क्या भाजपा की गले की फांस बन गए हैं रेप और मर्डर के आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर?
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बांगरमऊ विधायक कुलदीप सेंगर के चलते बीजेपी की भारी फजीहत हो रही है। वो बलात्कार के मामले में एक साल से ज्यादा वक्त से जेल में बंद हैं ही, अब उनपर पीड़िता के दो रिश्तेदारों की हत्या और पीड़िता एवं उसके वकील की हत्या की कोशिश का मामला भी दर्ज हो चुका है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि भाजपा उन्हें पार्टी से निकाल क्यों नहीं रही है? जिस पार्टी का नेतृत्व पार्टी के नेताओं की अनुशासनहीनता पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने के लिए मशहूर है, उसे सेंगर की बर्खास्तगी से कौन रोक रहा है? ये बात सही है कि रायबरेली में पीड़िता की कार को जिस ट्रक ने टक्कर मारा वह किसी साजिश का हिस्सा था या नहीं यह जांच का विषय हो सकता है। लेकिन, इस मामले को लेकर जो एक आम भावना है, भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व उससे आंखें क्यों मूंद रहा है? जबकि, हाल में ही कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जब यदि किसी विधायक के चलते पार्टी की मिट्टी पलीद हुई है, तो शीर्ष स्तर से कार्रवाई का इशारा हुआ है और कार्रवाई भी हुई है।
क्या चैंपियन से कम हैं कुलदीप सेंगर के गुनाह?
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं। शराब के नशे में हथियारों के साथ उत्तराखंड के एक बीजेपी एमएलए प्रणव सिंह चैंपियन का विडियो वायरल हुआ था। तब भी पार्टी की खूब किरकिरी हुई थी। लेकिन, तब भाजपा ने बिना ज्यादा समय जाया किए चैंपियन को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। हालांकि, चैंपियन जिन हथियारों के साथ डांस कर रहे थे, उनके पास उसके लाइसेंस थे और वो अपने घर के बंद कमरे में मस्ती कर रहे थे। लेकिन, फिर भी पार्टी को लगा कि इससे उसकी छवि खराब हो रही है, इसलिए कार्रवाई में जरा भी देरी नहीं की गई और उन्हें फौरन बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यही नहीं जब बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय का नगर निगम अधिकारी को बल्ले से पीटने का विडियो वायरल हुआ था, तो प्रधानमंत्री मोदी के स्तर पर ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का पार्टी को इशारा किया गया था।
विपक्ष के निशाने पर बीजेपी सरकार
जहां तक विपक्ष का सवाल है तो उसके पास भाजपा को घेरने का इससे बेहतर मौका क्या हो सकता है। क्योंकि, कुलदीप सेंगर आज वो नाम है, जिसके साथ जुड़ना किसी भी पार्टी की साख में बट्टा लगाने के लिए काफी है। कुलदीप सेंगर के मामले को लेकर भाजपा की फजीहत की स्थिति तो ऐसी है कि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल भी सेंगर पर हो रही पुलिसिया कार्रवाई से ज्यादा उन्हें भाजपा से नहीं निकाले जाने को लेकर सवाल पूछ रही हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी भारतीय जनता पार्टी पर ये कहकर निशाना साध चुकी हैं कि उन्नाव बलात्कार कांड का आरोपी अभी तक सत्ताधारी बीजेपी में बना कैसे हुआ है? समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी बीजेपी से यही मांग कर चुके हैं। लेकिन, उन्हें पार्टी से नहीं निष्कासित करने को लेकर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रही है। पार्टी सिर्फ ये कहकर बच रही है कि आरोपी विधायक को तो काफी पहले ही दल से सस्पेंड किया जा चुका है। यही नहीं भाजपा विपक्ष पर बेवजह एक दुर्घटना पर हो-हल्ला मचाने का आरोप भी लगा रही है। पार्टी ये दलील देकर पीड़िता पर कथित हमले की घटना को समाजवादी पार्टी से जोड़ रही है कि जिस ट्रक ने टक्कर मारा वह सपा के एक स्थानीय नेता की पत्नी के नाम पर पर रजिस्टर्ड है।
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लोगों की भावना को क्यों नहीं समझ रही है बीजेपी?
सवाल है कि क्या भाजपा इतने संगीन अपराध को सिर्फ विपक्ष का हो-हल्ला कहकर टाल सकती है। क्या आम लोगों को नहीं दिख रहा कि जिस पार्टी ने चैंपियन पर तुरंत इतनी सख्त कार्रवाई की, उसे सेंगर पर ठोस कदम उठाने में हाथ क्यों कांप रहे हैं। क्योंकि, जांच की रिपोर्ट जब आएगी, तब आएगी। लेकिन, पीड़िता की कार के साथ हुई दुर्घटना पहली नजर में न्याय की भीख मांग रही एक बलात्कार पीड़िता पर उसके गुनहगार द्वारा किया जा रहा हमला ही नजर आ रहा है। क्योंकि, उन्नाव बलात्कार कांड की हिस्ट्री ही ऐसी है। पीड़िता के पिता की भी कस्टडी में मौत हो चुकी है। पीड़िता की कार को एक तेज रफ्तार ट्रक तब टक्कर मारता है जब वह अपने चाचा से जेल में मुलाकात कर चाची, मौसी और वकील के साथ रायबरेली लौट रही होती है। जो भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही पीड़िता की दर्दनाक कहानी के बारे में सुन रहा है, उसके रौंगटे खड़े हो रहे हैं।
अनुशासित पार्टी के अनुशासन पर सवाल
कुलदीप सेंगर ने बीजेपी के नाम पहली बार खराब नहीं किया है। जब पहली बार उनपर पीड़िता ने बलात्कार का आरोप लगाया था, तब भी चौतरफा बवाल होने के बाद पिछले साल योगी सरकार की नींद खुली थी। भारी जन-दबाव के बाद आरोपी सेंगर ने एसएसपी दफ्तर जाकर सरेंडर किया था। लेकिन, तब भी अनुशासित कही जाने वाली बीजेपी ने उनपर तत्काल कार्रवाई करने की नहीं सोची। जब केस सीबीआई ने अपने हाथ में लिया और उनपर चार्जशीट दर्ज कर लिया गया, तब जाकर कहीं उन्हें पार्टी से सस्पेंड किया गया। ऐसे में सवाल ये भी उठ सकता है कि क्या सेंगर की राजनीतिक हैसियत भाजपा को उनपर सख्त कार्रवाई से रोक रहा है। क्योंकि, वे 2017 में भाजपा में आने से पहले समाजवादी पार्टी में ही थे और उनकी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस से शुरू होकर बीएसपी और सपा से होते हुए भाजपा तक पहुंची है। कहा जाता है कि वे अपनी बाहुबली छवि और क्षत्रियों में पैठ की वजह से जिस भी पार्टी में गए हैं, उसके चहेते रहे हैं। तो क्या ये कारण है कि अनुशासित पार्टी भी उन्हें निकालने से पहले अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहती है?