जानिए, आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर पर पाबंदी से क्यों घबराता है चीन?
नई दिल्ली- पुलवामा हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद यूनाइटेड नेशन्स से घोषित ग्लोबल टेररिस्ट संगठन है। लेकिन, कई बार के प्रयासों के बावजूद उसका सरगना मौलाना मसूद अजहर अबतक ग्लोबल टेररिस्ट घोषित नहीं हो पाया है, तो उसका कारण सिर्फ चीन है। वह बार-बार वीटो पावर का इस्तेमाल कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और खासकर भारत की उम्मीदों पर पानी फेर चुका है। अबकी बार भी कोशिशें जारी हैं, लेकिन चीन अभी तक ठोस भरोसा नहीं दे पाया है। दरअसल, इसके पीछे चीन का पाकिस्तान में हो रहा अरबों डॉलर का निवेश और उसके लिए वहां पर काम कर रहे हजारों चीनी नागरिकों की सुरक्षा है।
चीन ने पाक में लगा रखा है बड़ा दांव
चीन को लगता है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से जैश-ए-मोहम्मद और उसके सरगना के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC)की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। यह कॉरिडोर पाकिस्तानी कब्जे वाली कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसमें जैश के आतंकी बेखौफ घूमते हैं। पीओके ही नहीं यह कॉरिडोर गिलगित बाल्टिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा से होकर भी गुजरता है, जहां मानसेहरा एवं बालाकोट जैसी जगहें हैं। यह इलाका आतंकियों की ट्रेनिंग कैंप के लिए चर्चित है। चीन ने बालाकोट के पास ही चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के लिए जमीन का बड़ा हिस्सा हासिल किया है। खास बात ये है कि इस इलाके से काराकोरम हाइवे भी गुजरता है, जो मानसेहरा और पीओके के जरिए चीन को पाकिस्तान से जोड़ता है। इस कॉरिडोर से कई पावर और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी जुड़े हैं, जिसके चलते चीन कोई जोखिम नहीं लेना चाहता।
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पाकिस्तान से सुरक्षा गारंटी चाहता है ड्रैगन
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार इसबार चीन भी अजहर पर बैन के लिए तैयार है, लेकिन उससे पहले पाकिस्तान से सुरक्षा की गारंटी चाहता है। चीन की सोच में बदलाव का कारण ये भी हो सकता है कि बलूचिस्तान और सिंध में काम कर रहे उसके कर्मचारियों पर आतंकी घटनाओं की वारदातें अब काफी बढ़ चुकी हैं। इस संबंध में हाल ही में चीन के उप विदेश मंत्री कॉन्ग ज़ुआंयु पाकिस्तान का दौरा भी कर चुके हैं। इस समय करीब 10 हजार चीनी कर्मचारी सीईपीसी से जुड़े प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं।
चीन की चालबाजियों के पीछे और भी हैं वजहें
चीन पाकिस्तान को मुस्लिम देशों के लिए एक गेटवे की तरह भी देखता है। वह अपने यहां बढ़ रही कट्टरता से भी परेशान हो चुका है। कहा जाता है कि चीनी कट्टरवादी ताकतों का पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी गुटों के साथ तालमेल है। चीन का निहित स्वार्थ यह भी है कि उसे लगता है कि अपने यहां पैदा हो रहे कट्टरपंथियों को नियंत्रित करने में उसे पाकिस्तान का सहयोग मिल सकता है।
यही सारे कारण हैं, जिनके चलते अजहर पर पाबंदी की कोशिशें संयुक्त राष्ट्र परिषद में चीन की वजह से खारिज होती रही हैं। ऐसे तीन मौके आए हैं, जब चीन के वीटो से अजहर ग्लोबल टेररिस्ट घोषित होते-होते बच चुका है। लेकिन, इसबार आतंकवाद पर चीन पहले के मुकाबले ज्यादा संजिदा है। सुरक्षा परिषद में उसने पुलवामा हमले के खिलाफ प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी किए थे। अब देखने वाली बात है कि 13 मार्च तक सुरक्षा परिषद के फैसला लेने तक उसका क्या रुख रहता है।
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