यूपी के अगले तीन फेज बीजेपी की बढ़ाएंगे मुश्किल, जानिए क्या हैं चुनौतियां?
नई दिल्ली- यूपी में आधे से ज्यादा दौर का चुनाव हो चुका है, लेकिन आधी से ज्यादा सीटों पर वोटिंग होना अभी बाकी है। मतलब, कुल सात में से चार चरण के चुनाव हो चुके हैं और राज्य की 80 संसदीय सीटों में से 41 पर मतदान होना अभी भी बाकी है। अगर 2014 के चुनावी नतीजों और मौजूदा चुनावी समीकरणों के आधार पर विश्लेषण करें, तो बाकी बचा तीनों दौर, पहले चारों चरण के मुकाबले बीजेपी के लिए ज्यादा बड़ा चैलेंज लग रहा है। इसका मूल कारण ये है कि जिन सीटों पर अब चुनाव होने वाले हैं, उनमें पहले के चारों फेज के मुकाबले ज्यादा सीटों पर पिछली बार बीजेपी की जीत का मार्जिन (victory margin), तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवारों को मिले वोट शेयर से कम था। आइए इन स्पॉयलर ( spoiler) सीटों के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि बदले हुए चुनावी समीकरण में बची हुई सीटों पर बीजेपी की मुश्किल ज्यादा क्यों बढ़ गई है?
2014 में क्या हुआ था?
आगे के जिन तीनों फेज में जिन 41 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं, 2014 में उनमें से 38 सीटों पर बीजेपी (Bharatiya Janata Party-BJP) और उसकी सहयोगी अपना दल (Apna Dal-AD) जीती थी। जबकि, अमेठी (Amethi) और रायबरेली (Rae Bareli) में कांग्रेस (Congress) और आजमगढ़ (Azamgarh) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party-SP)की जीत हुई थी। अगर पिछले आंकड़ों पर गौर करें तो 38 में से 23 सीटों पर एनडीए (NDA) उम्मीदवारों की जीत का अंतर तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार को मिले वोट से कम था। लेकिन, जिन सीटों पर पहले चार चरण में चुनाव हो चुके हैं, उनमें ज्यादातर सीटों पर बीजेपी (BJP) उम्मीदवारों की जीत का मार्जिन (victory margin) तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को मिले वोट से कहीं ज्यादा था। मसलन, बीजेपी 39 में से जिन 35 सीटों पर विजयी रही थी, उनमें से सिर्फ 15 सीटें ही ऐसी थीं, जहां बीजेपी के उम्मीदवार की जीत का अंतर (victory margin) तीसरे नंबर के उम्मीदवार को मिले वोट से कम था। यानी जहां चुनाव बाकी हैं, वहां ऐसी सीटों की संख्या, पहले चार फेज की सीटों के मुकाबले 18% ज्यादा है।
बीजेपी की चुनौती इसबार क्यों बढ़ गई है?
ऊपर जिन स्पॉयलर ( spoiler) सीटों की चर्चा हुई, वो बीजेपी के लिए बाकी बचे दौर में ज्यादा जोखिम भरी हैं, क्योंकि एसपी-बीएसपी के साथ आने से ऐसी सीटों ने बीजेपी का टेंशन बढ़ा दिया है। अगर 2014 के नतीजों के हिसाब से 2019 के चुनाव को देखें तो पहले फेज में 25%, दूसरे में 37.5%,तीसरे में 57.1%, चौथे में 50%, पांचवें में 58.3%, छठे में 84.6% और सातवें में 38.5% सीटों पर एनडीए उम्मीदवार की जीत का मार्जिन (victory margin) तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को मिले वोट से कम था। यानी ये वैसी स्पॉयलर ( spoiler) सीटें हैं, जो बदले चुनावी समीकरण के कारण बीजेपी के लिए खतरा बन चुकी हैं और पहले चार चरण के मुकाबले इसका जोखिम अब ज्यादा है। अगर 2014 के वोट शेयर के आधार पर भी देखें तो अगला तीनों दौर बीजेपी के लिए ज्यादा जोखिम भरा लगता है। उदाहरण के लिए पांचवीं दौर की जो सीटें हैं, उसमें पिछली बार बीजेपी को 40.8% वोट मिले थे, तो सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी (SP+BSP+CONGRESS+RLD) का साझा वोट शेयर 52.9% रहा था। इसी तरह छठे दौर की सीटों में पिछली बार बीजेपी को सिर्फ 38.3% वोट मिले थे, जबकि सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी (SP+BSP+CONGRESS+RLD) का साझा वोट शेयर 52.5% था। सातवें चरण की सीटों में भी बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती, क्योंकि तब बीजेपी को यहां 43.9% वोट मिले थे, जबकि सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी (SP+BSP+CONGRESS+RLD) का साझा वोट शेयर उससे ज्यादा 44.1% था। जबकि, पहले के दो चरणों में इन सभी पार्टियों के साझा वोट शेयर से भी बीजेपी का वोट शेयर ज्यादा दर्ज किया गया था।
अगर 2019 में हो रहे चुनाव को 2014 में एनडीए की जीत के औसत मार्जिन (victory margin) के आधार पर देखें, तो पहले फेज में 21%, दूसरे में 27.5%, तीसरे में 13.9%, चौथे में 19.6%, पांचवे में 13.3%, छठे में 13.5% और सातवें में 21.6% था। यानी अगला दौर इस लिहाज से भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, जहां पिछली बार जीत का उसका फासला बाकी (victory margin) दौर से कम रहा था।
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फ्लोटिंग वोटर्स ( floating voters) किधर जाएंगे?
यूपी में अगले तीनों चरणों का चुनाव अन्य पार्टियों (Others) को पिछली बार मिले वोट के हिसाब से भी बहुत महत्वपूर्ण है। ये वो पार्टियां हैं, जिनका ऊपर जिक्र नहीं हुआ है, लेकिन उन्हें पिछली बार ठीक-ठाक संख्या में वोट मिले थे। दिलचस्प बात ये है कि बाकी जितनी भी सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें 2014 में अन्य दलों (Others) को बाकी सभी चरणों के मुकाबले कहीं ज्यादा वोट मिले थे। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले चुनावों में ये तमाम छोटे-छोटे दल बड़ा खेल कर सकते हैं। क्योंकि, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 2019 के चुनाव में यूपी की ज्यादातर सीटों पर महागठबंधन और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है और बाकी बची हुई सीटों पर भी ज्यादा बदलाव की संभावना नजर नहीं आ रही है। इसलिए, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनावी भाषा में जिन्हें फ्लोटिंग वोटर्स ( floating voters)कहते हैं, यानी जो परिस्थितियों के मुताबिक अंतिम समय में किसी की भी ओर झुक सकते हैं, वह इस बार किसी एक गठबंधन यानी एनडीए या महागठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं।
गौरतलब है कि 2014 के नतीजों के आधार पर पांचवें दौर में अन्य दलों (Others) को 6.3%, छठे में 9.2% और सातवें दौर में 12% तक वोट मिले थे। जबकि, इससे पहले के चारों चरण में इनकी संख्या आधी या उससे भी कम ही थी। जाहिर है कि अगर सीधे मुकाबले की स्थिति में इनमें से ज्यादातर फ्लोटिंग वोटर्स ( floating voters) का हिस्सा महागठबंधन की ओर जाता है, तो उसका रास्ता और भी आसान हो जाएगा। लेकिन, अगर बीजेपी के पक्ष में इन्हीं में से फ्लोटिंग वोटर्स ( floating voters) का झुकाव होता है, तो पार्टी 2014 दोहरा भी सकती है। लेकिन, भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल ये भी है कि केंद्र और राज्य में दोनों ही जगह उसी की सरकारें हैं। इसलिए, उसके सामने एंटी इंकम्बेंसी की भी तलवार लटकी हुई है।