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NRC को लेकर मोदी सरकार ने फिर क्यों की गोलमोल बात?

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को कहा कि अभी तक केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लाने का फ़ैसला नहीं किया है. लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने कहा, "अभी तक सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटिज़न्स (एनआरआईसी) को राष्ट्रीय स्तर पर तैयार करने को लेकर कोई भी निर्णय नहीं लिया है." केंद्रीय मंत्री का ये बयान उस समय आया 

By आदर्श राठौर
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महिला प्रदर्शनकारी
AFP
महिला प्रदर्शनकारी

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को कहा कि अभी तक केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लाने का फ़ैसला नहीं किया है.

लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने कहा, "अभी तक सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ इंडियन सिटिज़न्स (एनआरआईसी) को राष्ट्रीय स्तर पर तैयार करने को लेकर कोई भी निर्णय नहीं लिया है."

केंद्रीय मंत्री का ये बयान उस समय आया जब मंगलवार को डीएमके, टीएमसी, सीपीआई, सीपीएम, आरजेडी, एसपी और बीएसपी नागरिकता संशोधन क़ानून, एनआरसी और एनपीआर पर चर्चा की मांग कर रहे थे. विपक्षी दलों ने इसके लिए दोनों सदनों में नोटिस भी दिए थे.

संसद के पिछले सत्र में नागरिकता संशोधन क़ानून दोनों सदनों से पारित हुआ था, जिसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया था.

कई राज्यों में ये प्रदर्शन हिंसक हो गए थे जिनके चलते जान-माल का भी नुक़सान हुआ था.

नित्यानंद राय के बयान के मायने क्या?

नागरितका संशोधन क़ानून लाने के बाद एनआरसी लागू किए जाने को लेकर पैदा हुई आशंकाओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि सरकार में किसी भी मंच पर एनआरसी को लेकर चर्चा नहीं हुई है. मगर गृहमंत्री अमित शाह ने पूरे देश में एनआरसी लाने की बात कही थी.

अब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जो कहा है उसमें स्पष्ट तौर पर ये नहीं कहा गया है कि देशभर में एनआरसी लाई जा रही है या नहीं, या फिर अभी नहीं लाई जा रही तो कब लाई जाएगी. बस इतना कहा गया है कि इस पर फैसला नहीं हुआ है.

एनआरसी को लेकर पहले से ही फैली अनिश्चितता और संशय के बीच केंद्रीय गृहराज्य मंत्री के ताज़ा बयान को किस तरह से देखा जाए?

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी का कहना है कि इस बयान के बाद अनिश्चितता का माहौल और गहरा गया है.

उन्होंने कहा, "एनआरसी को लेकर जो अनिश्चितता है, उसी की वजह से सारा कन्फ्यूज़न है. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में और बाहर भी कहा कि सीएए के बाद वे एनआरसी लाने वाले हैं. उन्होंने दोनों को आपस में जोड़ा, इसी से डर फैला."

"फिर प्रधानमंत्री ने ये कहा कि हमारी सरकार के किसी भी मंच पर एनआरसी पर बात नहीं हुई. मगर उन्होंने इसे नहीं लने को लेकर कुछ नहीं कहा. फिर अमित शाह ने कहा कि फ़िलहाल हम इसे नहीं लाएंगे. इस 'फ़िलहाल नहीं' का मतलब है कि कल को कभी न कभी तो लाई ही जा सकती है. उन्होंने ऐसा भी नहीं कहा कि हम इतने साल तक नहीं ला रहे और उसके बाद विचार होगा. जब तक ये स्पष्टता नहीं होगी, तब तक संशय बना रहेगा."

नरेंद्र मोदी
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नरेंद्र मोदी

सरकार के पास विकल्प

वहीं वरिष्ठ पत्रकार अदिति फड़नीस का कहना है कि नित्यानंद के बयान से लगता है कि सरकार एनआरसी को लेकर एक पृष्ठभूमि तैयार कर रही है.

उन्होंने कहा, "सरकार ने अब तक इन चीज़ों को स्पष्ट नहीं किया है कि एनआरसी को कैसे लाया जाएगा, ये पूरे देश में आएगा या फिर इसका कोई पायलट प्रॉजेक्ट लाया जाएगा. हालांकि, गृहमंत्री ने कहा था कि हम पूरे देश में लाने की सोच रहे हैं."

"नित्यानंद ने संसद में जो लिखित जवाब दिया है, वह एक तरह का ट्रायल बलून है कि किन परिस्थितियों में हम इसे वापस भी ले सकते हैं या फिर सांकेतिक रूप से भी ला सकते हैं. ये जवाब एक तरह का संकेत है कि सरकार के पास सभी विकल्प खुले हैं. कोई सरकार किसी बात से एकदम पीछे नहीं हटती. हालांकि ऐसी सुगबुगाहट रह सकती है कि हम इसे लागू कर सकते हैं या इस पर पुनर्विचार करेंगे."

नित्यानंद राय
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नित्यानंद राय

एनआरसी को लेकर चिंता कितनी जायज़?

अभी भी देश के कई हिस्सों में लोग इस क़ानून को वापस लिए जाने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए हैं. प्रदर्शनकारियों की मुख्य चिंता नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को भविष्य में लिंक किए जाने को लेकर है.

आसान भाषा में हम एनआरसी को भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट के तौर पर समझ सकते हैं. असम में एनआरसी लागू किए जाने पर जो लोग नागरिकता साबित नहीं कर पाए, उन्हें ख़ास डिटेन्शन सेंटरों में जाना पड़ा है.

विपक्षी दल भी इस बात को लेकर चिंता जताते रहे हैं कि अगर देश में असम की तर्ज़ पर एनआरसी को लागू किया गया तो इससे मुसलमान समुदाय के उन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा जिनके पास नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज़ नहीं होंगे.

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "लोगों को डर है कि सीएए और एनआरसी को जोड़ा जाएगा. मुसलमानों की चिंता है कि उस स्थिति में अपने कागज़ न दिखा पाने वाला हिंदू तो बच जाएगा मगर उनकी नागरिकता छीनी जा सकती है. इस कारण कई लोगों के मन में डर पैदा हो गया है."

दिल्ली के शाहीन बाग़ का मामला

नीरजा चौधरी का मानना है कि इस मामले को लेकर जो संशय था, वो नित्यानंद राय के ताज़ा बयान से दूर नहीं हो पाया बल्कि जो कुछ सरकार ने पहले कहा था, उसी को दोहराया गया है.

विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र की बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार चुनावों में लाभ के लिए ध्रुवीकरण के इरादे से नागरिकता संशोधन क़ानून लाई है और इसीलिए वह बार-बार एनआरसी का भी ज़िक्र कर रही है. हालांकि, बीजेपी इन आरोपों को निराधार बताती है.

शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून और संभावित एनआरसी के विरोध में चल रहा प्रदर्शन दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है. शाहीन बाग़ में पिछले कई हफ़्तों से बड़ी संख्या में महिलाएं धरने पर बैठी हैं.

इसके बाद पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जहां पर कथित अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के आकर बस जाने का मुद्दा बीजेपी शुरू से उठाती रही है और वहां पार्टी के स्थानीय नेता लंबे समय से एनआरसी लाए जाने की मांग कर रहे हैं.

तो क्या ये सब चुनावों को देखकर ही किया जा रहा है और क्या चुनावों के बाद यह मुद्दा ग़ुम हो जाएगा? वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अदिति फड़नीस का मानना है कि ऐसा नहीं लगता.

उन्होंने कहा, "हालांकि, इसे चुनाव के लिए लाया गया है मगर चुनाव के नतीजे क्या रहेंगे, उसके आधार पर एनआरसी लागू करने या न करने पर फ़ैसला लिया जाएगा, यह मानना ग़लत है."

एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन
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एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन

बीजेपी का घोषणापत्र

अदिति फड़नीस मानती हैं कि एनआरसी को लाया जाना एक तरह से ज़रूरी है और इसे किसी राजनीतिक पार्टी के चश्मे से ही नहीं देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, "यह मुद्दा बीजेपी के घोषणापत्र में भी था. बीजेपी कई सालों से इस बारे में सोच रही थी. अगर हम सोचें कि बीजेपी के अलावा किसी और पार्टी की सरकार है, तब भी भारत में ये एक ज्वलंत मुद्दा है कि जो लोग देश के नागरिक नहीं हैं, उन्हें सब्सिडी या अन्य लाभ क्यों मिलें?"

"देश के संसाधन नागरिकों के लिए हैं. सभी उनका इस्तेमाल करेंगे सिस्टम चरमरा कर गिर जाएगा. दुनिया के कई देश ऐसे हैं जो इसी चीज़ से जूझ रहे हैं. चूंकि देश में बीजेपी की सरकार है तो इसमें नया ट्विस्ट है. मगर देश के सामने समस्या तो है ही. हमें निष्पक्ष होकर देखना होगा, किसी एक पार्टी के नज़रिये से नहीं देख सकते."

प्रदर्शनकारी
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प्रदर्शनकारी

सरकार भ्रम दूर नहीं कर रही?

देश के विभिन्न हिस्से में धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन क़ानून असंवैधानिक है क्योंकि इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है और यही भेदभाव आगे चलकर देश के वैध नागरिक मुसलमानों के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है जो एनआरसी लागू होने पर दस्तावेज़ लागू नहीं कर पाएंगे.

सरकार कई मंचों से दोहरा चुकी है कि नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है. वो यह भी कह चुकी है कि 'फ़िलहाल' एनआरसी लाने की भी उसकी कोई योजना नहीं है. लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों की चिंताएं दूर नहीं हो पा रहीं.

विपक्षी दल लगातार सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वो जानबूझकर भ्रम बनाए रखना चाहती है. वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी भी मानती हैं कि सरकार की ओर से इस संबंध में पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे और इसी कारण उसकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं.

वो कहती हैं, "सरकार की ओर से भ्रम दूर करने की कोशिश नहीं हो रही. वह कह रही है कि CAA किसी के ख़िलाफ़ नहीं है और किसी की नागरिकता नहीं लेगा. मगर देश के युवाओं को लगता है कि ये क़ानून धर्म के आधार पर बना है और संविधान के समानता के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है."

"बेशक यह आज भारत के मुसलमानों की नागरिकता नहीं छीन रहा मगर शक़ सरकार की नीति को लेकर नहीं, नीयत को लेकर हो रहा है. नीयत को ही वे स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं."

"एनआरसी को लेकर फैले संशय को दूर न करना भी शक़ के घेरे में आ जाता है कि आप दरअसरल चाहते क्या हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि कहीं आप अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक तो नहीं बनाना चाहते."

महिला प्रदर्शनकारी
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महिला प्रदर्शनकारी

अनिश्चितता का माहौल

वहीं अदिति फड़नीस का मानना है कि ये पूरा मामला पेचीदा है. वो कहती हैं, "जो लोग भारत के नागरिक हैं, उन्हें नागरिक होने का पूरा अधिकार है. बीजेपी भी इससे इनकार नहीं कर रही है. वो नहीं कह रही कि धर्म के आधार पर हम भारत के नागरिकों के बीच भेदभाव करें."

"मगर बात यहां उनकी है जो भारत के नागरिक नहीं हैं. यह पेचीदा मामला है कि भारत का नागरिक कौन है और किस आधार पर उसे नागरिक माना जाए. मुझे नहीं लगता कि जो लोग दिल्ली के शाहीन बाग़ में धरने पर बैठे हैं, वे उन लोगों को कुछ किए जाने से मना करेंगे जो भारत के नागरिक नहीं हैं."

वहीं नीरजा चौधरी का मानना है कि सरकार की ओर से संवाद न होने के कारण भी अनिश्चितता लगातार बनी हुई है.

वह कहती हैं,"शाहीन बाग़ और अन्य जिन भी जगहों पर प्रदर्शन हो रहे हैं, वहां महिलाओं को डर है कि उन्हें डिटेन्शन कैंप में डाला जाएगा. लोगों के मन में डर घर कर गया है. अगर इसे दूर करना था तो प्रधानमंत्री को आश्वस्त करना चाहिए था और प्रदर्शन कर रहे समूहों को बुलाना चाहिए था."

"अगर महिलाएं 50 दिन से अधिक वक्त से लगातार प्रदर्शन कर रही हैं तो कहीं न कहीं कुछ तो है जो उन्हें परेशान कर रहा है. उनके शक़ को दूर कीजिए और ये सरकार का फ़र्ज़ बनता है. इसीलिए लोगों के मन में बड़ा सवाल है कि सरकार की नीयत क्या है."

अदिति फड़नीस भी मानती हैं कि एनआरसी को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता ने अब अविश्वास को जन्म दे दिया है, मगर देश में जो अवैध प्रवासियों की समस्या है, उससे भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.

प्रदर्शन कर रहे लोगों को लेकर वह कहती हैं, "सरकार को उनसे बात करके समझाना चाहिए कि हम किसी धर्म विशेष के आधार पर दो लोगों के बीच अंतर नहीं करना चाहते हैं."

वो मानती हैं कि इस पूरे मामले में विश्वास की कमी हो गई है लेकिन वो कहती हैं कि "इसके मूल में जो समस्या है, उसे नकारा भी नहीं जा सकता."

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English summary
Why did Modi government again Equivocate on NRC?
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