अयोध्या में क्यों फेल हुई मध्यस्थता, मंदिर के लिए जमीन छोड़ने को तैयार था सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड
लखनऊ: अयोध्या मसले पर मध्यस्थता की कोशिशें भले ही फेल हो गई हैं। लेकिन अब ये जानकारी सामने आ रही है कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मंदिर के लिए विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार था। उसका ये भी कहना था कि वो इसके बदले मस्जिद बनाने के लिए कोई भी जमीन नहीं लेगा। लेकिन वक्त की कमी से एक और पक्षकार को मनाया नहीं जा सका।
अयोध्या पर मध्यस्थता क्यों हुई फेल
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार अब मुस्लिम उलेमा का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि अयोध्या मामले पर मुकदमे की सुनवाई के साथ-साथ मध्यस्थता फिर से शुरू की जाए, ताकि मसले का हल कोर्ट के बाहर निकल सके। अयोध्या मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में पिटीशनर है क्योंकि बाबरी मस्जिद सुन्नी वक्फ बोर्ड में वक्फ की मस्जिद के तौर पर दर्ज थी। समझौते के कई दौर चले। मध्यस्था के पहले दौर में सभी मुस्लिम पक्षकारों ने पेशकश की की वे हाई कोर्ट के उस फैसले को मान लेंगे जिसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर एक तिहाई मुसलमानों को दी गई थी। वह पूरी जमीन पर दावा छोड़ देंगे। उनका कहना था कि एक तिहाई जमीन पर मस्जिद बना लेंगे और दो तिहाई मंदिर के लिए छोड़ देंगे। लेकिन दूसरा पक्ष इस पर सहमत नहीं था।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन छोड़ने को तैयार था
वहीं समझौते के अंतिम दौर में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जमीन से दावा छोड़ने की पेशकश की थी। लेकिन उसकी सुप्रीम कोर्ट से कुछ मांगें थीं। इसमें से प्रमुख मांग ये थी कि प्लेसस ऑफ वर्सिप (स्पेशल प्रावीजंस ) एक्ट 1991 को सख्ती से लागू कराया जाए, जिसके मुताबिक अयोध्या के अलावा सभी धर्म स्थानों की 1997 की स्थिति कायम रहेगी। इसके अलावा जो मस्जिदें ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के पास हैं उनमें मुमकिन हो तो नमाज की इजाजत दी जाए और अयोध्या की दूसरी मस्जिदों में मरम्मत की परमिशन दी जाए। उसकी ये भी मांग थी कि अयोध्या में 1992 में मारे गए मुस्लिम लोगों के परिवारों को मदद दी जाए।
'मुसलमान पैसे से कहीं भी मस्जिद बना लेंगे'
एनडीटीवी के रिपोर्ट के बताया गया है कि सूत्रों के मुताबिक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मंदिर के लिए जमीन देने के बदले मस्जिद बनाने के लिए सरकार से कोई जमीन नहीं चाहता था। उसका कहना था कि मंदिर के लिए जमीन देकर बदले में मस्जिद के लिए जमीन लेना सौदेबाजी होगी। मुसलमान चाहेंगे तो वे अपने पैसे से कहीं भी मस्जिद बना लेंगे। गौरतलब है कि अयोध्या जमीनी विवाद में आठ मुस्लिम पक्षकार हैं। इनमें से चार निजी याची इकबाल अंसारी, हाजी महबूब, मोहम्मद उमर, मिजबाहुद्दीन और मौलाना महफूजुर्रहमान हैं। जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद का रिप्रेजेंटेटिव सूट है।
कोर्ट का फैसले से हिंसा का अंदेशा
उद्योग घराने अल्लाना संस के डायरेक्टर फौजानअल्वी के मुताबिक मीडिएशन ही इसका सबसे बेहतर हाल है। कोर्ट का फ़सला जिस समुदाय के खिलाफ आएगा उसके अंदर हारने की हीन भावना पैदा होगी और फिर कोर्ट के फ़ैसले से हिंसा का अंदेशा है। अगर फ़सला मस्जिद के पक्ष में आता है तो वहां अब मस्जिद नहीं बन सकती, इससे हिंसा होगी। अगर मंदिर के पक्ष में आया तो पूरे देश में गली-गली विजय जुलूस,आतिशबाजी और भड़काऊ नारे लगेंगे और उससे भी हिंसा होगी। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने इस पर कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के साथ-साथ मीडिएशन कमेटी को अपना काम पूरा करने की इजाजत मिल जाए तो इंशा अल्लाह समझौता हो सकता है।
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