Ladakh में BJP समेत सभी दलों ने क्यों किया चुनाव का बहिष्कार
नई दिल्ली- भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने लद्दाख एरिया हिल डेवलपमेंट काउंसिल के लिए होने वाले चुनाव के बहिष्कार का फैसला किया है। इनकी मांग है कि जब तक उन्हें उनकी जमीन और रोजगार की संविधान के तहत सुरक्षा की गारंटी नहीं तय हो जाती तब तक वह इस चुनाव में नहीं शामिल होंगे। हिल काउंसिल का चुनाव अगले 16 अक्टूबर को होना है और यह आर्टिकल-370 के खत्म होने और जम्मू-कश्मीर राज्य के दो संघ शासित प्रदेश में विभाजित होने के बाद का पहला चुनाव है। आर्टिकल-370 के खत्म होने के साथ ही यहां के लोगों को पहले से प्राप्त कुछ विशेषाधिकार भी खत्म हो गए हैं।
विशेषाधिकार की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार
लद्दाख में राजनीतिक दलों ने चुनाव बहिष्कार का फैसला तब लिया है, जब भाजपा शासित लद्दाख एरिया हिल डेवलपमेंट काउंसिल ने तीन हफ्ते पहले यहां के लोगों की जमीन, संस्कृति और रोजगार से जुड़े हितों की रक्षा के लिए संवैधानिक गारंटी दिए जाने का एक प्रस्ताव पारित किया था। माना जा रहा है कि लद्दाख में उठी मांग का असर पड़ोसी संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी पड़ सकता है। दरअसल, यहां की राजनीतिक पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर की तरह के डोमिसाइल कानून को नामंजूर कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में पर्मानेंट रेसिडेंट्स सर्टिफिकेट (पीआरसी) को हटाकर नया कानून लाया गया है। पीआरसी संविधान के आर्टिकल-35ए से जुड़ा था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को पहले विशेषाधिकार प्राप्त था और राज्य के बाहर के लोगों को प्रदेश में रोजगार और जमीन खरीदने पर प्रतिबंध लगा हुआ था।
छठी अनुसूची वाले अधिकार देने की मांग
अब भाजपा-कांग्रेस समेत बाकी समूहों ने पीपुल्स मूवमेंट के नाम से एक ज्वाइंट प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जिसके तहत लद्दाख के लोगों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत (बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की तरह) स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा और लेह-कारगिल दोनों हिल काउंसिल को अधिक अधिकार दिए जाने की मांग की जा रही है। सर्वदलीय प्रस्ताव के तहत यह कहा गया है कि, 'लद्दाख के लिए पीपुल्स मूवमेंट फॉर सिक्स्थ शेड्यूल की शिखर संस्था ने सर्वसम्मति से छठे एलएडीएचसी लेह चुनाव का तब तक बहिष्कार करने का प्रस्ताव पारित किया है, जब तक बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की तरह छठी अनुसूची के तहत लद्दाख और इसके लोगों के हितों की संवैधानिक सुरक्षा नहीं की जाती। ' बता दें कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी इलाकों में स्वायत्त जिले और रीजनल काउंसिल बनाने की व्यवस्था है।
लद्दाख में नई राजनीति
गौरतलब है कि जब जम्मू-कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म किया गया था और लद्दाख को अलग संघ शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था तो लेह के लोगों ने बढ़-चढ़ कर इस फैसले का स्वागत किया था। लेकिन, संघ शासित प्रदेश के तौर पर जब से नए प्रशासन ने कार्यभार संभाला है, हिल काउंसिल और उससे जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं को लगता है कि उनके अधिकार कम हो गए हैं। इस मानसिकता ने शायद वहां एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत कर दी है। जाहिर है कि इसी वजह से राजनीतिक विचारधारा भुलाकर सभी पार्टियां इस मांग का समर्थन कर रही हैं। (पहली तस्वीर के अलावा बाकी तस्वीरें सौजन्य: leh.nic.in)
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