राहुल गांधी चुनावों में जीत के बाद मुख्यमंत्री किसे बनाएंगे: नज़रिया
लेकिन कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन करने की स्थिति में मायावती के और अलग-थलग पड़ने की स्थिति सामने आ सकती है जो उन्हें बीजेपी-एनडीए की ओर धकेल सकता है.
मोदी के ख़िलाफ़ महागठबंधन की सफलता के लिए ज़रूरी है कि यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में ग़ैर-एनडीए क्षत्रप मज़बूती से सामने आएं और कांग्रेस बीजेपी के ख़िलाफ़ दमदार प्रदर्शन करे.
2019 में होने वाले आम चुनावों से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं.
कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जीत हासिल कर ली है और मध्यप्रदेश में भी वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपना एक साल उसी दिन पूरा किया जिस दिन विधान सभा चुनावों के नतीजे आए. ऐसे में उनकी पार्टी का बेहतरीन प्रदर्शन उनके लिए बहुत अहम है.
कांग्रेस ने एक ऐसे समय में बीजेपी को हराया है जब संगठन से लेकर मतदाताओं के बीच बीजेपी मज़बूत स्थिति में है.
ऐसे में एक टीम लीडर होने के नाते राहुल गांधी को अपने दो विश्वासपात्रों सचिन पायलट और कमल नाथ का शुक्रगुज़ार होना चाहिए.
इन दोनों नेताओं को उनकी मेहनत और लगन के लिए ख़ास मिलना चाहिए.
कौन बनेगा मुख्यमंत्री
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कमल नाथ और सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के असली हक़दार हैं.
लेकिन ये याद रखना चाहिए कि राजस्थान के प्रमुख नेता अशोक गहलोत को हाल ही में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव बनाया गया है.
कांग्रेस में एआईसीसी के महासचिव (संगठन) को गांधी परिवार के बाद सबसे ज़्यादा प्रभावशाली नेता माना जाता है. ऐसे में गहलोत को ये पद दिया जाना काफ़ी अहम है.
लेकिन गहलोत को जो काम दिया गया है उसका आकलन मई 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में किया जाएगा.
अगर कमल नाथ की बात करें तो मई 2018 में कांग्रेस की मध्य प्रदेश शाखा का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से कांग्रेस के इस वरिष्ठ सांसद ने पेशेवर अंदाज़ में अपने काम को अंजाम दिया है.
कमल नाथ ने तेज़ी से 65 राजकीय सरकारी कर्मचारी संघों और अलग-अलग सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक समूहों तक अपनी पहुंच बनाई.
यही नहीं, मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए समर्थन जुटाने की प्रक्रिया में उन्होंने भोपाल के 9 श्यामला हिल स्थित कांग्रेस दफ़्तर में कई लोगों से देर रात बैठकें भी कीं.
इस इमारत के ठीक बग़ल में शिवराज सिंह चौहान का आवास है.
कमल नाथ ने भोपाल की हुज़ूर विधानसभा में एक सिंधी समुदाय के उम्मीदवार को टिकट दिया.
सामान्य तौर पर माना जाता है कि ये समुदाय बीजेपी का समर्थन करता है. लेकिन नाथ की इस रणनीति की वजह से ये समुदाय कांग्रेस की ओर आ गया.
सोशल मीडिया पर कांग्रेस के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए पांच सौ लोगों की एक टीम लगातार काम करती रही.
ख़ास बात ये है कि ये टीम कांग्रेस के प्रादेशिक दफ़्तर में चल रहे वॉर रूम और सोशल मीडिया टीमों से अलग थी.
कैसे किया संघ का मुक़ाबला
आरएसएस के स्वयंसेवकों की संगठनात्मक ताक़त का मुक़ाबला करने के लिए कमल नाथ ने आंगनवाड़ी और आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद ली.
महिलाओं की बहुल्यता वाली ये टीमें पड़ोसी ज़िलों में घूम-घूमकर ये पता लगा रही थीं कि कांग्रेस के उम्मीदवार और दूसरी टीमें ठीक से काम कर रही हैं या नहीं.
इन टीमों से आए फ़ीडबैक की मदद से कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान कई स्तरों पर सुधार किया जा सका.
कुछ सरकारी कर्मचारी संघों ने कहा कि अगर गाड़ियों की व्यवस्था कर दी गई तो वे कमल नाथ के लिए चुनाव प्रचार कर सकते हैं.
कुछ ख़बरें आई हैं कि नाथ ने इनके लिए चार से पांच लाख रुपयों की व्यवस्था भी की.
लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला राहुल गांधी विधायकों के समर्थन के आधार पर ले सकते हैं.
ऊपरी तौर पर देखा जाए तो पता चलता है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया को 22 विधायकों का समर्थन भी हासिल नहीं है.
महागठबंधन के लिए नई उम्मीदें
कांग्रेस की संभावित जीत महागठबंधन के लिए नई उम्मीदें जगाती है.
चंद्रबाबू नायडू ने अगले आम चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के ख़िलाफ़ राज्य स्तरीय महागठबंधन बनाने की कोशिशें की हैं जो फ़िलहाल कांग्रेस के लिए मुफ़ीद नहीं है.
लेकिन विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन महागठबंधन में कांग्रेस को एक मज़बूती दे सकता है.
इस तरह के समीकरण में मायावती को राहुल गांधी को नेता मानने के लिए मजबूर होना पड़ेगा जिससे वो अब तक बचती नज़र आ रही थीं.
लेकिन कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन करने की स्थिति में मायावती के और अलग-थलग पड़ने की स्थिति सामने आ सकती है जो उन्हें बीजेपी-एनडीए की ओर धकेल सकता है.
मोदी के ख़िलाफ़ महागठबंधन की सफलता के लिए ज़रूरी है कि यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में ग़ैर-एनडीए क्षत्रप मज़बूती से सामने आएं और कांग्रेस बीजेपी के ख़िलाफ़ दमदार प्रदर्शन करे.
लेकिन संसदीय चुनावों में मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए मोदी का विरोध करने वाले दल एक सही समीकरण बनाने में अब तक असमर्थ रहे हैं.