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सवर्णों को आरक्षण देकर बीजेपी को क्यों नहीं मिलेगा फ़ायदा: नज़रिया

हालांकि कुछ राज्यों में बीजेपी ने हिंदू कार्ड के दम पर बहुत अहम बढ़त भी बनाई है, जिसमें असम एक बड़ा राज्य है.

यह माना जा सकता है कि इन राज्यों में बीजेपी को 2014 के मुक़ाबले 2019 में अधिक वोट मिल सकते हैं लेकिन इसके पीछे सवर्ण जातियों का वोट नहीं होगा.

By BBC News हिन्दी
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पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब साल 1990 में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण की नीति लागू की थी जिसे हम सभी मंडल आयोग के तौर पर जानते हैं तब उनके इस क़दम को मास्टरस्ट्रोक कहा गया था. क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल उनके इस क़दम का खुलकर विरोध नहीं कर पाया था.

मौजूदा दौर में जब बीजेपी ने सवर्ण जातियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़े के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की बात कही है तो इसे भी 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है.

वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार हालांकि अपने इस महत्वपूर्ण क़दम के बाद महज़ एक साल ही सरकार में टिक पाई थी, उन्हें इस क़दम का कोई बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाया था, लेकिन मंडल आयोग लागू करने का असर उत्तर भारत सहित पूरे देश की राजनीति पर पड़ा.

बीजेपी के इस क़दम को भी मास्टर स्ट्रोक इसीलिए कहा जा रहा है क्योंकि कोई भी दल इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा.

जैसे कि मंडल आयोग को उसकी घोषणा होने के कुछ सालों बाद ही लागू किया जा सका था. उसी तरह आरक्षण से जुड़े इस नए बिल को लागू करने में भी कुछ वक़्त तो ज़रूर लगेगा.

इसमें शामिल तमाम तकनीकी पहलुओं पर विचार विमर्श की ज़रूरत पड़ेगी.

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कितनी है सवर्णों की संख्या?

इस बीच बीजेपी अभी से अपने इस क़दम का राजनीतिक फ़ायदा उठाने की कोशिश करती हुई दिख रही है.

हालांकि उसे इसका बहुत अधिक फ़ायदा मिलता हुआ नज़र नहीं आता, इसके पीछे दो अहम कारण हैं.

पहला तो देश में सवर्णों की संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है और दूसरा यह वर्ग पहले से ही बीजेपी का वोटर रहा है.

उत्तर भारतीय राज्यों की राजनीति में सवर्ण जातियां अहम किरदार अदा करती हैं जबकि इस बात का कोई आधिकारिक आंकड़ा अभी तक नहीं है कि अलग-अलग राज्यों में कितने प्रतिशत सवर्ण मौजूद हैं.

अगर हम सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ डेवेलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के सर्वे की बात करें तो उसके अनुसार देश के अलग-अलग राज्यों में सवर्ण जातियों के लोगों की संख्या 20 से 30 प्रतिशत के बीच है.

हिंदी भाषी राज्यों की बात करें तो बिहार में 18 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 22 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 25 प्रतिशत, दिल्ली में 50 प्रतिशत, झारखंड में 20 प्रतिशत, राजस्थान में 23 प्रतिशत, हरियाणा में 40 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 12 प्रतिशत सवर्ण जातियों के लोग हैं.

इसके अलावा कुछ ग़ैर हिंदी भाषी राज्यों में भी सवर्णों की संख्या ठीक समझी जाती है. जैसे, असम में 35 प्रतिशत, गुजरात में 30 प्रतिशत, कर्नाटक में 19 प्रतिशत, केरल में 30 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 30 प्रतिशत, ओडिशा में 20 प्रतिशत, तमिलनाडु में 10 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 48 प्रतिशत और पंजाब में 48 प्रतिशत है.

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सवर्ण पहले से बीजेपी के वोटर

ख़ैर जहां तक दूसरे दलों की बात की जाए तो वे भी इस प्रस्तावित बिल का विरोध नहीं करेंगे. लेकिन इन सब बातों से यह मान लेना कि बीजेपी को इसका बहुत अधिक फ़ायदा मिल जाएगा, एक बड़ी भूल होगी.

इसके पीछे सीधा सा कारण यह है कि जिन राज्यों में बीजेपी ने साल 2014 में अच्छा प्रदर्शन किया था जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य. इनमें सवर्ण जातियां बीजेपी का मज़बूत वोटबैंक रही हैं.

सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि हिंदी भाषी राज्यों में सवर्ण जातियों के वोटर्स ने तमाम चुनावों में बीजेपी को ही अपना मत दिया.

इस क़दम का बीजेपी को सिर्फ़ यह फ़ायदा मिलेगा कि सवर्ण जातियों के वो वोटर जो बीजेपी से नाराज़ होकर उससे दूर जाने लगे थे वे वापस लौट आएंगे.

हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को मिली हार के पीछे यह एक बड़ी वजह मानी गई थी कि इन राज्यों में सवर्णों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था.

आरक्षण
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मानकों के आधार पर कितने सवर्णों को आरक्षण?

इसके अलावा प्रस्तावित बिल में आरक्षण के लिए जो मानक तय किए गए हैं उसका आधार इतना विस्तृत है कि उसमें सवर्ण जातियों का एक बड़ा तबक़ा समाहित हो जाएगा.

अगर हम प्रस्तावित बिल के तय मानकों पर नज़र डालें तो उसके अनुसार जिस परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से कम होगी, या जिनके पास 5 हेक्टेयर से कम कृषि योग्य ज़मीन होगी, या जिनके पास 1000 वर्ग फुट से कम का मकान होगा या जिनके पास नगरपालिका में शामिल 100 गज़ से कम ज़मीन होगी या नगरपालिका में ना शामिल 200 गज़ से कम ज़मीन होगी. ये तमाम लोग आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण के योग्य होंगे.

इस तरह से सवर्ण जातियों के लगभग 85 से 90 प्रतिशत लोग इस आरक्षण को प्राप्त करने के योग्य हो जाएंगे.

इन सबके बीच अगर उन राज्यों की बात की जाए जहां बीजेपी का बहुत अधिक जनाधार नहीं है जैसे केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना. यहां इस क़दम का बहुत ही कम असर पड़ेगा.

इन राज्यों की राजनीति में वहां की क्षेत्रीय पार्टियों का ही दबदबा रहता है, और यह मान लेना कि बीजेपी के इस एक क़दम से इन राज्यों के वोटर बीजेपी की तरफ़ पूरी तरह झुक जाएंगे अपने आप में बेमानी होगा.

एक तरह से साफ़ है कि बीजेपी को इन राज्यों में तो अपने इस मास्टर स्ट्रोक का बहुत अधिक फ़ायदा नहीं मिलने वाला.

गैर हिंदी भाषी राज्य
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जहां बीजेपी का वोट बढ़ा...

इसके अलावा कुछ और राज्य भी हैं जहां साल 2014 के चुनाव में बीजेपी बहुत अधिक मज़बूत नहीं थी, जैसे पश्चिम बंगाल या ओडिशा.

इन राज्यों में ऐसे संकेत मिले हैं कि बीजेपी का वोटबैंक कुछ हद तक बढ़ा है. लेकिन इसके पीछे सवर्ण जातियों का वोट नहीं है. इस वोटबैंक के बढ़ने के पीछे असल में लोगों की सत्ताधारी दलों के प्रति नाराज़गी है.

हालांकि कुछ राज्यों में बीजेपी ने हिंदू कार्ड के दम पर बहुत अहम बढ़त भी बनाई है, जिसमें असम एक बड़ा राज्य है.

यह माना जा सकता है कि इन राज्यों में बीजेपी को 2014 के मुक़ाबले 2019 में अधिक वोट मिल सकते हैं लेकिन इसके पीछे सवर्ण जातियों का वोट नहीं होगा.

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कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बीजेपी सरकार का सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला उसे बहुत अधिक राजनीतिक लाभ तो नहीं देने वाला.

इस प्रस्तावित बिल का मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में जितना हल्ला हो रहा है, असल में बीजेपी को इससे उतने अधिक फ़ायदे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

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English summary
Why BJP can not get reservation by giving reservation to the upper castes
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