गोवा में तट पर पसरे कोयले से क्यों डर गए हैं लोग
गोवा में बीते कुछ समय से प्रदर्शन कर रहे स्थानीय लोगों को डर है कि प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर गोवा कोयले के ढेर में बदल सकता है.
भारत के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक गोवा में बीते कुछ सप्ताह से तीन ढांचागत परियोजनाओं को लेकर प्रदर्शन देखने को मिले हैं. स्थानीय लोगों को डर है कि यह परियोजनाएं राज्य की जैव विविधता को नुक़सान पहुंचाएंगी और इसे एक कोयले के ढेर में तब्दील कर देंगी.
शाम को कुएरिम बीच पर टहलते हुए क्लॉड अलवारेस रेत में मिले कोयले को दिखाते हैं. वो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो बताते हैं कि यह कोयला 70 किलोमीटर दूर मुरगांव बंदरगाह ट्रस्ट (एमपीटी) से यहां पहुंचा है.
वो कहते हैं,"यह कोयला बेहद हल्का है, पानी में मिल जाता है और लहरों के ज़रिए गोवा के समुद्री किनारों पर फैल जाता है. ऐसी संभावना है कि अगर आप समुद्र के किनारे टहल रहे हैं तो आपके पैरों के नीचे कोयला आ जाए."
गोवा का इकलौता बंदरगाह एमपीटी लगातार विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहा है. इस बंदरगाह के ज़रिए पड़ोसी राज्यों के स्टील प्लांट्स तक 90 लाख टन कोयला सड़क और रेल मार्ग से पहुंचता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एमपीटी का लक्ष्य 2030 तक 5.16 करोड़ टन कोयला आयात करने का है ताकि दूसरे राज्यों में मौजूद अडानी समूह, जेएसडब्ल्यू समूह और वेदांता जैसी कंपनियों को कोयले की आपूर्ति कराई जा सके.
सरकार ने जब तीन नई परियोजनाओं की घोषणा की तो उसका कहना था कि यह हाइवे को चौड़ा करने, रेलवे लाइन को डबल करने और बिजली की लाइन बिछाने के लिए हैं जबकि पर्यावरणविदों का कहना था कि यह कोयले का परिवहन आसान बनाने के लिए किया जा रहा है.
गोवा की सरकार ने अनुमानों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि इन परियोजनाओं का कोयले से कोई लेना-देना नहीं है. सरकार का कहना है कि नई बिजली की लाइन से राज्य को ज़रूरी बिजली मिलेगी, हाइवे के कारण बढ़ते ट्रैफ़िक से निजात मिलेगी और अतिरिक्त रेलवे लाइन से अधिक मालगाड़ी और यात्री ट्रेनें चल सकेंगी.
लेकिन पर्यावरणविदों को चिंता इस बात को लेकर भी है कि इन सभी तीन परियोजनाओं के लिए दक्षिणी गोवा के संरक्षित वाइल्डलाइफ़ रिज़र्व को काटना होगा. इन जंगलों को ख़तरा है और इन्हें हिमालय से भी पुराना बताया जाता है.
राज्य के पर्यटन उद्योग भी ख़ासा चिंतित है. गोवा के घने जंगल और सुंदर समुद्र तट के कारण हर साल देश-विदेश के लाखों पर्यटक यहां घूमने आते हैं.
उनको डर है कि इन परियोजनाओं से वाइल्डलाइफ़ पर ख़ासा असर पड़ेगा और पूरा पर्यटन उद्योग इसी पर टिका हुआ है.
दांव पर जैव विविधता
भारत के पश्चिमी घाट पर मौजूद यह संरक्षित इलाक़ा 240 स्क्वैयर किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. यूनेस्को ने जैव विविधता के मामले में इसे दुनिया के आठवें पायदान पर जगह दी है.
यहां पर 12वीं सदी का हिंदू मंदिर है, हरे-भरे उष्णकटिबंधीय वन और झरने मौजूद हैं. यहीं पर दूधसागर झरना मौजूद है जिसको लेकर पर्यटकों में ख़ासी दिलचस्पी रहती है.
यह संरक्षित क्षेत्र 128 देसी जड़ी-बूटियों, पक्षियों, तितलियों, सरीसृपों का घर है, इसमें तेंदुए, बंगाल टाइगर और पैंगोलिन जैसे स्तनपायी जानवर भी पाए जाते हैं.
प्रस्तावित रेलवे ट्रैक के नज़दीक गोवा में पाई जाने वाली पतंगे की एक ख़ास प्रजाति रहती है. वहीं, बिजली की लाइन की जगह भारत की उन दो जगहों में से एक है जहां पर एक ख़ास चींटी की प्रजाति पाई जाती है.
सरीसृप वैज्ञानिक और संरक्षणकर्ता निर्मल कुलकर्णी कहते हैं कि स्कूल पिकनिक के दौरान उन्हें इन जंगलों में सांपों को लेकर प्यार पैदा हुआ था.
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कुलकर्णी ने कहा, "इसके बाद मैं कई बार मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान गया. इन उष्णकटिबंधीय वनों में बहुत सारी सरीसृपों और उभयचरों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से कुछ तो पूरी दुनिया में कहीं नहीं पाई जाती हैं और इसी विविधता को हमें सुरक्षित रखना चाहिए."
कुलकर्णी उन सैकड़ों आम लोगों, वैज्ञानिकों, कार्यकर्ताओं, छात्रों और दूसरे लोगों में शामिल हैं जिन्होंने राज्य और केंद्र के अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों को पत्र लिखे हैं. इनमें भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी सामिल हैं. उनकी मांग है कि जिन परियोजनाओं से पार्क और अभ्यारण्य के लिए ख़तरा है उन्हें तुरंत बंद किया जाए.
मोल्लेम बचाव अभियान
मार्च में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन शुरू होने के तकरीबन दो सप्ताह बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए कई परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी थी. इसके बाद स्थानीय स्तर के कई संगठनों और स्वतंत्र प्रदर्शनकारियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया.
प्रदर्शनकारियों ने इस तरह से परियोजना को हरी झंडी देने पर सवाल खड़े किए हैं और इसकी समीक्षा की मांग की है. हालांकि, गोवा के अपने हालिया दौरे के दौरान जावड़ेकर ने इससे जुड़े सवाल पर कोई जवाब नहीं दिया. जब स्थानीय लोगों की चिंताओं के बारे में उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जो भी याचिका उनके पास आती है उसका वो 'ज़रूर अध्ययन करेंगे.'
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इसके बाद चंदोर में रेलवे ट्रैक पर हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने इसके विस्तार के ख़िलाफ़ पूरी रात प्रदर्शन किया. इनमें से छह के ख़िलाफ़ दंगा भड़काने और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से इकट्ठा होने को लेकर मामला दर्ज किया गया. हालांकि, वहां मौजूद बाक़ी लोगों का कहना था कि किसी ने उपद्रव नहीं किया था और बिना वजह के मामला दर्ज किया गया.
प्रदर्शन में शामिल होने वाले शेरी फ़र्नांडिस कहते हैं, "हमने अपनी जान जोखिम में डाली (महामारी में साथ इकट्ठा होने पर) तो सरकार को हमारी ओर ध्यान अवश्य देना चाहिए."
वो कहते हैं, "इस मुद्दे को लेकर अधिक जागरूकता फैलाने को लेकर हम कामयाब हुए हैं लेकिन हमारी मांगों को लेकर हमें कोई कामयाबी नहीं मिली है और यह तब तक नहीं होगा जब तक कि सरकार हमें सुन नहीं लेती."
प्रदर्शनकारियों की मांग है कि सरकार तीनों नई परियोजनाओं को ख़त्म करे और कोयले का सभी प्रकार का परिवहन और हैंडलिंग बंद करे.
कितनी चिंतित है राज्य सरकार
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने हाल में कहा था कि वो भी कोयला मुक्त और प्रदूषण मुक्त गोवा चाहते हैं.
वो कहते हैं, "हम कोयले के विकल्प तलाश रहे हैं. हम सालों से ले जाए जा रहे कोयले की मात्रा को कम कर देंगे और इसे बंद कर देंगे."
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लेकिन प्रदर्शनकारी इससे सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि सरकार के दावों के विपरीत नई पावर लाइन से गोवा की बिजली की कमी पूरी नहीं होगी क्योंकि बाक़ी राज्यों से बीते नौ सालों से जो बिजली ख़रीदी जा रही है उसमें मामूली बढ़ोतरी हुई है. और 2018-19 के बीच घरेलू या उद्योगों में यह पूरी इस्तेमाल भी नहीं हो सकी है.
उन्होंने यह भी कहा कि संरक्षित वनों से बुनियादी ढांचे की योजनाएं केंद्र सरकार की पहल का हिस्सा हैं जिसमें नए बंदरगाहों के निर्माण और उनके साथ संपर्क को बेहतर करना है.
सामाजिक कार्यकर्ता अभिजीत प्रभुदेसाई कहते हैं कि सभी दस्तावेज़ इशारा करते हैं कि गोवा कोयला हब बनने की ओर है.
वो कहते हैं, "हमने पांच महीने से अधिक पहले सरकार के साथ सभी दस्तावेज़ साझा किए थे लेकिन वे अभी भी हमारे दावों को ख़ारिज करने के लिए एक भी दस्तावेज़ नहीं पेश कर पाए हैं."