बीच बातचीत में मायावती ने क्यों छोड़ा कांग्रेस का साथ, पढ़िए असल वजह
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कांग्रेस की कोशिश को उस वक्त तगड़ा झटका लगा, जब मायावती ने लखनऊ में प्रेस कान्फ्रेंस कर अलग होकर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया।
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कांग्रेस की कोशिश को उस वक्त तगड़ा झटका लगा, जब मायावती ने लखनऊ में प्रेस कान्फ्रेंस कर अलग होकर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ हाथ मिलाया तो मध्य प्रदेश में भी अपने 22 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। कांग्रेस का कहना है कि उन्हें मायावती के इस ऐलान की उम्मीद नहीं थी क्योंकि उनकी बातचीत अभी चल ही रही थी। तो आखिर...वो कौन सी वजहें हैं, जिनके लिए मायावती ने बातचीत के बीच में ही कांग्रेस से अलग होने का फैसला कर लिया। आइए जानते हैं...
छत्तीसगढ़ से यूपी पर निशाना
मायावती ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए अजीत जोगी की पार्टी 'जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़' (जकांछ) के साथ गठबंधन करने का ऐलान यूपी की राजधानी लखनऊ से किया। सियासी जानकारों के मुताबिक इसके पीछे मायावती की एक सोची-समझी और बड़ी रणनीति है। दरअसल, मायावती 2019 के लिए बनने वाले महागठबंधन में बसपा को सम्मानजनक सीटें देने की मांग लगातार दोहराती रही हैं। चूंकि यूपी मायावती के लिए बेहद अहम है, इसलिए उन्होंने छत्तीसगढ़ में गठबंधन का ऐलान लखनऊ से कर यूपी में गठबंधन के पैरोकारों को एक स्पष्ट संदेश दिया।
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लोकसभा चुनाव में मन मुताबिक सीटें
अजीत जोगी के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ ही मायावती ने मध्य प्रदेश के लिए 22 उम्मीदवारों की सूची का भी ऐलान कर दिया। अभी तक के सियासी हालातों को देखते हुए कहा जा रहा है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी राजस्थान और मध्य प्रदेश में अकेले ही विधानसभा चुनावों में उतरेगी। दरअसल मायावती के निशाने पर विधानसभा नहीं, बल्कि 2019 का लोकसभा चुनाव है। मायावती की कोशिश है कि 2019 से पहले वो ऐसा सियासी माहौल बना लें, जहां महागठबंधन में बसपा को उनके मन मुताबिक सीटें मिलें। मध्य प्रदेश में 50 सीटों की उनकी मांग ना मानने पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला इसी रणनीति का हिस्सा है।
सवर्ण समाज की नाराजगी
एससी/एसटी एक्ट के विरोध में सवर्ण समाज की नाराजगी का असर तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय माना जा रहा है। सवर्णों के भारत बंद के दौरान मध्य प्रदेश और राजस्थान में सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन हुए। एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों को लेकर नाराज सवर्ण समाज का रुख भाजपा और कांग्रेस को लेकर एक जैसा नजर आ रहा है। सियासी जानकारों की मानें तो इन हालातों में कहीं ना कहीं मायावती को यह भी आशंका थी कि अगर उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो गठबंधन में जहां-जहां बसपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे, वहां सवर्ण समाज के वोट उनसे किनारा कर सकते हैं।
कर्नाटक का फॉर्मूला फिर से आजमाने की तैयारी
कांग्रेस के लिए बेहद अहम माने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनावों में मायावती ने जेडीएस के साथ गठबंधन किया। इस गठबंधन का फायदा जहां एचडी कुमारस्वामी को भी मिला, तो मायावती को भी इससे लाभ हुआ। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद मायावती के साथ की अहमियत खुलकर सामने आई। इसके बाद यूपी में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन को मिली जीत ने नए सियासी समीकरणों को हवा दे दी। अब मायावती छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ गठबंधन कर 2019 से पहले एक बार फिर बसपा की अहमियत को कांग्रेस के सामने रखना चाहती हैं। मकसद साफ है, 2019 का लोकसभा चुनाव।
बड़बोले कांग्रेस नेताओं को दो टूक संदेश
कांग्रेस के दिग्गज नेता जहां 2019 के लिए एक महागठबंधन बनाने की कोशिशों में लगे हैं, वहीं पिछले दिनों सचिन पायलट ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस अकेले अपने दम पर भाजपा को हराने में सक्षम है। सचिन पायलट का इशारा राजस्थान में बसपा को साथ ना लेने की तरफ था। राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश में भी मायावती के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस नेताओं के बयान आए, जिनपर मायावती ने नाराजगी भी जाहिर की। मायावती ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इन तीन राज्यों में बयानबाजी कर रहे कांग्रेस के नेता यह ध्यान रखें कि फिर यूपी में भी वही नियम लागू हो सकता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से मायावती ने कांग्रेस के बड़बोले नेताओं को दो टूक संदेश दिया है।
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