Happy new year 2020: क्यों साकार नहीं हो सका कलाम का भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना?
नई दिल्ली- पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजी अब्दुल कलाम ने साल 2000 में जिस विकसित भारत की सपना देखा था, इन दो दशकों में देश उसकी ओर आगे तो जरूर बढ़ा है, लेकिन अगर ओवरऑल रिपोर्ट कार्ड देखें तो इसका प्रदर्शन उनके विजन के मुताबिक नहीं रहा है। वजह ये है कि साल 2000 में जब मिसाइल मैन ने 500 एक्सपर्ट के साथ विजन-2020 का खाका खींचा था, तब देश में नई शताब्दी को लेकर खासा उत्साह था। जैसे-जैसे वर्ष-दर-वर्ष भारत नई सदी में आगे बढ़ता गया, कई चीजों में हमनें यकीनन उनकी उम्मीदों से भी बेहतर करके दिखाया, लेकिन बहुत सारे क्षेत्रों में हम उनके भरोसे पर खरे नहीं उतर सके। आज हमारे लिए इसका आकलन करना जरूरी हो गया कि उन्होंने जिस विकसित भारत की कल्पना की थी, उसे मुकाम तक ले जाने में हम क्यों नाकाम रह गए?
आर्थिक विकास और गरीबी मिटाना
कलाम साहब ने लगातार 8 से 9% की दर से वार्षिक आर्थिक विकास का सपना देखा था। 2004 से 2009 तक देश ने इस दर से तरक्की हासिल भी की थी। लेकिन, उसके बाद से विकास दर गिरना शुरू हो गया। पिछले कुछ वर्ष पहले तक हम एकबार फिर से संभलने की कोशिश करने लगे थे। लेकिन, आज यह अपने सबसे निचले स्तर तक पहुंच चुका है।
डॉक्टर कलाम ने 2020 तक देश से गरीबी पूरी तरह से मिट जाने का सपना देखा था। आज की तारीख में देश इस बात के लिए गर्व कर सकता है कि काफी सारे लोग अत्यधिक गरीबी की हालत से बाहर निकल आए हैं। लेकिन, सच्चाई ये भी है कि देश में 60% से ज्यादा आबादी अभी भी रोजाना 3 डॉलर से भी कम कमा पा रही है।
औसत उम्र और रोजगार
साल 2000 में भारत में औसत आयु 64 साल थी। तब सपना देखा गया था कि देश में लोगों की औसत उम्र 20 साल बाद 69 साल तक पहुंच जाएगी। भारत की औसत आयु इस समय ठीक डॉक्टर कलाम की कल्पना के स्तर पर है। लेकिन, अभी भी हम चीन और ब्राजील जैसे देशों से बहुत पीछे हैं, जिनकी औसत आयु 75 वर्ष से ज्यादा है।
विजन-2020 में देश से बेरोजगारी पूरी तरह से खत्म हो जाने की उम्मीद जताई गई थी। आज की सच्चाई ये है कि 45 वर्षों में यह अपने सबसे अधिकतम स्तर पर पहुंच गई है।
शिक्षा और स्वास्थ्य
जनता के राष्ट्रपति को भरोसा था कि देश में उच्च शिक्षा में नामांकन का अनुपात बढ़कर 20 वर्षों में वैश्विक स्तर को छू लेगा। इस समय कॉलेजों में नामांकन की दर 23% पर है, जो कि अमेरिका के 87%, यूनाइटेड किंग्डम की 57% और चीन की 39% से कहीं पीछे है। वैसे इन वर्षों में मिडडे मील और सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों की वजह से स्कूली शिक्षा में नामांकन दरों में तो कई गुना इजाफा हुआ है, लेकिन आगे की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी नहीं बढ़ पाई है। अलबत्ता इन वर्षों में हायर एजुकेशन के लिए विश्वविद्यालयों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, लेकिन अभी भी देश में 500 से ज्यादा यूनिवर्सिटी की कमी बताई जाती है।
पूर्व राष्ट्रपति ने सोचा था कि 20 साल में देश सबको सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं देने में सक्षम हो सकेगा। दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत का लक्ष्य भी सिर्फ 50 करोड़ नागरिकों को ही 5 लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इसके बावजूद देश की 80 करोड़ आबादी महंगे इलाज के लिए मजबूर हैं। आज भी देश की 80% से ज्यादा जनसंख्या की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं बन पाई है।
भूख और कुपोषण
भारत के लिए चिंता की बात ये है कि विश्व के भूखे लोगों की सूची में हम अभी भी सबसे टॉप पर हैं, जहां 2 करोड़ नागरिक हर रात भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की बात करें तो 2019 में भारत का स्थान 117 क्वालिफाइंग देशों में से 102 नंबर पर है। देश की 30.3 % आबादी की हालत इस मामले में बेहद गंभीर श्रेणी में है। जबकि, बांग्लादेश-88 और पाकिस्तान 94वां स्थान पाकर हमसे कहीं बेहतर स्थिति में है। इस क्षेत्र में सिर्फ अफगानिस्तान ही हमसे पीछे छूटा है।
2016 में 5 वर्ष से कम आयु के 38% बच्चों की ऊंचाई उनकी उम्र के मुताबिक काफी कम थी। ग्रामीण भारत में तो इनका अनुपात और ज्यादा था। इसी तरह देश के 21% बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई के तुलना में कम दर्ज किया गया। इस मामले में दुनिया के सिर्फ तीन ही देश हमसे पीछे हैं- जिबूती,श्रीलंका और साउथ सूडान।