आर्टिकल 35 A: देश क्यों उठाए ऐसे कानून का बोझ?
भारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है कि आज तक हम कश्मीर के नहीं हैं? भारत सरकार कश्मीर को सुरक्षा सहायता संरक्षण और विशेष अधिकार तक देती है लेकिन फिर भी भारत के नागरिक के कश्मीर में कोई मौलिक अधिकार भी नहीं है? 2017 में कश्मीर की ही एक बेटी चारु वलि खन्ना एवं 2014 में एक गैर सरकारी संगठन 'वी द सिटिजंस' द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35A के खिलाफ याचिका दायर की गई है जिसका फैसला दीवाली के बाद अपेक्षित है। आज पूरे देश में 35A पर जब बात हो रही हो और मामला कोर्ट में विचाराधीन हो तो कुछ बातें देश के आम आदमी के जहन में अतीत के साए से निकल कर आने लगती हैं।
पूर्व
प्रधानमंत्री
श्री
अटल
बिहारी
वाजपेयी
जी
के
यह
शब्द
भी
याद
आते
हैं
कि,
"
कश्मीरियत
जम्हूरियत
और
इंसानियत
से
ही
कश्मीर
समस्या
का
हल
निकलेगा
"
।
किन्तु
बेहद
निराशाजनक
तथ्य
यह
है
कि
यह
तीनों
ही
चीजें
आज
कश्मीर
में
कहीं
दिखाई
नहीं
देती।
कश्मीरियत,
आज
आतंकित
और
लहूलुहान
है।
इंसानियत
की
कब्र
आतंकवाद
बहुत
पहले
ही
खोद
चुका
है
और
जम्हूरियत
पर
अलगवादियों
का
कब्जा
है।
और
मूल
प्रश्न
यह
है
कि
जम्मू
कश्मीर
राज्य
को
आज
तक
विशेष
दर्जा
प्रदान
करने
वाली
धारा
370
और
35A
लागू
होने
के
बावजूद
कश्मीर
आज
तक
'समस्या'
क्यों
है?
कहीं
समस्या
का
मूल
ये
ही
तो
नहीं
हैं?
जब
भी
देश
में
इन
धाराओं
पर
कोई
भी
बात
होती
है
तो
फारूख़
अब्दुल्लाह
हों
या
महबूबा
मुफ्ती
कश्मीर
के
हर
स्थानीय
नेता
का
रुख़
आक्रामक
और
भाषण
भड़काऊ
क्यों
हो
जाते
हैं?
आज
सोशल
मीडिया
के
इस
दौर
में
धारा
370
और
35A
'क्या
है'
यह
तो
अब
तक
सभी
जान
चुके
हैं
लेकिन
यह
'क्यों
हैं
'
इसका
उत्तर
अभी
भी
अपेक्षित
है।
धारा
370
जो
कि
भारतीय
संविधान
के
21
वें
भाग
में
समाविष्ट
है
और
जिसके
शीर्षक
शब्द
हैं
"जम्मू
कश्मीर
के
सम्बन्ध
में
अस्थायी
प्रावधान"
,
वो
370
जो
खुद
एक
अस्थायी
प्रावधान
है,उसकी
आड़
में
14
मई
1954
को
प्रधानमंत्री
जवाहरलाल
नेहरू
की
अनुशंसा
पर
तत्कालीन
राष्ट्रपति
राजेंद्र
प्रसाद
द्वारा
35A
को
'संविधान
के
परिशिष्ट
दो
'
में
स्थापित
किया
गया
था।
2002
में
अनुच्छेद
21
में
संशोधन
करके
21A
को
उसके
बाद
जोड़ा
गया
था
तो
अनुच्छेद
35A
को
अनुच्छेद
35
के
बाद
क्यों
नहीं
जोड़ा
गया,
उसे
परिशिष्ट
में
स्थान
क्यों
दिया
गया?
जबकि
संविधान
में
अनुच्छेद
35
के
बाद
35a
भी
है
लेकिन
उसका
जम्मू
कश्मीर
से
कोई
लेना
देना
नहीं
है।
इसके अलावा जानकारों के अनुसार जिस प्रक्रिया द्वारा 35 A को संविधान में समाविष्ट किया गया वह प्रक्रिया ही अलोकतांत्रिक है एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 का भी उल्लंघन है जिसमें निर्धारित प्रक्रिया के बिना संविधान में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता।
वो ही राज्य का स्थायी नागरिक
एक तथ्य यह भी कि जब भारत में विधि के शासन का प्रथम सिद्धांत है कि 'विधि के समक्ष' प्रत्येक व्यक्ति समान है और प्रत्येक व्यक्ति को 'विधि का समान ' संरक्षण प्राप्त होगा तो क्या देश के एक राज्य के "कुछ" नागरिकों को विशेषाधिकार देना क्या शेष नागरिकों के साथ अन्याय नहीं है? यहाँ "कुछ" नागरिकों का ही उल्लेख किया गया है क्योंकि 35 A राज्य सरकार को यह अधिकार देती है कि वह अपने राज्य के 'स्थायी नागरिकों ' की परिभाषा तय करे। इसके अनुसार जो व्यक्ति 14 मई 1954 को राज्य की प्रजा था या 10 वर्षों से राज्य में रह रहा है वो ही राज्य का स्थायी नागरिक है।
वो परिवार जो 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से भारत में आए
इसका दंश झेल रहे हैं वो परिवार जो 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से भारत में आए थे। जहाँ देश के बाकी हिस्सों में बसने वाले ऐसे परिवार आज भारत के नागरिक हैं वहीं जम्मू कश्मीर में बसने वाले ऐसे परिवार आज 70 साल बाद भी शरणार्थी हैं।
इसका दंश झेल रहे हैं 1970 में प्रदेश सरकार द्वारा सफाई के लिए विशेष आग्रह पर पंजाब से बुलाए जाने वाले वो सैकड़ों दलित परिवार जिनकी संख्या आज दो पीढ़ियाँ बीत जाने के बाद हजारों में हो गई है लेकिन ये आज तक न तो जम्मू कश्मीर के स्थाई नागरिक बन पाए हैं और न ही इन लोगों को सफाई कर्मचारी के आलावा कोई और काम राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है। जहाँ एक तरफ जम्मू कश्मीर के नागरिक विशेषाधिकार का लाभ उठाते हैं इन परिवारों को उनके मौलिक अधिकार भी नसीब नहीं हैं।
क्या यही कश्मीरियत है?
जहाँ
पूरे
देश
में
दलित
अधिकारों
को
लेकर
तथाकथित
मानवाधिकारों
एवं
दलित
अधिकार
कार्यकर्ता
बेहद
जागरूक
हैं
और
मुस्तैदी
से
काम
करते
हैं
वहाँ
कश्मीर
में
दलितों
के
साथ
होने
वाले
इस
अन्याय
पर
सालों
से
मौन
क्यों
हैं?
ये
परिवार
जो
सालों
से
राज्य
को
अपनी
सेवाएं
दे
रहे
हैं
विधानसभा
चुनावों
में
वोट
नहीं
डाल
सकते,
इनके
बच्चे
व्यवसायिक
शिक्षण
संस्थानों
में
प्रवेश
नहीं
ले
सकते।
क्या
यही
कश्मीरियत
है?
क्या
यही
जम्हूरियत
है?
क्या
यही
इंसानियत
है?
अगर इस अनुच्छेद को हटाया जाता है तो?
वक्त आ गया है इस बात को समझ लेने का कि संविधान का ही उपयोग संविधान के खिलाफ करने की यह कुछ लोगों के स्वार्थों को साधने वाली पूर्व एवं सुनियोजित राजनीति है । क्योंकि अगर इस अनुच्छेद को हटाया जाता है तो इसका सीधा असर राज्य की जनसंख्या पर पड़ेगा और चुनाव में उन लोगों को वोट देने का अधिकार मिलने से जिनका मत अभी तक कोई मायने नहीं रखता था निश्चित ही इनकी राजनैतिक दुकानें बन्द कर देगा।
आखिर ऐसा क्यों है कि...
आखिर ऐसा क्यों है कि जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा होते हुए भी एक कश्मीरी लड़की अगर किसी गैर कश्मीरी लेकिन भारतीय लड़के से शादी करती है तो वह अपनी जम्मू कश्मीर राज्य की नागरिकता खो देती है लेकिन अगर कोई लड़की किसी गैर कश्मीरी लेकिन पाकिस्तानी लड़के से निकाह करती है तो उस लड़के को कश्मीरी नागरिकता मिल जाती है। समय आ गया है कि इस प्रकार के कानून किसके हक में हैं इस विषय पर खुली एवं व्यापक बहस हो।
बोझ देश क्यों उठाए ?
कश्मीर के स्थानीय नेता जो इस मुद्दे पर भारत सरकार को कश्मीर में विद्रोह एवं हिंसा की बात करके आज तक विषय वस्तु का रुख़ बदलते आए हैं बेहतर होगा कि आज इस विषय पर ठोस तर्क प्रस्तुत करें कि इन दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए ? इतने सालों में इन कानूनों की मदद से आपने कश्मीरी आवाम की क्या तरक्की की? क्यों आज कश्मीर के हालात इतने दयनीय है कि यहाँ के नौजवान को कोई भी 500 रु में पत्थर फेंकने के लिए खरीद पाता है?
आपने उपयोग किया या दुरुपयोग?
देश आज जानना चाहता है कि इन विशेषाधिकारों का आपने उपयोग किया या दुरुपयोग? क्योंकि अगर उपयोग किया होता तो आज कश्मीर खुशहाल होता,खेत खून से नहीं केसर से लाल होते, डल झील में लहू नहीं शिकारा बहती दिखतीं।युवा एके 47 नहीं विन्डोज़ 7 चला रहे होते और चारु वलि खन्ना जैसी बेटियाँ आजादी के 70 साल बाद भी अपने अधिकारों के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने के लिए विवश नहीं होतीं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 A
14
मई
1954
को
तत्कालीन
राष्ट्रपति
राजेंद्र
प्रसाद
द्वारा
संविधान
के
परिशिष्ट
में
पंडित
नेहरू
की
अनुशंसा
पर
समाविष्ट
किया
गया
था।
इस
अनुच्छेद
द्वारा
जम्मू
कश्मीर
विधानसभा
को
यह
अधिकार
मिलता
है
कि
1)
वह
अपने
मूल
निवासियों
को
परिभाषित
करे
2)
इसके
अनुसार
जम्मू
कश्मीर
का
मूल
निवासी
वह
व्यक्ति
है
जो
14
मई
1954
को
राज्य
का
नागरिक
हो
या
फिर
10
साल
पहले
से
यहाँ
रह
रहा
हो।
3)
राज्य
सरकार
के
अधीन
नियोजन,सम्पत्ति
का
अर्जन,राज्य
में
बस
जाने
या
छात्रवृतियां
या
ऐसी
अन्य
प्रकार
की
सहायता
,अधिकार
अथवा
विशेषाधिकार
जो
भी
राज्य
सरकार
प्रदान
करती
है
केवल
राज्य
के
स्थानीय
मूल
निवासियों
को
ही
दिए
जाएंगे।
35 A का इतिहास
1947 से पहले जम्मू कश्मीर एक रियासत थी जो कि "जम्मू और कश्मीर के महाराजा" के अधीन थी। 1912 से 1932 के बीच 1927 में तत्कालीन महाराजा ने एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें उन्होंने केवल राज्य के मूल निवासियों को ही सरकारी सुविधाओं का लाभ एवं राज्य में जमीन खरीदने के अधिकार देने की बात की थी। जब 26 अक्टूबर 1947 में जम्मू कश्मीर रियासत का भारत संघ में विलय हुआ तो उपर्युक्त अधिसूचना को बरकरार रखा गया। इसके परिणामस्वरूप बँटवारे के वक्त जो परिवार पाकिस्तान से भारत के किसी भी हिस्से में आकर बस गए वे भारत के नागरिक बन गए लेकिन वे परिवार जो जम्मू और कश्मीर में बसे वो आज तक शरणार्थी बने हुए हैं।
किस नियोजन से दिया गया अधिकार
किस नियोजन से 1954 में एक अनुच्छेद के द्वारा जम्मू कश्मीर विधानसभा को अपने प्रदेश के मूल निवासियों को परिभाषित करने का अधिकार दिया गया? यह बात सही है कि काफी पहले से महाराजा के समय से जम्मू कश्मीर में इस प्रकार के कानून थे कि कोई बाहरी व्यक्ति यहां सम्पत्ति नहीं खरीद सकता क्योंकि महाराजा को डर था कि कहीं अंग्रेज यहाँ पर जमीन खरीद कर अपना अधिकार स्थापित करना न शुरू कर दें।लेकिन जब पाकिस्तान के आक्रमण के बाद जम्मू और कश्मीर के महाराजा ने भारत में विलय को स्वीकार किया तो किस साजिश के तहत अंग्रेजों के समय उनके डर से बनाए गए कानूनों को धारा 370 का जामा पहनाकर जारी रखा गया ?
किस मकसद के तहत 1954 में अनुच्छेद 35A जोड़ा गया?
देश की एकता को खण्ड खण्ड करने वाले इस प्रकार के 'विशेषाधिकार' कश्मीर के आवाम को भारत के आवाम से जोड़ने का काम कर रहे हैं या फिर तोड़ने का? जिस दिन जम्मू और कश्मीर का आम आदमी इस सच्चाई को समझ जाएगा कि कश्मीर को दी गई इस विशेषता का लाभ वहाँ अलगाववादियों द्वारा उठाया जा रहा है और कश्मीरी आवाम इन "विशेषाधिकारों" के बावजूद देश के बाकी हिस्सों से बहुत पीछे रह गया है वो खुद ही इसके खिलाफ खड़ा होगा।