नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पर असदुद्दीन ओवैसी ने क्यों की भारत की इजरायल से तुलना?
नई दिल्ली। सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल (कैब) संसद में पेश कर दिया है। इस बिल को लेकर लोकसभा में जमकर हंगामा हुआ। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन विधेयक से खासे नाराज हैं। ओवैसी ने कहा है, 'कृप्या देश को ऐसे कानून से बचाएं। अमित शाह का नाम हिटलर के तौर पर याद किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि यह बिल लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। उन्होंने इस बिल को इजरायल के नागरिकता बिल की तर्ज पर करार दिया है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि भारतीय संविधान में लिखा है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। एक नजर डालिए कि आखिर ओवैसी ने क्यों लगता है कि देश अगला इजरायल बन सकता है।
क्या है इस बिल के विरोध की वजह
जो बिल सरकार की तरफ से आया है उसमें पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इसके अलावा नॉर्थ-ईस्ट में इस नागरिकता संशोधन विधेयक का बड़े पैमाने पर विरोध होता रहा है। इस बिल में पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नियमों में ढील देने का प्रावधान है। भारत के संविधान की अगर बात करें तो यह सर्वधर्म समभाव की बात करता है यानी हर धर्म के लोगों को अपने-अपने धर्म को मानने की पूरी आजादी है। जबकि इजरायल में ऐसा नहीं है। इस देश का गठन ही एक खास धर्म के लोगों को बसाने के लिए किया गया था।
भारत में धर्म की आजादी मगर इजरायल में...
साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक इजरायल में 74.2 प्रतिश ज्यूइश यानी यहूदी, 17.8 प्रतिशत मुसलमान, 2 प्रतिशत क्रिश्चियन और 1.6 प्रतिशत ड्रयूज हैं। वहीं 4.4 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो समैरियाईवाद और बहलिज्म को मानते हैं और कुछ ऐसे हैं जो किसी धर्म में यकीन नहीं रखते हैं। वहीं अगर भारत की बात करें तो साल 2011 में जारी जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक देश में 79.8 प्रतिशत हिंदू, 14.2 प्रतिशत मुसलमान, 2.3 प्रतिशत क्रिश्चियन, 1.7 प्रतिशत सिख और 0.7 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो बौद्ध धर्म को मानते हैं। लेकिन यहां पर यह बात गौर करने वाली बात यह है कि आबादी की तुलना में भारत, इजरायल से कहीं आगे है। भारत की कुल यहां पर करीब 130 अरब की आबादी है और इसमें मुसलमान धर्म को मानने वाले 20 करोड़ से भी ज्यादा है और भारत दुनिया की 11 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को अपने में समेटे हुए है। वहीं इजरायल की आबादी 85 लाख से ज्यादा है जिसमें मुसलमान करीब 15 लाख 62 हजार हैं।
इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म
इजरायल में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस देश में सबसे ज्यादा आबादी में इस्लाम को मानने वाले ऐसे लोग हैं जो अरब देशों के नागरिक हैं। जेरूशलम, सऊदी अरब के मक्का मदीना के बाद दुनिया की सबसे पवित्र जगह है। लेकिन यह बात भी सच है कि इजरायल के संबंध खाड़ी के मुसलमान देशों से अच्छे नहीं हैं। इन देशों के मन में इजरायल की एक निगेटिव इमेज बनी हुई है। दुनिया भले ही सैन्य ताकत के दम पर इजरायल का लोहा मानती है, मगर यह सच है कि यहां पर बसी यहूदियों की आबादी की वजह से इससे कन्नी काटी जाती है।
युद्ध से बिगड़ी तस्वीर
करीब 52 साल पहले इजरायल और अरब देशों के बीच युद्ध चला था और सिर्फ छह दिनों तक चलने वाले इस युद्ध की वजह से इजरायल की इमेज और बिगड़ गई। नफरत इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि सन् 1948 में जब इजरायल बना तब से ही अरब देश से जवाब देने का रास्ता तलाश रहे हैं। सन् 1947 में जो युद्ध छिड़ा उसमें अरब देश विदेशी शासन से अपनी आजादी के लिए खड़े हुए थे और दुनिया में जगह-जगह फैले हुए यहूदी तरह-तरह के अत्याचारों से परेशान थे। 48 में इजरायल का गठन हुआ और मुसलमान देश इसे यहूदियों का देश मानने लगे।
अमेरिका ने दी इजरायल के फैसले को मान्यता
पिछले दिनों अमेरिका ने यह कहकर मुसलमान देशों का गुस्सा बढ़ा दिया है कि साफ कर दिया है कि फिलिस्तीन की सीमा में आने वाले वेस्ट बैंक में इजरायल का अधिग्रहण पूरी तरह से कानूनी है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपेयो की तरफ से आए इस बयान को इजरायल के लिए अमेरिका की नीति में बड़े परिवर्तन का इशारा माना गया है। इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की मानें तो अमेरिका के रुख के बाद एक एतिहासिक गलती को सुधारा गया। फैसला 600,000 इजरायली नागरिक जो वेस्ट बैंक में रहते हैं और 2.9 मिलियल फिलीस्तीनी नागरिक जो ईस्ट जेरूशलम में रहते हैं उनके लिए सही है।