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बिहार में NDA और महागठबंधन को इन छोटे-छोटे दलों से क्यों होने लगी है टेंशन

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नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चा के बीच इसबार शायद जितनी बड़ी पार्टियों को सीटों के तालमेल में उतनी दिक्कत न हो, उससे ज्यादा कुछ छोटी पार्टियों की वजह से अभी से होनी शुरू हो गई है। सबसे बड़ा दांव रामविलास पासवान की पार्टी ने चला है, जिसने एक-तिहाई से भी ज्यादा सीटों पर दावा ठोक दिया है। मतलब ये कि अगर एनडीए में लोजपा को रखना है तो बीजेपी और जेडीयू को चिराग पासवान की पार्टी से भी कम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने होंगे। चिराग का ये दावा कितना गंभीर है यह कहना मुश्किल है, लेकिन उनकी तरह ही जीतन राम मांझी भी महागठबंधन की सांसें अभी से फुलाने में लग गए हैं।

बिहार में छोटे दलों से दोनों गठबंधनों को है टेंशन

बिहार में छोटे दलों से दोनों गठबंधनों को है टेंशन

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इसबार प्रदेश में सत्ताधारी एनडीए गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन को एक बड़ी घटना का आभास हो रहा है। दोनों ही गठबंधन अंदर ही अंदर कुछ छोटे-छोटे दलों की सीट बंटवारे से पहले की प्रेशर टैक्टिस से परेशान हो रहे हैं। ये सारे दल किसी न किसी दलित या किसी पिछड़ी जाति की असल प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं। खासकर बिहार में दलितों का हिसाब ऐसा है कि करीब 16 फीसदी दलित वोट बैंक को किसी के लिए नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं है। इन पार्टियों की दबाव की राजनीति फिलहाल सबसे ज्यादा भाजपा, जदयू और राजद को ज्यादा परेशान कर रही हैं। जिन पार्टियों की हम बात कर रहे हैं, उनमें फिलहाल केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की एलजेपी एनडीए के साथ है। जबकि, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा महागठबंधन के साथ। इनके अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी और विकासशील इंसान पार्टी भी अभी लालू यादव की पार्टी के पीछे-पीछे चल रही हैं।

लोजपा ने बढ़ा रखी है एनडीए की टेंशन

लोजपा ने बढ़ा रखी है एनडीए की टेंशन

हम जाति आधारित बिहार की राजनीति में जिन छोटी पार्टियों की बात कर रहे हैं, उसमें सत्ता की मलाई अबतक सबसे ज्यादा पासवानों (रामविलास पासवान और चिराग पासवान) की पार्टी एलजेपी के हाथ लगी है। जीतन राम मांझी जदयू में रहते हुए नीतीश के आशीर्वाद से सीएम की गद्दी भी संभाल चुके हैं। रही बात 16 फीसदी दलित वोट बैंक की तो 'हम' का दावा 5 फीसदी मुसहर वोट बैंक पर है तो 'लोजपा' दुसाध (पासवान) के 4.5 फीसदी वोट बैंक पर अपना एकाधिकार मानती है। फिलहाल इन दोनों दलों ने अपने-अपने गठबंधन में दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। मसलन, चुनाव के वर्ष में लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान को अचानक नीतीश सरकार का काम पसंद नहीं आ रहा है और इसीलिए उन्होंने 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में कम से कम 94 सीटों पर अपना दावा जता दिया है। जबकि, 2015 के चुनाव में जब नीतीश और लालू की दोस्ती हो गई थी, तब भी भाजपा ने उन्हें सिर्फ 42 सीटों पर ही चुनाव लड़ने का मौका दिया था।

मांझी भी सियासी ताकत दिखाने के मूड में

मांझी भी सियासी ताकत दिखाने के मूड में

उधर 'हम' के अध्यक्ष मांझी को अब ग्रैंड एलायंस में तेजस्वी की मनमर्जी पंसद नहीं आ रही है, इसलिए वह एक समन्वय समिति की मांग कर रहे हैं। साथ ही साथ वे मुसहरों की आबादी के हिसाब से 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का भी दावा ठोक चुके हैं। मांझी इस पैंतरे में लगे हैं कि अगर चिराग ने एनडीए की लौ बुझाने की कोशिश की तो वह आसानी से वहां पर अपना जुगाड़ लगा सकें। बिहार की राजनीति में अभी रामविलास के बेटे चिराग की चर्चा इसलिए ज्यादा हो रही है क्योंकि, उनके सियासी बयानों में राजद नेता तेजस्वी की बातों से ट्यूनिंग दिख रही है। मसलन, कोरोना वायरस से निपटने पर विपक्षी नेता की हैसियत से तेजस्वी नीतीश को निशाना बना रहे हैं तो एनडीए में होते हुए भी चिराग सीएम को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। इसी तरह कोरोना के दौरान चुनाव कराने को लेकर तेजस्वी भी सवाल उठा रहे हैं, तो यही परेशानी लोजपा अध्यक्ष के बयानों में भी नजर आ रही है।

एनडीए में पड़ेगी दरार या निकलेगा कोई जुगाड़?

एनडीए में पड़ेगी दरार या निकलेगा कोई जुगाड़?

चिराग के बयानों के बाद जदयू के साथ उनकी तल्खी बढ़ने से भाजपा की चिंता भी बढ़ गई है। बीजेपी पहले ही नीतीश को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर चुकी है और बड़े पासवान भी बीजेपी के फैसले से सहमति जता चुके हैं। लेकिन, अब वही पासवान ये भी कहते हैं कि आज की तारीख में अध्यक्ष चिराग हैं और वह जो भी फैसला लेते हैं, उससे वो भी बंधे हुए हैं। वैसे भाजपा और जदयू के लोगों के साथ ही जानकार भी मानते हैं कि चिराग की सक्रियता सिर्फ इसलिए है कि वह अपनी पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटों का जुगाड़ कर सकें। मसलन, मौजूदा फॉर्मूले के हिसाब से अगर बीजेपी और जेडीयू 100-100 सीटों पर लड़ती है तो एलजेपी को 43 सीटों के ऑफर से संतोष करना पड़ सकता है, जो कि पिछले चुनाव से एक सीट ज्यादा ही है। लेकिन, दबाव बनाकर वह 43 सीटों से ज्यादा पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। क्योंकि, अगर गठबंधन ने लोकसभा में जीती हुई सीटों का फॉर्मूला निकाला तो लोजपा को कुछ सीटें छिनने का ही डर सता रहा है।

50 सीटों पर दलित वोट बैंक का ज्यादा प्रभाव

50 सीटों पर दलित वोट बैंक का ज्यादा प्रभाव

बिहार विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए 37 और अनुसूचित जनजाति के लिए 2 सीटें रिजर्व हैं। लेकिन, दलित पार्टियों का मानना है कि वह कम से कम 50 सीटों पर चुनावों को किसी के भी पक्ष में झुकाने का माद्दा रखती हैं। मुसहर और दुसाध के बाद बिहार में चुनाव प्रभावित करने के मामलों में रजक या धोबी और रविदास जातियों का भी बड़ा रोल है। इनके अलावा बंतर, बौरी, भोगता, भुइयां, भूमिज, चौपाल, डबगर,डोम, घासी, हलालखोर, हारी-मेहतर-भंगी, कंजर, कुरैरियार, लालबेगी, नट, पान-सवासी- पानर, पासी, राजवर और तुरी जैसी जातियां भी शामिल हैं। आज की तारीख में बिहार की सभी 22 अनुसूचित जातियां महादलित की श्रेणी में आती हैं और उन सबको बिहार सरकार की नीतियों का विशेष लाभ मिलता है। बिहार की राजनीति में यह महादलित का फॉर्मूला नीतीश कुमार ने ही निकाला था, लेकिन 2014 के चुनाव में इन्हीं महादलितों ने उन्हें बहुत ही धीरे से जोर का झटका भी दे दिया था।

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English summary
Why are both the NDA and the Grand Alliance in Bihar having tension with these small parties
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