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शिवसेना सरकार में आदित्य की जगह उद्धव ठाकरे क्यों बन सकते हैं CM ? ये रही वजह

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नई दिल्ली- महाराष्ट्र में चुनाव नतीजे आने के बाद से शिवसेना सांसद और वरिष्ठ नेता संजय राउत ने अपनी सरकार बनाने के लिए जो ताना-बाना बुनना शुरू किया था, पार्टी को अब उसका फल चखने का मौका मिल रहा है। अब यह बात पूरी तरह साफ हो चुकी है कि बीजेपी के साथ जो तीन दशकों का हिंदुत्व का तार जुड़ा हुआ था, वह पूरी तरह तार-तार हो चुका है। शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के परिवार में चुनाव नहीं लड़ने का पहला मिथक तब टूटा, जब उनके पोते आदित्य ठाकरे मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव मैदान में उतरे। दूसरा मिथक यह टूटने की संभावना पैदा हो रही है कि अब मातोश्री रिमोट कंट्रोल से नहीं सीधे अपने हाथ में सत्ता की कमान रखकर महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाला है। लेकिन, उससे भी चौंकाने वाली संभावना ये नजर आ रही है कि न तो पार्टी विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे और न ही ठाकरे परिवार के वारिस आदित्य मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, बल्कि इस बार शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे खुद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल सकते हैं। इस बात की संभावना क्यों है, आइए इसका कारण समझते हैं।

आदित्य को कमान देने में है परेशानी

आदित्य को कमान देने में है परेशानी

बीजेपी ने शिवसेना को मनाने-समझाने की बजाय जिस तरह से सरकार बनाने को लेकर हाथ खड़े कर दिए, उसकी उम्मीद शायद उद्धव ठाकरे ने नहीं की होगी। बीजेपी ने अपनी रणनीति से उद्धव को न सिर्फ एनडीए से आगे बढ़कर अलग होने, बल्कि उन पार्टियों से हाथ मिलाने को मजबूर कर दिया, जिनके साथ सियासी लोहा लेते-लेते पार्टी के संस्थापक ने अपनी पूरी जिंदगी खपा दी। बीजेपी से बातचीत में शिवसेना आदित्य ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ढाई-ढाई साल का दावा ठोक रही थी। लेकिन, अब उद्धव ठाकरे के लिए कांग्रेस-एनसपी जैसी दो-दो नाव की सवारी करते हुए आदित्य के सियासी करियर को दांव पर लगाना आसान नहीं होगा। देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली बीजेपी ने जब गवर्नर से मिलकर सरकार बनाने का निमंत्रण कबूल करने से मना कर दिया तो उसे उद्धव के सामने आने वाले इस संकट का पूरा इल्म था। आदित्य को मुख्यमंत्री मानने में शिवसेना के विधायकों को तो कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन शरद पवार और सोनिया गांधी के लिए इसपर तैयार होना बहुत ही मुश्किल है और न ही आदित्य ठाकरे राजनीति में इतने पारंगत हो गए हैं कि वह इस जिम्मेदारी को पिता की परछाई के बिना आसानी से निभा सकें।

दूसरे शिवसैनिक को सीएम बनाने में खतरा ही खतरा

दूसरे शिवसैनिक को सीएम बनाने में खतरा ही खतरा

आदित्य ठाकरे नहीं तो उद्धव ठाकरे के पास मातोश्री के वफादार विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे या सुभाष देसाई को सीएम बनाने का विकल्प है। लेकिन, न तो ये बाला साहेब ठाकरे के दौर की शिवसेना है और न ही उद्धव की अपने पिता जैसी करिश्माई शख्सियत ही। उनके इस फैसले से शिवसेना के बाकी वरिष्ठ नेताओं के नाराज होने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे नेताओं में सबसे पहले नंबर तो खुद संजय राउत ही हो सकते हैं, जिन्होंने दो हफ्तो से बीजेपी के नाक में दम कर रखा था और मातोश्री को वैचारिक तौर पर पवार से लेकर 10 जनपथ तक के करीब लाने का काम किया है। यही नहीं शायद उद्धव यह बात भी नहीं भूले होंगे कि जब मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद नारायण राणे जैसे नेता भी ठाकरे परिवार से बगावत कर सकते हैं तो मौजूदा नेताओं में से किसका इरादा कब डोल जाए उसकी गारंटी कौन दे सकता है।

इसलिए उद्धव खुद तोड़ सकते हैं परंपरा

इसलिए उद्धव खुद तोड़ सकते हैं परंपरा

पार्टी चीफ के इस असमंज से शिवसेना के विधायक भी वाकिफ हैं। इसलिए रविवार को जब उद्धव अपनी पत्नी रश्मि और बेटे आदित्य ठाकरे के साथ लेकर उस रिजॉर्ट में पहुंचे जहां विधायक ठहरे हुए हैं, तब उन्होंने उनसे कहा कि मुख्यमंत्री तो आपको ही बनना चाहिए। खबरें तो यहां तक हैं कि एनसीपी भी उद्धव को ही सीएम पोस्ट संभालने के लिए कह रही है। पार्टी सूत्रों से भी ये खबर मिल रही है कि वरिष्ठ नेताओं में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर खींचतान है, ऐसे में उद्धव ठाकरे ही एकमात्र विकल्प हैं, जिनसे सभी समस्याओं का हल निकल सकता है। तथ्य ये भी है कि रविवार को बांद्रा में उद्धव के घर के बाहर ऐसे पोस्ट भी सामने आ चुके हैं, जिसमें लिखा है- 'महाराष्ट्र को मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे की जरूरत है।' जबकि, इससे पहले शिवसेना के पोस्टरों में आदित्य ठाकरे को सीएम के लिए प्रोजेक्ट किया जा रहा था। रविवार को खुद उद्धव ने भी विधायकों को संबोधित करते हुए इस बात के पुख्ता संकेत दिए कि वह मुख्यमंत्री बनने वाले पहले ठाकरे बन सकते हैं। उन्होंने शिवसेना की तुलना पालकी से करते हुए विधायकों से कहा कि 'लंबे समय तक दूसरों की पालकी ढोयी। समय आ गया है कि एक शिव सैनिक पालकी में बैठे।'

सत्ता के बंटवारे की हो चुकी तैयारी!

सत्ता के बंटवारे की हो चुकी तैयारी!

माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे अभी कुर्सी पर बैठ भी जाएं तो उनके लिए इसे पूरे पांच साल तक अपने नाम करना आसान नहीं होगा। चर्चा है कि एनसीपी के साथ पिछले दिनों जो पार्टी की बात हुई है उसमें वह उसी तर्ज पर ढाई-ढाई साल तक सीएम की कुर्सी साझा करने की शर्त स्पष्ट कर चुकी है, जैसा उद्धव बीजेपी से मांग रहे थे। यही नहीं, एनसीपी फिलहाल एक डिप्टी सीएम की कुर्सी भी अपने लिए सुरक्षित करना चाहेगी। जबकि, मलाईदार विभागों के साथ कैबिनेट में भी बराबरी हिस्सा जरूर चाहेगी। ऊपर से अगर कांग्रेस विधायक भी सरकार में रहकर शासन का आनंद उठाने के लिए अड़ गए तो डील और तगड़ी हो सकती है। क्योंकि, वहां जो मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां उभर कर सामने आई हैं, उसमें सारा दारोमदार शिवसेना पर ही रहने वाला है और जब भी ये खिचड़ी सरकार लड़खड़ाई तो सबसे ज्यादा उसकी साख पर ही संकट आने की आशंका रहेगी। इसलिए, उद्धव खुद अपने पिता के सपने को पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं और शायद इसके अलावा उनके पास विकल्प बहुत सीमित रह गए हैं।

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English summary
Why can Uddhav Thackeray become CM instead of Aditya in Shiv Sena government
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