कांग्रेस के कमज़ोर होने से क्यों चिंतित हैं जनसंघ और भाजपा के संस्थापक सदस्य शांता कुमार
भारतीय जनता पार्टी में शांता कुमार वह नाम हैं जिनकी नसीहत भरी बेबाक टिप्पणियां समय-समय पार्टी नेतृत्व को असहज करती रही हैं.
भारतीय जनता पार्टी में शांता कुमार वह नाम हैं जिनकी नसीहत भरी बेबाक टिप्पणियां समय-समय पार्टी नेतृत्व को असहज करती रही हैं.
ज़्यादा समय नहीं हुआ है जब मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले का मुद्दा उछला था. उस समय शांता कुमार ही थे जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर कहा था कि इस प्रकरण पर कुछ किया जाना चाहिए वरना पार्टी की छवि को नुक़सान पहुंच रहा है और जनता का भरोसा टूट रहा है.
शांता कुमार भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं. वह जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं. पिछले 66 सालों से राजनीति में हैं और आपातकाल के दौरान जेल भी जा चुके हैं.
दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके शांता कुमार, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रहे थे. अभी वह कांगड़ा लोकसभा सीट से सांसद हैं मगर इस बार वह चुनाव नहीं लड़ रहे.
पार्टी ने कांगड़ा से उनकी जगह धर्मशाला सीट से बीजेपी विधायक और राज्य में भाजपा सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री किशन कपूर को उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में सक्रिय राजनीति से दूर होने का फ़ैसला कर चुके शांता कुमार प्रदेश भर में बीजेपी के प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं.
अब भले ही वह पहले की तरह मुखर होकर पार्टी और नेतृत्व को आदर्शों, मर्यादा और मूल्यों का पाठ नहीं पढ़ाते मगर वर्तमान की पूरी राजनीति पर टिप्पणी करते हुए उनकी बातों में अपनी पार्टी के लिए भी संदेश और नसीहत के स्वर सुनाइए देते हैं. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में उनसे बात करते हुए तो कम से कम यही महसूस हुआ.
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'जनता के मुद्दों पर नहीं हो रही बात'
शांता कुमार से जब पूछा गया कि हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए हो रहे प्रचार के दौरान क्षेत्रीय मुद्दे ग़ायब हैं और ऐसा करने में बीजेपी भी शामिल है. उनका जवाब था कि ऐसा हिमाचल में ही नहीं, पूरे देश में हो रहा है.
उन्होंने कहा, "वैसे तो सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत इस चुनाव उत्सव को मना रहा है और अच्छे से चुनाव हो रहे हैं मगर दुर्भाग्य है कि जनता के बुनियादी मुद्दों पर बहुत कम चर्चा हो रही है. यह रानजीति की अपरिपक्वता है. और चर्चा मुद्दों पर अधिक होनी चाहिए और इसका एक कारण है. कारण यह है कि भारत में कोई स्वस्थ और सशक्त विपक्ष ही नहीं रहा. भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर किसी को यह अच्छा लग सकता है मगर लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है."
शांता कुमार ने कहा कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस गांधी परिवार के प्रभाव से बाहर निकले, क्योंकि ये ही ऑल इंडिया की एक पार्टी है जो सत्ता पक्ष के मुक़ाबले है. उन्होंने कहा कि विपक्ष के सशक्त न हो पाने के कारण ही बुनियादी मुद्दों पर इन चुनावों में चर्चा नहीं हो पा रही.
हालांकि जब उनसे पूछा गया कि भारतीय जनता पार्टी भी तो ऐसा ही कर रही है, चुनाव में पुलवामा, बालाकोट और सेना जैसे मुद्दे छाए हुए हैं. इसके जवाब में वह कहते हैं, "बात यह है कि जब विपक्ष के नेता बिना किसी प्रमाण के प्रधानमंत्री को चोर कह देते हैं तो राजनीति रास्ते से उतर जाती है. हमारी पार्टी ने बुनियादी मुद्दों को उठाकर जवाब देने की कोशिश की है. मगर इतना बड़ा देश है, इतनी बड़ी पार्टी है. हमारे लोगों से भी कहीं ग़लती होती होगी जो नहीं होनी चाहिए."
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पांच साल की उपलब्धियों पर बात क्यों नहीं?
शांता कुमार से पूछा गया कि 2014 के चुनावों में जब नरेंद्र मोदी प्रचार कर रहे थे वो स्थानीय मुद्दों को उठाकर जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे. हिमाचल में उन्होंने मज़बूत रेल नेटवर्क, बाग़बानों को लाभ और स्थानीय कला को अंतरराष्ट्रीय मंच देने जैसे वादे किए थे. क्या इस दिशा में काम हो पाया है? अपने पांच सालों की उपलब्धियों के बजाय पिछली कांग्रेस सरकारों को इस तरह से कोसना मानो इन पांच सालों में भी कांग्रेस का ही शासन रहा हो, कितना सही है?
इसके जवाब में शांता कुमार कहते हैं, "बहुत कुछ हुआ है. हिमाचल में सड़कों के लिए बहुत पैसा आया. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 188 करोड़ रुपये चंबा जैसे छोटे से ज़िले के लिए ही आया. सभी वादे पूरे हो रहे हैं. दरअसल हमें विरासत में 10 साल का करप्शन से जर्जर प्रशासन मिला था. उससे उबरने में, ख़ज़ाने को भरने में और योजनाएं बनाने में समय लगा. लेकिन मैं समझता हूं कि अब सब ठीक हो गया है और सब कुछ अब तेज़ी से आगे बढ़ेगा."
राष्ट्रीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाए जाने को लेकर वह कहते हैं, "हिमाचल प्रदेश फ़ौजियों का घर है, देश की सुरक्षा से संबंधित राष्ट्रीय मुद्दे भी तो उठाए ही जाएंगे. लोकसबा चुनाव दिल्ली का चुनाव है, इसमें राष्ट्रीय मुद्दे होने चाहिए. क्षेत्रीय भी होने चाहिए."
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भाषा पर नेताओं को नसीहत
हाल ही में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे. राहुल गांधी को मंच से अपशब्द पढ़ने और जनसभा में विरोधियों के हाथ काटने जैसे भाषणों को लेकर उन्हें चुनाव आयोग से न सिर्फ़ नोटिस मिले बल्कि उनके प्रचार करने पर प्रतिबंध भी लगा.
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विपक्ष ने इस बात को लेकर आलोचना की कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर वन कह दिया. भाषा को लेकर उठ रहे सवालों पर शांता कुमार कहते हैं कि पूरे देश में रानजीति का स्तर गिरा है.
उन्होंने कहा, "राजनीति का बहुत अवमूल्यन हुआ है. जब सुभाषचंद्र बोस के लिए पहली बार नेता जी शब्द इस्तेमाल हुआ था, उसकी तुलना में आज यह शब्द उतना सम्माजनक नहीं रहा. इसमें सभी नेताओं की ज़िम्मेदारी है और मुख्यरूप से उनकी जो सत्ता में रहे. उन्होंने ग़लत काम किए और लोगों की नज़रों से गिर गए. इस बार दल-बदल बहुत हुआ, भाषा पर संयम नहीं रहा."
सत्ती के बयानों को लेकर शांता ने कहा कि उन्होंने इसके लिए खेद प्रकट किया है मगर ऐसी टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "मैं तो सभी नेताओं को कहता हूं कि भाषा पर संयम रखना चाहिए. हिमाचल की राजनीति का स्तर बहुत अच्छा रहा है, उसका सम्मान करें. हमारे नेताओं ने बहुत संयम रखा है. बार-बार अगर कोई कांग्रेस का नेता, राहुल गांधी हमारे प्रधानमंत्री को चोर-चोर कहे तो मुझे भी ग़ुस्सा आया कई बार. मगर मैंने अपनी भाषा पर संयम रखा. उन्होंने (सत्ती ने) थोड़े ग़ुस्से में अपनी बात कही लेकिन एकदम खेद भी प्रकट किया. मगर ऐसा होना नहीं चाहिए, मैं ये मानता हूं."
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क्या बीजेपी आदर्शों पर क़ायम है?
बीजेपी के बहुत से वरिष्ठ नेता मौजूदा हालात और कार्यप्रणाली से असंतोष ज़ाहिर करते रहे हैं. कुछ ने पार्टी छोड़ने तक का फ़ैसला किया है. शांता कुमार बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. ऐसे में उनसे पूछा कि क्या अभी भी पार्टी उन्हीं आदर्शों पर चल रही है जो स्थापना के समय थे? इस सवाल का वो सीधा जवाब नहीं देते और इसमें अपनी ही पार्टी के लिए काफ़ी नसहीतें नज़र आती हैं.
उन्होंने कहा, "इस समय पूरे देश की राजनीति में यदि मूल्यों की राजनीति करने की कोशिश कोई कर रहा है तो वह बीजेपी है. मगर पूरी राजनीति के अवमूल्यन में हमसे भी ग़लती न हो जाए, इसकी सावधानी रखनी चाहिए. बारिश में छाता लेकर चलने में कुछ छींटे तो पड़ ही जाते हैं. मैं अपनी पार्टी में भी कहता हूं और बहुत से नेता पार्टी में कहते हैं कि हमने पंडित दीन दयाल उपाध्याय और अटल जी के समय से जो आदर्श बनाए हैं उन्हें सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है. पार्टी इस बात को लेकर सचेत है."
आगे वह राजनीति के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि नेताओं को सोचना होगा कि देश की सर्वोच्च अदालत को यह करना पड़ा कि नेताओं पर चल रहे मामलों के लिए विशेष अदालतें बननी चाहिए. उन्होंने कहा, "यह शर्म की बात है कि हत्यारों, डाकुओं के लिए स्पेशल कोर्ट न बने, नेताओं के लिए बने. यह गांधी, बोस और भगत सिंह का देश है. नेताओं से लोग उसी तरह की अपेक्षा रखते हैं. आज लोकतंत्र को सबसे बड़ा ख़तरा राजनीति के अवमूल्यन से है."
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प्रज्ञा को टिकट से अवमूल्यन नहीं?
लेकिन अगर ऐसा है तो मालेगांव ब्लास्ट केस में अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी द्वारा टिकट देने से राजनीति का अवमूल्यन नहीं होता? इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, "जब अरुण जेटली इस मामले को देख रहे थे तब मुझे उनके निकट रहने का मौक़ा मिला. एक बहुत बड़ी साज़िश हमारे ख़िलाफ़ हुई थी कि 'हिंदू आतंकवाद' फैलाया जाए और सारी गवाहियां फ़र्ज़ी थीं, इसलिए मैं समझता हूं कि प्रज्ञा ठाकुर का आना इस बात को साबित करेगा कि हमारे ख़िलाफ़ कितना बड़ा षडयंत्र किया गया था."
अच्छा नहीं होता अगर उनके दोषमुक्त होने पर पार्टी ऐसा मौक़ा देती? इस सवाल पर शांता कहते हैं- कितने ही नेता हैं जिन पर केस हैं वे चुनाव लड़ रहे हैं. दोषी सिद्ध होने से पहले आप लड़ सकते हैं. भारत के क़ानून के आधार पर उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार है और उसका वह इस्तेमाल कर रही हैं."
'वीरभद्र कर रहे बीजेपी का फ़ायदा'
कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और शांता कुमार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. मगर इन दिनों दोनों ही नेता एक-दूसरे की तारीफ़ करते नहीं थकते.
हाल ही में बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पंडित सुखराम पर न सिर्फ़ शांता कुमार निशाना साध रहे हैं बल्कि कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता वीरभद्र भी निशाना साध रहे हैं. इन दोनों वरिष्ठ नेताओं का सुखराम पर टिप्पणी करते हुए एक-दूसरे की तारीफ़ करना हिमाचल में सुर्ख़ियों में भी रहा है.
हाल में शांता कुमार ने कहा- मेरी और वीरभद्र की एक ही पार्टी है- सिद्धांत की पार्टी. आख़िर इस टिप्पणी के मायने क्या हैं, इस पर शांता कुमार ने कहा, "वीरभद्र सिंह अच्छे प्रशासक रहे हैं, हिमाचल में उन्होंने लंबे समय तक विकास का काम किया है. हिमाचल की राजनीति सौहार्द, सहयोगी और आदर की रही. हमने कभी व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए."
"मुझे ख़ुशी है कि वीरभद्र हर स्थिति में कांग्रेस में बने रहे. वहीं सुखराम जी पाला बदलते रहे. ऐसे में वीरभद्र जी की तड़प जुबान पर आ गई. उन्होंने फिर कहा कि उन्हें आश्रय (सुखराम के पौत्र और मंडी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी) तो पसंद हैं मगर सुखराम नहीं. वह दिल की बात कर रहे हैं. लोकतंत्र में उनकी बातें लाभदायक हैं और हिमाचल में तो वह हमारी मदद कर रहे हैं (मुस्कुराते हुए.)
हिमाचल की चारों सीटों पर जीत और देश में फिर से सरकार बनने का दावा करते हुए शांता कुमार कहते हैं ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा और योजना नहीं है.
उन्होंने कहा, "एक तरफ़ एक नेता है जिसे जनता ने देखा कि उसका काम क्या रहा, एक तरफ़ पार्टी है जिसके बारे में जनता जानती है कि इसने क्या करके दिखाया है और यह क्या करेगी. दूसरी तरफ़ न नेता है, न पार्टी और न गठबंधन. हमने अटल जी के समय एनडीए बनाया था तो एक नेता था, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम था, सरकार बनी और अच्छा काम किया. हमारे सामने तो इस बार कुछ है ही नहीं. मैं समझता हूं कि 2014 के मुक़ाबले हिमाचल और देश में और भी अधिक वोट हासिल करके पार्टी सत्ता में आएगी."
अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में शांता कुमार कहते हैं अब वह सक्रिय राजनीति में नहीं रहेंगे मगर विवेकानंद ट्रस्ट (उनका ट्रस्ट है) के माध्यम से सेवा करते रहेंगे और साथ ही पार्टी के लिए काम करते रहेंगे.
वह कहते हैं कि मैंने पहले ही फ़ैसला कर लिया था अब लड़ना नहीं है और इस निर्णय से पार्टी को अवगत करवा दिया था. वह कहते हैं, "इस बार मैं चुनाव लड़ा रहा हूं और इसमें मुझे आनंद प्राप्त हो रहा है."