करीम लाला को दाऊद इब्राहीम ने क्यों नहीं बनाया निशाना?
अपनी मौत के 18 साल बाद, गुज़रे दौर के डॉन करीम लाला को फिर से ज़िंदा किया जा रहा है. महाराष्ट्र की शिव सेना के नेता संजय राउत ने अनजाने में वो विषय छेड़ दिया जिस पर पहले बात नहीं होती थी. उन्होंने दावा किया कि इंदिरा गांधी माफ़िया डॉन करीम लाला से मिला करती थीं. इसके साथ ही करीम लाला और उनके कारनामे चर्चा में आ गए हैं.
अपनी मौत के 18 साल बाद, गुज़रे दौर के डॉन करीम लाला को फिर से ज़िंदा किया जा रहा है. महाराष्ट्र की शिव सेना के नेता संजय राउत ने अनजाने में वो विषय छेड़ दिया जिस पर पहले बात नहीं होती थी.
उन्होंने दावा किया कि इंदिरा गांधी माफ़िया डॉन करीम लाला से मिला करती थीं. इसके साथ ही करीम लाला और उनके कारनामे चर्चा में आ गए हैं.
साउथ मुंबई में पाइधुनी गेटो में करीम लाला के दफ़्तर में बड़ी शान के साथ लगाई गई एक तस्वीर पर अचानक बात होने लगी है और इसके आधार पर हर कोई यह दावा कर रहा है कि इंदिरा गांधी ने करीम लाला से मुलाक़ात की थी.
दाऊद इब्राहिम के मुंबई का एल कपोन बनने से पहले (माना जता है कि एल कपोन दुनिया के सबसे ख़रनाक माफ़िया सरगना थे) करीम लाला और उनकी क़िस्म के लोगों को सामाजिक दायरों में अवांछित समझा जाता था.
सोने के तस्कर हाजी मस्तान मंत्रालय में जाकर सरकार में बैठे लोगों से मिला करते थे और हिंदू-मुस्लिम तनाव को कम करने के लिए हुई कई बातचीतों में भी वह शामिल रहे. अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दौर हाजी मस्तान और करीम लाला दोनों ने ख़ुद को अपने संगठनों के लिए समर्पित कर दिया था.
हाजी मस्तान ने दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ नाम का राजनीतिक संगठन बनाया था और करीम लाला ने पख़्तून जिरगा-ए-हिंद नाम से संगठन बनाया था, जिसने अफ़ग़ानिस्तान से भारत आई पश्तूनों या पठानों के लिए काम किया.
करीम लाला ख़ुद भी पठान थे और बहुत कम उम्र में भारत आए थे. भले ही वह फ्रंटियर गांधी ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान से प्रभावित थे मगर उन्होंने जो रास्ता चुना वो फ्रंटियर गांधी के आदर्शों और विचारधारा से ज़रा भी मेल नहीं खाता था.
सबसे पहले ब्याज पर पैसा लगाना शुरु किया
भारत आने के बाद शुरुआती सालों में अब्दुल करीम ख़ान उर्फ़ करीम लाला ने जुए के क्लब खोले. जो लोग यहां आकर पैसा हारते, वे अपने घर का खर्च चलाने के लिए ख़ान के आदमियों से उधार लिया करते थे.
इस परंपरा को बदलने के लिए ख़ान ने सोचा कि अगर हर महीने अगर उधार पर कर्ज़ वसूला जाए तो फिर लोग उनसे उधार लेना बंद कर देंगे. मगर लाला ने पाया कि हर महीने की 10 तारीख़ को उनका गल्ला ब्याज़ के पैसे से लबालब हो जाता.
इस तरह से लाला ने ब्याज़ के लिए पैसे उधार देने का काम शुरू कर दिया.
इसके बाद लाला ने अपने लड़कों की मदद से उन किराएदारों से मकान खाली करवाने का काम भी शुरू कर दिया जो इसके लिए राज़ी नहीं होते थे.
50 साल की उम्र तक तक लाला की शख़्सियत काफ़ी बड़ी हो गई थी. इस बीच किसी मुरीद ने लाला को चलने के लिए सोने की नक्काशी वाली एंटीक लाठी तोहफ़े में दी थी.
जब कभी लाला किसी पार्टी या सामाजिक समारोहों में जाते और अगर अपनी लाठी किसी जगह रखकर इधर-उधर चले जाते तो किसी की हिम्मत नहीं होती कि इसे छूएं. लोग उस जगह को खाली छोड़ देते, ये समझते हुए कि ये जगह लाला की है.
लाला के कुछ करीबी तत्वों के दिमाग़ में यहीं से ख़्याल आया कि किराएदारों से मकान वगैरह खाली करवाने के लिए क्यों न लाला की जगह उनकी छड़ी के ज़रिये उनके प्रभाव का इस्तेमाल किया जाए.
जब कोई किरायेदार मकान खाली करने से इनकार करता, उसके दरवाज़े के बाहर छड़ी रख दी जाती और फिर वो किराएदार लाला से पंगा न लेने के डर से तुरंत खाली कर देता. इस लाठी को किरायेदारों के लिए एक तरह से मकान खाली करने का नोटिस समझा जाने लगा.
गंगूभाई ने बांधी करीम लाला को राखी
दक्षिण मुंबई में गेटो में इस तरह के बाहुबल भरे तौर-तरीकों से बावजूद लाला की पहचान ईमानदारी और न्याय के लिए होती थी. गंगूभाई काठेवाली दक्षिण मुंबई के कमाठीपुरा लेड लाइट इलाक़े में काफ़ी चर्चित थीं.
शौक़त ख़ान नाम के एक पठान ने जब दो बार उनका बलात्कार किया तो वो करीम लाला के पास आईं. करीम लाला ने इस मामले में न सिर्फ़ दख़ल दिया बल्कि उन्हें पठान से बचाया भी और अपने आदमी भेजकर शौकत ख़ान की पिटाई भी करवाई.
और फिर ये किस्सा चर्चित है कि गंगूभाई ने अपनी रक्षा करने वाले भाई... करीम लाला की कलाई पर राखी बांधी थी.
बॉलिवुड निदेशक संजय लीला भंसाली अब इसी पर पर फ़िल्म बना रहे हैं जिसमें आलिया भट्ट, गंगूबाई की भूमिका में होंगी.
ये बात ज़्यादा लोगों को मालूम नहीं है कि मुंबई में माफ़िया को उभारने में करीम लाला ने बड़ी भूमिका निभाई थी. करीम लाला ने हाजी मस्तान के साथ क़रीबी बढ़ाई और सोने की तस्करी के काम में अपने बाहुबल की मदद करने का वादा किया.
करीम लाला की मदद के बिना हाजी मस्तान के लिए सोने की तस्करी के धंधे में चरम पर पहुंचाना संभव ही नहीं था. और साथ ही अगर दाऊद इब्राहिम के पिता पुलिस कॉन्स्टेबल इब्राहिम कासकर के साथ हाजी मस्तान औरकरीम लाला की दोस्ती नहीं होती तो दाऊद को कभी इनके जैसा बनने की प्रेरणा नहीं मिलती.
पुलिस कॉन्स्टेबल इब्राहिम कास्कर भले ही करीम लाला या हाजी मस्तान से आर्थिक मदद लेने से बचते रहे मगर उनके बेटे दाऊद को इससे परहेज़ नहीं था. दाऊद ने इन डॉन्स का अनुसरण किया और अपने इरादों को पूरा करते हुए इनकी चमक को फीका भी कर दिया.
इमर्जेंसी के बाद हाजी मस्तान और करीम लाला, दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. इससे एक नया दौर शुरू हुआ.
हाजी मस्तान का इरादा बॉलीवुड में प्रवेश करने का था और करीम लाला ने अपनी छवि की फिक्र करते हुए अपना क़दम बढ़ाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया.
सात फ़ुट के करीम लाला को उनके क़द, ट्रेड मार्क सफ़ारी सूट और गहरे काले रंग के चश्मे के लिए पहचाना जाता था.
अब तक दाऊद इब्राहीम की पहचान एक खतरनाक गैंगस्टर की बन गई थी जो पठानों को निशाने पर ले रहा था.
भले ही दाऊद ने करीम लाला की भतीजी समद ख़ान और दूसरे क़रीबी लोगों की जान ली मगर करीम लाला को कभी निशाने पर नहीं लिया.
आख़िकरकार दोनों के बीच मक्का में मुलाक़ात हुई, दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और समझौता हो गया.
हाजी मस्तान और करीम लाला की मुसलमान बहुत इज्जत करते थे और उन्हें अपने सभी कार्यक्रमों में आमंत्रित करते थे. दोनों सोशली बहुत एक्टिव थे और शायद इन्हीं में किसी मौक़े पर वह इंदिरा गांधी के साथ कैमरे में कैद हो गए.
वैसे संयोग से, करीम लाला कभी क़ानून से नहीं भागे और न ही उनके नाम पर अपराधों की कोई लंबी फेहरिस्त थी.
उन्हें 90 के दशक में एक बार जबरन मकान खाली करवाने के मामले में ज़रूर गिरफ़्तार किया गया था.
(वरिष्ठ पत्रकार वेल्ली थेवर इन्वेस्टिगेटिव पत्रकार हैं. 30 सालों तक उन्होंने मुंबई के विभिन्न अख़बारों और पत्रिका के लिए क्राइम कवर किए हैं.)