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कांग्रेस क्यों नहीं खोज पा रही है राहुल गांधी का विकल्प? जानिए इनसाइड स्टोरी

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नई दिल्ली- क्या गांधी परिवार वास्तव में कांग्रेस पर से अपना कंट्रोल छोड़ने के लिए तैयार हो चुका है? या ये व्यवस्था अस्थाई होगी? नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने में यही सवाल सबके आड़े आ रहा है। क्योंकि, राहुल गांधी ने अपना पद छोड़ने और किसी गांधी को जिम्मेदारी नहीं देने की बात तो की है, लेकिन उसके साथ ही उन्होंने जिस तरह के संकेत दिए हैं, उससे पार्टी के आला से लेकर अदना कार्यकर्ताओं में भी यही संदेश पहुंचा है कि उनका परिवार भले ही अध्यक्ष नहीं रहेगा, तीनों गांधी ही पार्टी के प्रमुख चेहरे बने रहेंगे। राहुल का विकल्प ढूंढ़ने में कांग्रेस का जो लगभग दो महीने का समय गुजर चुका है, इसका एक सबसे बड़ा कारण यही समझ में आ रहा है कि 'बलि का बकरा' बनने के लिए कोई आसानी से तैयार नहीं है।

तीन संकेतों ने नेताओं को किया सचेत!

तीन संकेतों ने नेताओं को किया सचेत!

23 मई के बाद राहुल गांधी ने कम से कम तीन मौकों पर जो कुछ भी कहा शायद उसी बात ने उनकी कुर्सी पर बैठने की चाहत रखने वाले नेताओं के कान खड़े कर दिए। मसलन जब राहुल ने अपने चार पेज के औपचारिक इस्तीफे को सार्वजनिक किया, तो उसके फौरन बाद उनके आसपास रहने वाले लोगों ने यह बात फैलानी शुरू कर दी कि आरएसएस-बीजेपी नेताओं द्वारा राहुल के खिलाफ दर्ज 20 से ज्यादा मानहानि के मुकदमों में वह व्यक्तिगत तौर पर उपस्थिति होंगे। दूसरे दिन ही वे ऐसे ही केस में पहले मुंबई फिर पटना और अहमदाबाद में भी पेश हुए। गौर करने वाली बात ये है कि 25 मई को सीडब्ल्यूसी मीटिंग में उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की थी कि संघ परिवार के खिलाफ उन्होंने पार्टी से अकेले लड़ाई लड़ी। यानी उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि वे खुद को बीजेपी-संघ की विचारधारा के खिलाफ कांग्रेस का मुख्य चेहरा बने रहना चाहते हैं। यही नहीं जब पार्टी में उनके विकल्प को लेकर गहन माथापच्ची चल रही थी, तभी 26 जून को उन्होंने उनसे मिलने आए पार्टी सांसदों से कह दिया कि, वे पार्टी के लिए 'पहले से 10 गुना शक्ति से' काम करेंगे। जाहिर है कि इससे पार्टी कैडर में यही संकेत गया कि संगठन को फिर से खड़ा करना, बीजेपी की चुनौतियों का सामना करना और जमीनी स्तर पर संगठन को नई लड़ाई के लिए तैयार करने का जिम्मा तो नए अध्यक्ष का होगा, लेकिन जनता के बीच कांग्रेस का चेहरा कोई 'गांधी' ही होगा।

'बलि का बकरा' बनेगा कौन?

'बलि का बकरा' बनेगा कौन?

इन परिस्थितियों में पार्टी के सभी धरों और गुटों में यह एक आम भावन बन गई कि जब तीन-तीन 'गांधी' सक्रिय राजनीति में रहेंगे, तो जो भी अध्यक्ष बनेगा उसे कम से कम हर महत्वपूर्ण मामलों में 'परिवार' की सहमति लेनी पड़ेगी या फिर रबर स्टैंप ही बन जाना पड़ेगा। 10 साल तक मनमोहन सिंह को भी लगभग इन्हीं हालातों से गुजरना पड़ा होगा। लेकिन, उनके पास प्रधानमंत्री का पद भी था। लेकिन, यहां तो मृतप्राय संगठन में नए सिरे से जान फूंकने की चुनौती को फेस करना होगा। यही वजह है कि पार्टी का कोई भी कद्दावर या होनहार नेता 'कांग्रेस अध्यक्ष' के पद को 'पाइज्ड पोस्ट' के तौर पर नहीं देखना चाहता। बल्कि, उसमें सिर्फ जिम्मेदारियां होंगी, चुनौतियां होंगी और पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को कसने की खुली छूट भी नहीं मिल पाएगी। इसलिए एकतरफ परिवार के सबसे करीबी नेता उस कुर्सी पर बैठने से असहज महसूस कर रहे हैं, जिसपर वे अबतक 'गांधी' का एकाधिकार समझते रहे हैं; और जो लोग बहुत ज्यादा करीबी नहीं हैं, वे हर फैसले की मंजूरी के लिए दरबार में हाजिरी लगाने की बात सोच कर भाग रहे हैं।

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अध्यक्ष पद को लेकर खेमों में बंटी कांग्रेस

अध्यक्ष पद को लेकर खेमों में बंटी कांग्रेस

मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस असमंजस में भी है और कौन अध्यक्षता करे, इसको लेकर पार्टी स्पष्ट तौर पर दो खेमों में बंटी हुई भी दिखाई दे रही है। एक धरा किसी युवा या वरिष्ठ को कमान सौंपने की वकालत कर रहा है, तो दूसरा धरा इसके लिए किसी दलित, पिछड़ा या ऊंची जाति के नेता को चेहरा बनाने को कह रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह तो सार्वजनिक तौर पर किसी युवा को कमान सौंपने की वकालत कर चुके हैं। जबकि, दूसरे धरे के नेताओं ने तो नए अध्यक्ष के लिए 70 के पार तीन दलित नेताओं के नाम को आगे किया है। इस चक्कर में ऐसे नेता को नई जिम्मेदारी सौंपने की भी मांग हो रही है, जो सबको साथ लेकर चलने की क्षमता रखता हो। कुल मिलाकर हालात बेहद उलझे हुए लग रहे हैं और इसलिए पार्टी की ओर से किसी का नाम तय कर देना इतना आसान भी नहीं लग रहा है। पार्टी में असमंजस की इस स्थिति के बारे में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा है,"कांग्रेस के लिए चुनौती इतनी गंभीर है कि या तो पार्टी खुद को नए सिरे से खड़ा करे या सभी लोग रिटायर हो जाएं और राजनीति को भूल जाएं। यह अस्तित्व बचाने का समय है...."

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English summary
Why Congress is not able to find Rahul Gandhi's alternative? inside story
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