकार बनाने पर भी मिल ही जाता। उल्टे अभी सरकार चलाना कितना कठिन साबित हो सकता है, इसका खुलासा तो पवार अपने इंटरव्यू में खुद ही कर चुके हैं। विभागों को लेकर हुई बातचीत में उनकी कांग्रेस नेताओं के साथ गरमा-गरम बहस भी हुई थी। जबकि, बीजेपी के साथ सरकार ज्यादा स्थाई होने की संभावना थी। केंद्र में भी अपनी सरकार होने का मजा भी कुछ और होता। लेकिन, फिर भी पवार ने मोदी का ऑफर ठुकराना ही बेहतर क्यों समझा?
अजित पर भी चलेगा पवार का 'पावर'!
मंगलवार को एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में शरद पवार ने कुछ और बड़े खुलासे किए हैं। मसलन, उनके भतीजे अजित पवार, पूर्व सीएम और देवेंद्र फडणवीस के संपर्क में थे ये बात उनको पता थी। अलबत्ता, वह उनके साथ मिलकर सरकार बना लेंगे, उनके मुताबिक सिर्फ यही वे नहीं जानते थे। वे अजित की नाराजगी का दोष भी कांग्रेस पर ही मढ़ रहे हैं। अब पवार की बातों से लग रहा है कि भतीजे की ओर से माफी मांग लिए जाने के बाद वह उनसे सारी नाराजगी भुला चुके हैं। एनसीपी से जो संकेत मिल रहे हैं और खुद पवार जिस तरह से बोल रहे हैं, उससे भी यह लगभग तय ही लग रहा है कि अगले मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अजित पवार एकबार फिर से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल सकते हैं। यहां यह समझने की बात है कि सरकार अकेले एनसीपी की तो नहीं है। इसमें शिवसेना और कांग्रेस भी सहयोगी है। फिर ऐसा क्या है कि अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाए जाने की बात चल रही है और शिवसेना या कांग्रेस में उसका विरोध करने की ताकत नहीं है। कांग्रेस कैसे बोल सकती है, जब पवार के दम पर ही उसे सत्ता का स्वाद चखने को मिल रहा है। रही बात उद्धव ठाकरे की तो इसके बारे में समझना बेहद रोचक है।
बाल ठाकरे की तरह 'सुपर सीएम' बन गए पवार!
महाराष्ट्र की राजनीति ने अभी शिवसेना और उद्धव ठाकरे को उस जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां शरद पवार के साथ चलना उसकी मजबूरी बन चुकी है। शिवसेना को मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए, शरद पवार की कृपा से वह मिल चुकी है। यानि उद्धव सीएम तो बन गए हैं, लेकिन सरकार का रिमोट कंट्रोल एनसीपी चीफ के हाथों में चला गया है। वह खुद सत्ता में न रहकर भी आज महाराष्ट्र के 'सुपर सीएम' की भूमिका में आ चुके हैं। महाराष्ट्र की सत्ता में आज उनका वही रोल है, जो 90 के दशक के मध्य और आखिर में तत्कालीन शिवसेना प्रमुख और उद्धव के पिता बाल ठाकरे का हुआ करता था। अगर पवार बीजेपी के साथ जाते तो वह जूनियर की भूमिका में होते। यहां उनके पास सत्ता की चाबी है। महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में सत्ता की कमान अपने हाथों में रखना मामूली नहीं है, जबकि महाराष्ट्र की जनता ने खुद उन्हीं के मुताबिक इसके लिए उन्हें मैनडेट नहीं दिया है। वह महाराष्ट्र में इस वक्त शिवसेना और कांग्रेस दोनों पर भारी पड़ रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने मोदी का ऑफर ठुकराने में जरा भी देर नहीं की।
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