बंगाल में भाजपा क्यों हो जाएगी सेंचुरी से पहले आउट, पीके के दावे में कितना दम?
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कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद प्रशांत किशोर (पीके) ने एक बाऱ फिर दावा किया है कि भाजपा दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर सकेगी। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि बंगाल का चुनाव लोकतंत्र को बचाने की अहम लड़ाई है। पश्चिम बंगाल के लोग अपने संदेश के साथ तैयार हैं और वे सही पत्ता खेलने के लिए संकल्पित हैं। ये सही पत्ता क्या है ? तो प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तस्वीर के साथ बांग्ला में एक नारा लिखा है- 'बंग्ला निजेर मे की चे’ यानी 'बंगाल केवल अपनी बेटी को चाहता है’। उन्होंने अपने इस ट्वीट में यह भी लिखा है आप 2 मई को नतीजे आने के बाद मेरे पिछले ट्वीट ( 21 दिसम्बर 2020) पर बात कर सकते हैं। 21 दिसम्बर के ट्वीट में प्रशांत किशोर ने दावा किया था, “समर्थित मीडिया के अतिप्रचार के बावजूद हकीकत यही है कि भाजपा को दो अंकों का दायरा पार करने में मुश्किल होगी। अगर बीजेपी ने दो अंकों का आंकड़ा पार कर लिया तो मैं यह जगह (चुनावी रणनीतकार) छोड़ दूंगा।”
पीके क्यों सोचते हैं ऐसा ?
प्रशांत किशोर अभी भी यह क्यों कह रहे हैं कि भाजपा दो अंकों का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगी ? दो महीने के दौरान राजनीतिक परिदृश्य में कई बदलाव आये हैं फिर वे पुरानी बात पर कायम हैं। ऐसा क्यों ? पीके ने जब बीते दिसम्बर में ये ट्वीट किया था उसके एक दिन बाद टाइम्स नाऊ की नविका कुमार ने उनका एक इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू में पीके ने अपनी रणनीति की सारी परतें खोल दीं थीं। दो अंकों का आंकड़ा पार नहीं करने के दावे का क्या मतलब है ? पीके के कहने का आशय यह है कि भाजपा इस विधानसभा चुनाव में 99 से आगे नहीं बढ़ पाएगी। यानी भाजपा 99 पर नॉट आउट रहेगी। सेंचुरी भी नहीं मार सकेगी। इसके लिए उन्होंने बाजी भी लगायी है। अगर भाजपा 100 पर भी पहुंच जाती है तो वे चुनावी रणनीति बनाने का काम छोड़ देंगे। पीके आखिर ऐसा क्यों मानते हैं ? ऐसा सोचने का क्या है आधार ?
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भाजपा कैसे 100 भी नहीं पहुंचेगी ?
पीके का तर्क है कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल के सौ प्रतिशत वोटरों से मुखातिब है और सभी का वोट पाने की कोशिश कर रही है। जब कि भाजपा सिर्फ 70 फीसदी वोटरों से ही संवाद कर रही है। चूंकि भाजपा के संवाद का दायरा कम है इसलिए उसका स्ट्राइक रेट भी कम हो जाएगा। पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है बड़े-बड़े जिले हैं। इतने बड़े राज्य में केवल 23 जिले हैं। केवल 9 जिलों में ही 185 विधानसभा सीटें हैं। दक्षिणी 24 परगना, उत्तरी 24 परगना, मुर्शिदाबाद, पश्चिमी मेदिनीपुर, पूर्वी मेदिनीपुर जैसे जिलों में भाजपा कहीं भी नहीं है। जब आप इतने बड़े क्षेत्र में कहीं हैं ही नहीं तो कैसे 200 सीट जीतने की बात कर रहे हैं। चूंकि भाजपा का लक्ष्य छोटा (70 फीसदी) है इसलिए उसकी सफलता की दर भी कम होगी। यानी भाजपा अधिकतम 99 तक ही पहुंच सकती है। पीके ने घुमाफिरा कर यह कहने की कोशिश की है कि 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटर भाजपा को वोट नहीं करेंगे इसलिए उसकी स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने जिन जिलों की चर्चा की है वे मुस्लिम बहुल इलाके हैं। पीके मुस्लिम मतों की बात तो नहीं कहते लेकिन उनका इशारा इसी तरफ है।
केवल भाजपा ही कर सकती है ममता को चैलेंज
पीके यह स्वीकार करते हैं कि पश्चिम बंगाल में भाजपा एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बन कर उभरी है। वे यह भी मानते हैं कि केवल भाजपा ही ममता बनर्जी को चुनौती दे सकती है। लेकिन ये चुनौती ऐसी नहीं है कि वह तृणमूल कांग्रेस को हरा दे। अधिक से अधिक वह दूसरे नम्बर की पार्टी बन सकती है। वे लोकसभा चुनाव के आइने में भाजपा की ताकत को नहीं तौलते। उनका कहना है कि लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन करने वाली भाजपा अक्सर राज्यों के चुनाव में वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाती। चूंकि राज्यों में उसके सामने मजबूत प्रतिद्वंद्वी रहते हैं इसलिए उसे हार का सामना कारना पड़ता है। पीके के मुताबिक, मैं भाजपा के वैसे नेता को चुनौती देता हूं जो 200 सीटें जीतने की बात कह रहे हैं। अगर भाजपा 200 सीटें जीत गयीं तो मैं अपना काम छोड़ दूंगा। लेकिन अगर भाजपा ऐसा नहीं कर पायी तो क्या वह नेता अपना पद छोड़ देंगे ? प्रशांत किशोर ने यह चुनौती एकतरह से गृहमंत्री अमित शाह को दी है। अमित शाह ने ही अपनी चुनावी सभाओं में 200 सीट जीतने की बात कही है।
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धर्म के आधार पर होगा मतों का ध्रवीकरण ?
प्रशांत किशोर के '30 फीसदी अवधारणा' से क्या पश्चिम बंगाल के चुनाव पर फर्क पड़ेगा ? दो महीने पुरानी इस थ्योरी में अब कई नयी बातें जुड़ गयी हैं। सुभाष चंद्र बोस की जयंती (23 जनवरी 2021) पर ममता बनर्जी ने जय श्रीराम नारे पर जो प्रतिक्रिया दी उससे राजनीतिक फिजां में बदलाव आया है। अब बंगाल के वैसे लोग भी ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा रहे हैं जो भाजपा के समर्थक नहीं हैं। ममता बनर्जी के एकतरफा झुकाव ने बंगाल के तटस्थ लोगों को भी विचलित कर दिया है। इसी का नतीजा है कि अब भाजपा का वोट शेयर 40.64 फीसदी तक पहुंच गया है। धर्म के आधार पर मतों का ध्रुवीकरण लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। लेकिन अब बंगाल में ऐसा हो रहा है। धीरे-धीरे हिंदू वोटर भाजपा के पक्ष में आते जा रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, 2014 के चुनाव में भाजपा को 21 फीसदी हिंदू वोट मिले थे जबकि 2019 के चुनाव में हिंदू मतों का प्रतिशत उछल कर 57 फीसदी पर पहुंच गया। दूसरी तरफ ममता बनर्जी के प्रति अल्पसंख्यक वोटरों का समर्थन 40 फीसदी से 70 फीसदी पर पहुंच गया। चुनाव की यह प्रवृति जनतंत्र के लिए चिंता का विषय है। अब देखना है कि प्रशांत किशोर का दावा कितना सही साबित होता है।