मोदी सरकार के लिए डेटा जुटा रहे लोगों को क्यों पीट रहे हैं लोग
नज़ीरन बानो नाम की एक सर्वेयर 22 जनवरी को राजस्थान के कोटा में थीं. वह भारत सरकार के लिए आर्थिक जनगणना का डेटा जुटा रही थीं. नज़ीरन का आरोप है कि जब उन्होंने डेटा के लिए लोगों से सर्वे के कुछ सवाल पूछे, तो उनके साथ बदसलूकी की गई. नज़ीरन कहती हैं, "हम आर्थिक जनगणना करने गए थे. पहले डेटा दे दिया, फिर मोबाइल छीनकर ज़बर्दस्ती करके
नज़ीरन बानो नाम की एक सर्वेयर 22 जनवरी को राजस्थान के कोटा में थीं. वह भारत सरकार के लिए आर्थिक जनगणना का डेटा जुटा रही थीं. नज़ीरन का आरोप है कि जब उन्होंने डेटा के लिए लोगों से सर्वे के कुछ सवाल पूछे, तो उनके साथ बदसलूकी की गई.
नज़ीरन कहती हैं, "हम आर्थिक जनगणना करने गए थे. पहले डेटा दे दिया, फिर मोबाइल छीनकर ज़बर्दस्ती करके मेरा IP डिलीट मार दिया. इससे मेरा सारा डेटा लॉस हो गया. मेरा क्या था, सरकार का डेटा था. पर इन लोगों ने मेरे साथ कोई को-ऑपरेट ही नहीं किया. इन्होंने मेरा हाथ ऐसे मरोड़कर फिर मोबाइल छीनकर डेटा डिलीट करके मोबाइल को ऐसे फेंक दिया. मैंने FIR करा दी है."
आर्थिक जनगणना के लिए डेटा इकट्ठा करने वाले सर्वेयर्स के साथ ऐसे व्यवहार की यह पहली घटना नहीं है.
नज़ीरन से पहले बिहार के दरभंगा ज़िले में भी एक ऐसा मामला सामने आया था.
बिहार के दरभंगा जिले के झगरुआ गांव में सर्वे करने वाली टीम के एक सदस्य अखंड प्रताप सिंह ने बीबीसी को बताया, "हम प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में लोगों से सवाल पूछने गए थे. हम प्रो. शिखर सिंह के लिए सर्वे कर रहे थे, जो अमरीका में रहते हैं. उन्हें किताब लिखने के लिए यह डेटा चाहिए था. हमें मुस्लिमों और दलितों के बारे में सर्वे करना था, तो हमारे पास गांव के मुस्लिम और दलितों की लिस्ट ही थी. यह लिस्ट देखकर गांववालों ने बात करने से मना कर दिया. हमने एक भी सवाल नहीं पूछा था. हमने सफाई भी दी, लेकिन गांववाले नहीं माने. बोले कि तुम लोग NRC-NPR का डेटा लेने आए हो. वहां कुछ लोग हमारी गाड़ी जलाने जैसी बातें भी करने लगे थे. उनके मना करने पर हम बिना सर्वे किए वापस आ गए."
बीबीसी से बातचीत में अखंड प्रताप सिंह ने बताया कि दरभंगा के जमालपुर थाने में इस पूरे मामले की एफ़आईआर भी दर्ज कराई है.
डेटा इकट्ठा कर रहे नौजवानों के साथ ऐसा सलूक क्यों हो रहा है, इसका जवाब हमें हाल ही में गठित की गई 'स्टैंडिंग कमिटी ऑफ इकॉनॉमिक स्टैटिस्टिक्स' के चीफ प्रणब सेन की बातों से मिलता है.
प्रणब कहते हैं, "लोगों से बात किए बगैर यह कहना मुश्किल है कि वो ऐसी प्रतिक्रियाएं क्यों दे रहे हैं. पर दूसरा पहलू यह भी है कि जुलाई 2019 में जब यह काम शुरू हुआ था, तब लोगों ने ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दी थी. NRC और NPR की बहस तूल पकड़ने के बाद हमें ऐसे हालात का सामना करना पड़ रहा है."
किन लोगों को सर्वे करने भेजा जाता है?
प्रणव बताते हैं कि मुख्य तौर पर डेटा नेशनल सैंपल सर्वे यानी NSS के अधिकारी ही इकट्ठा करते हैं. इसके अलावा ज़रूरत पड़ने पर कॉन्ट्रैक्ट पर इन्वेस्टिगेटर्स को भी हायर किया जाता है.
हालांकि, ये इन्वेस्टिगेटर्स NSS की देखरेख में ही काम करते हैं. इन्हीं को सवालों की लिस्ट दी जाती है और ऐसी डिवाइसेज़ मुहैया कराई जाती हैं, जिनमें ये डेटा फीड कर सकें.
लोगों को किन सवालों से आपत्ति हो रही है?
इस सवाल के जवाब में प्रणब बड़ी दिलचस्प बात बताते हैं. वह कहते हैं कि सबसे पहली दिक्कत तो यही है कि लोग बात नहीं करना चाहते. निजी सवाल पूछने पर वो टाल-मटोल की कोशिश करते हैं. कई जगहों पर देखा ही जा चुका है कि सर्वेयर्स को हाथापाई तक का सामना करना पड़ा.
फिर भी, सवालों का सिलसिला शुरू होने पर माइग्रेशन के सवालों पर लोगों की भौंहें तन जाती हैं. मसलन किसी से पूछा जाए कि वे मूलत: कहां के रहने वाले हैं और किसी जगह पर कितने वक्त से रह रहे हैं, तो उन्हें जवाब देने में दिक्कत होती है.
सही डेटा न मिलने के क्या नुकसान हैं?
प्रणब बताते हैं कि आर्थिक जनगणना में सबसे पहले घरों की सूची तैयार की जाती है. घरों की सूची तैयार होने पर उन्हें समूहों में बांटा जाता है. ये समूह इलाके और घरों की संख्या के आधार पर बनाए जाते हैं.
फिर जब जनगणना की बारी आती है, तो सर्वे करने वालों को यही समूह आबंटित किए जाते हैं. सर्वे करने वाला शख्स अपने हिस्से वाले इलाके के सभी घरों के लोगों की गिनती करता है और उनसे डेटा इकट्ठा करता है.
ऐसे में अगर घरों की सूची ही ग़लत हो जाएगी, तो जनगणना के सटीक आंकड़े मिलने की संभावना कम होती जाएगी. प्रणब कहते हैं, "ये ग्रुप न बनने पर कहीं कुछ लोग दो-दो बार गिन लिए जाएंगे, तो कहीं कुछ लोग एक बार भी नहीं गिने जाएंगे."
ऐसे स्थितियों से निपटने के लिए क्या हो रहा है?
आर्थिक जनगणना का यह काम जुलाई 2019 में शुरू हुआ था. प्रणब के आकलन के मुताबिक़ यह काम जून 2020 तक पूरा होने की संभावना है. तब तक डेटा इकट्ठा कर रहे सर्वेयर्स को अप्रिय स्थितियों का सामना न करना पड़े, इसके लिए नेशनल सैंपल सर्वे सोच-विचार कर रहा है.
वह फैसला करेगा कि लोगों को आश्वस्त करने के लिए क्या किया जा सकता है.
प्रणब कहते हैं, "अगर लोगों को भरोसा नहीं दिलाया गया, तो अभी तक चली इस मशक्कत भरी कवायद का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा."