क्यों कांग्रेस को याद आए राम, जिन्होंने कभी राम के अस्तित्व पर ही उठाए थे सवाल?
बेंगलुरू। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक बार फिर संक्रमण काल से गुजर रही है, क्योंकि कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर एक बड़ा यू टर्न लेते हुए भगवान राम के जन्मस्थल पर मंदिर निर्माण के लिए 5 अगस्त को हुए भूमि पूजन के बाद एक बार फिर राम में आस्था जताई है। यह वही कांग्रेस पार्टी है, जिसने 2009 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में भगवान श्रीराम के होने पर ही सवाल उठाए थे और आज जब अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है, तो कांग्रेसी नेता फिर राम धुन गाने को मजूबर हैं।
क्या मंदिर आंदोलन के लिए सर्वस्व झोंकने वाले नेता शिलान्यास में PM मोदी के वर्चस्व से नाराज हैं?
अयोध्या राम मंदिर को लेकर कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक दूरदर्शिता ?
अयोध्या राम मंदिर को लेकर कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी कहें अथवा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति कहा जाए कि कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर के मसले पर बोलना ही बंद कर दिया, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। वहीं, भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर कांग्रेस बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था पर गहरा चोट कर खुद को बहुसंख्यक वोटरों से दूर कर लिया। मामला रामसेतु से जुड़ा था, जब कांग्रेस ने बाकायदा शपथ पत्र देकर देश ही नहीं, विदेशों में बैठे हिंदुओं को आघात पहुंचाया था।
पूर्व PMराजीव गांधी के बाद से राजनीतिक दुविधा शिकार रही है कांग्रेस
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद से राजनीतिक दुविधा शिकार रही है वरना राम मंदिर आंदोलन का अभ्युदव कांग्रेस पार्टी द्वारा किया गया था जब राजीव गांधी ने मंदिर का ताला खुलवाया था। वर्ष 2004 से 2014 के बीच भारत के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह, पार्टी की अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने राम मंदिर मुद्दे को छूने से परहेज किया था। इस दौरान कांग्रेस अल्पसंख्यक तुष्टिकरण में लगी रही। इसका प्रमाण हामिद अंसारी के रूप में उपराष्ट्रपति का चुनाव, रक्षा मंत्री के रूप में एके एंटनी और संगठन में कद्दावर कांग्रेस नेता अहमद पटेल का उभार शामिल हैं।
1986 में पूर्व PM राजीव गांधी ने राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए थे
1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीर बहादुर सिंह को मनाकर राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए थे, जिससे कई शताब्दियों से जूझ रहे श्रद्धालुओ को भगवान श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला। यह दौर था जब कांग्रेस ने वर्ष 1985 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण किया गया था। मंदिर मुद्दा पूरी तरह से कांग्रेस हावी थी, लेकिन राजीव गांधी अचानक हुई मौत के बाद यह मुद्दा बीजेपी के पाले में चला गया, क्योंकि कांग्रेस सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने राम मंदिर मुद्दे पर दिलचस्पी नहीं हैं।
वर्ष 1989 में राम मंदिर आंदोलन से एक राष्ट्रीय पार्टी बनी थी बीजेपी
वर्ष 1989 में बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभार मिला और उस पर परवान चढ़ा सितंबर,1990 में जब बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर आंदोलन को गति देने के लिए रथ यात्रा का आयोजन किया। देखते ही देखते राम मंदिर आंदोलन कांग्रेस के पाले से निकलकर बीजेपी का कोर मुद्दा बन गया, जबकि चेन्नई में आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजीव गांधी ने कहा था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर जरूर बनेगा, लेकिन उनकी मौत के साथ ही कांग्रेस के हाथ से यह मुद्दा हमेशा-हमेशा के लिए निकल गया।
सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस में राम मंदिर मुद्दे को छुआ नहीं गया
सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस में राम मंदिर ही नहीं, नवंबर 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद दिवाली के मौके पर जगदगुरू शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को हत्या के केस में गिरफ्तारी करवाने से बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को ठोस पहुंचाकर कांग्रेस ने उन्हें दूर कर दिया था। उसके बाद कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर के मसले पर बोलना ही बंद कर दिया। कांग्रेसी जो भी राम का नाम लेता, उसे संघी, सांप्रदायिक और आरएसएस का एजेंट कहने लगे। यही कारण था कि 1989 चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में मिली हार के बाद कांग्रेस कभी यूपी में उबर ही नहीं पाई।
राम मंदिर मुद्दा हाथों से फिसल गया था और कांग्रेस ने उसे जाने भी दिया
निः संदेह कांग्रेस के हाथों से राम मंदिर मुद्दा हाथों से फिसल गया था और कांग्रेस ने उसे जाने भी दिया था। यही वजह था कि कांग्रेस ने मंदिर मुद्दे को जल्दी न सुलझने देने के लिए बार-बार इसकी सुनवाई को टालने का प्रयास किया। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल द्वारा ऐसा कहते सुना गया, जब उन्होंने कोर्ट में अर्जी दी कि राम मंदिर की सुनवाई को 2019 लोकसभा तक टाल दिया जाए और अब जब सालों बाद राम मंदिर मुद्दा बहुसंख्यक हिंदुओं के फेवर में आ चुका है और शिलान्यास हो चुका है, तो कांग्रेस को अपनी गलती याद आ रही है।
3 दशकों से राम मंदिर मुद्दा भारतीय जनता पार्टी का प्रमुख मुद्दा बना रहा
पिछले तीन दशको से राम मंदिर मुद्दा भारतीय जनता पार्टी का प्रमुख मुद्दा रहा है और इसी मुद्दे की उबाल से केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी एनडीपए गठबंधन की सरकार काबिज हुई। इस बीच कांग्रेस ने कभी भी खुलकर राम मंदिर का समर्थन किया, लेकिन अब जब कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी का राम मंदिर निर्माण से राजनीतिक फायदा मिल सकता है, तो कांग्रेस ने यू-टर्न लिया है और एक-एक करके सभी कांग्रेसी नेता राम मंदिर निर्माण में पार्टी के योगदान को रेखांकित करने में जुट गएं है ताकि आगामी चुनाव में जब वोट मांगने निकले तो शर्मिंदा न होना पड़े।
राम मंदिर के भूमिपूजन के बाद अब राजनीतिक लाभ की कोशिश में कांग्रेस
कांग्रेस राम मंदिर के भूमिपूजन से बीजेपी को मिलने जा रहे बड़े राजनीतिक लाभ में सेंध लगाने की कोशिश में हैं, इसलिए वह भूमिपूजन में जनता के सामने रामभक्त बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इतना ही नहीं, अब इस मुद्दे पर जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए कांग्रेस को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के योगदानों की चर्चा करने लगी है। हालांकि राजीव गांधी के अलावा कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता भी नहीं हैं जिसके सहारे कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीति कर सके, क्योंकि उनकी मौत के बाद राम मंदिर मुद्दे को कांग्रेस ने छूना और बात करना भी छोड़ दिया था।
पीवी नरसिम्हा राव ने भी राम मंदिर बनाने के लिए तमाम कोशिश की थी
हालांकि राजीव गांधी के बाद पीवी नरसिम्हा राव ने भी राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए तमाम कोशिशें जारी रखीं और उनके ही कार्यकाल में गत 6 दिसंबर, 1992 में विवादित बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। इसके एक महीने के बाद जनवरी 1993 में राव सरकार विवादित जमीन के अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश लेकर भी आई थी। इस अध्यादेश को 7 जनवरी 1993 को उस समय के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा की तरफ से मंजूरी मिल गई थी। राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने इस बिल को मंजूरी के लिए लोकसभा में रखा, जिसे पास होने के बाद अयोध्या एक्ट के नाम से जाना गया।
2.77 एकड़ जमीन के साथ 60.70 एकड़ जमीन को कब्जे में लिया गया
नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन के साथ चारों तरफ 60.70 एकड़ जमीन को कब्जे में लिया। उस समय अयोध्या में राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं के निर्माण की योजना थी, लेकिन राव सरकार के जाने के बाद तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में आकर कांग्रेस ने राम मंदिर के मुद्दे पर चर्चा करना ही छोड़ दिया और भाजपा ने मुद्दा लपक लिया और मुद्दे को जीवित रखने के लिए समय-समय पर आंदोलन करती रही, जबकि कांग्रेस पार्टी राम, रामायण और रामराज्य पर ही सवालिया निशान लगा दिया।
राम मंदिर मुद्दे पर शुरू से ही ग़लतियां करती आई है कांग्रेस ?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस राम मंदिर मुद्दे पर शुरू से ही ग़लतियां करती आई है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस में सभी तरह के गुट शामिल थे। इनमें दक्षिणपंथी और वामपंथियों के अलावा मध्य पथ पर चलने वाले लोग भी थे। इनमें जन संघ से लेकर मुस्लिम लीग जैसे संगठन भी शामिल थे, लेकिन कांग्रेस ने खुद को अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति में सिमट कर खुद को खत्म करना शुरू कर दिया। इसका प्रमाण है कि कभी 400 लोकसभा सीट जीतने वाली पार्टी लोकसभा चुनाव 2014 में 44 सीटों पर सिमट कर रह गई है।
विशेष रूप से राम मंदिर मुद्दे को लेकर सोनिया कांग्रेस को दिग्भ्रमित रही?
विशेष रूप से राम मंदिर मुद्दे को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को दिग्भ्रमित कहा जाए, तो अतिशियोक्त नहीं होगी। सोनिया गांधी दो दशकों तक पार्टी की अध्यक्ष रहीं, लेकिन राम मंदिर आंदोलन से खुद को दूर रखा। उल्टा उन्होंने कई ऐसे कारनामे किए और करवाए कि हिंदु बहुसंख्यकों को पार्टी से दूर कर दिया। इनमें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को कथित हत्या के केस में गिरफ्तारी, मालेगांव ब्लास्ट मामले में संघ को फंसाने की साजिश और समझौता ब्लास्ट केस में हिंदू आंतकवाद की थ्योरी शामिल है।
संक्षित अंतराल में कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई
एक संक्षित अंतराल में सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने राहुल गांधी के कार्यकाल में भी राम मंदिर आंदोलन को लेकर कांग्रेस में कोई सक्रियता नही दिखाई दी। यह अलग बात है कि खुद को जनेऊधारी हिंदू साबित करने के लिए राहुल गांधी हंसी के पात्र जरूर बन गए। राहुल गांधी ने यह कोशिश गुजरात के चुनावों के दौरान दिखी थी, लेकिन साल 2019 लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी का जनेऊ अवतार भी गायब हो गया और हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया और एक बार सोनिया गांधी ने कमान संभाल लिया और पार्टी ने राम मंदिर मुद्दे पर चुप्पी साधकर बैठी रही।
1948 में ही अयोध्या के उपचुनाव में कांग्रेस ने राम के नाम पर वोट मांगा था
बीजेपी ने भले ही 1989 में राम मंदिर को अपने एजेंडे में शामिल किया हो, लेकिन कांग्रेस ने तो आजादी के एक साल के बाद ही 1948 में अयोध्या के उपचुनाव में राम के नाम पर वोट ही नहीं मांगा था बल्कि हार्डकोर हिंदुत्व का कार्ड भी खेला था और तब हिंदु बहुसंख्यकों का वोट कांग्रेस के पाले में था। वर्ष 1984 में हत्या के पहले इंदिरा गांधी भी चाहती थीं कि मंदिर का ताला खुल जाए और आम चुनाव वो इसी पर लड़ना चाहती थीं, लेकिन उनकी हत्या के कई सालों के बाद राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान मंदिर का ताला खुलवाया तो कांग्रेस ने ऐतिहासिक 400 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
कांग्रेस ने 3 तलाक व हलाला की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली
16 मई, 2016 को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी। बहस सामान्य थी कि ट्रिपल तलाक और हलाला मुस्लिम महिलाओं के लिए कितना अमानवीय है, लेकिन सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता और AIMPLB के वकील कपिल सिब्बल ने तीन तलाक और हलाला की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से कर डाली। कपिल सिब्बल ने दलील दी है जिस तरह से राम हिंदुओं के लिए आस्था का सवाल हैं। उसी तरह तीन तलाक मुसलमानों की आस्था का मसला है। साफ है कि भगवान राम की तुलना, तीन तलाक और हलाला जैसी घटिया परंपराओं से करना कांग्रेस और उसके नेतृत्व की हिंदुओं की प्रति उनकी सोच को ही दर्शाती है।
अगर जल्द मंदिर का फैसला आ गया तो भाजपा उसे चुनावी मुद्दा बनाएगी
कपिल सिब्बल कोर्ट में विवादित परिसर पर हक की लड़ाई में पक्षकार इकबाल अंसारी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट दलील दे रहे थे और अपनी दलील में सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ने तर्क दिया था कि राम मंदिर मामले की सुनवाई को 2019 के चुनाव तक टाल दिया जाए। उनका तर्क था कि यदि इसमें किसी तरह का कोई फैसला आता है तो भाजपा उसे चुनावी मुद्दा बनाएगी। इसके बाद से भाजपा और तमाम लोगों ने सिब्बल के इस तर्क की कड़ी निंदा की। भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस राम मंदिर मामले का समाधान नहीं चाहती है।"
कांग्रेस ने भगवान राम व रामसेतु के अस्तित्व को ही नकार दिया
वर्ष 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बहस चल रही थी तो कांग्रेस पार्टी ने अपनी असल सोच को जगजाहिर किया था। पार्टी ने एक शपथ पत्र के आधार पर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था। इस शपथ पत्र में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, यह केवल कोरी कल्पना ही है। ऐसी भावना रखने वाली कांग्रेस भगवान श्री राम के अस्तित्व को नकार कर क्या सिद्ध करना चाहती थी?
भगवान राम निर्मित राम सेतु के अस्तित्व को NASA भी स्वीकार कर चुकी है
कांग्रेस ने व्यावसायिक हित के लिए देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर कुठराघात करने की तैयारी कर ली थी। जिस राम सेतु के अस्तित्व को NASA ने भी स्वीकार किया है, जिस राम सेतु को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी MAN MAID यानि मानव निर्मित माना है, उसे कांग्रेस पार्टी तोड़ने जा रही थी। दरअसल हिंदुओं के इस देश में ही कांग्रेस पार्टी ने हिंदुओं को ही दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है। यही वजह रही कि वह एक अरब से अधिक हिंदुओं की आस्था पर आघात करने की तैयारी कर चुकी थी।
राम मंदिर के शिलान्यास के 5 अगस्त के मुहूर्त को लेकर उठाए सवाल
कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यस के मुहूर्त को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि 5 अगस्त अशुभ मुहूर्त है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिलान्यास को टालने की अपील की थी। दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट श्रृंखला में कहा, 'भगवान राम करोड़ों हिंदुओं के आस्था के केंद्र हैं और हजारों वषों की हमारे धर्म की स्थापित मान्यताओं के साथ खिलवाड़ मत करिए। मैं मोदी जी से फिर अनुरोध करता हूं कि 5 अगस्त के अशुभ मुहुर्त को टाल दीजिए।
राम मंदिर को कांग्रेस की पहल बताकर राजनीतिक सेंधबाजी की कोशिश
कांग्रेस ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा मंदिर के मुद्दे पर किए गए कार्यों को बताने नहीं चूक रही है, जबकि सभी जानते हैं कि राजीव गांधी पहले शख्स थे, लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने राम मंदिर मुद्दे को भुला दिया था, जिसे बीजेपी ने बाद जिन्होंने मंदिर के मुद्दे पर चुनाव मुद्दा बना लिया। राजनीतिक सेंधबाजी के लिए कांग्रेस ने लगभग भुला दिए पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल में राम मंदिर के लिए भूमि का अधिग्रहण अध्यादेश का हवाला देते हुए उन्हें याद करने से गुरेज नहीं किया, जिनकी मौत के बाद उनकी लाश को कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आने दिया गया था। के कार्यकाल के दौरान 1992 में विवादित मस्जिद का विध्वंस हुआ और उनकी सरकार में भूमि का अधिग्रहण किया गया था।