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दिल्ली की आग में मरने वाले बिहार से आए ये मज़दूर 'कौन थे'

मोहम्मद बबलू, मोहम्मद अफ़साद और मोहम्मद मुशर्रफ़. ये वो नाम हैं जो शनिवार की शाम तक ज़िंदा थे. आँखों में अपने अपने संघर्ष, सपने और संकटों को लिए जी रहे थे. ये बिहार में अपने गाँवों से हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके दिल्ली के एक कारखानों में हर रोज़ 12 से 15 घंटों तक काम कर रहे थे. ये जहां काम करते थे, वहीं जगह बनाकर सो जाते थे. जितना कमाते थे

By अनंत प्रकाश
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मोहम्मद बबलू और मोहम्मद मुशर्रफ़
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मोहम्मद बबलू और मोहम्मद मुशर्रफ़

मोहम्मद बबलू, मोहम्मद अफ़साद और मोहम्मद मुशर्रफ़.

ये वो नाम हैं जो शनिवार की शाम तक ज़िंदा थे. आँखों में अपने अपने संघर्ष, सपने और संकटों को लिए जी रहे थे.

ये बिहार में अपने गाँवों से हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके दिल्ली के एक कारखानों में हर रोज़ 12 से 15 घंटों तक काम कर रहे थे.

ये जहां काम करते थे, वहीं जगह बनाकर सो जाते थे. जितना कमाते थे, उसमें से अधिकतम हिस्सा अपने गाँव भेज देते थे ताकि ये अपने माई-बाबा और बच्चों को दो वक़्त की रोटी दे सकें.

लेकिन रविवार सुबह दिल्ली की अनाज़ मंडी में लगी आग में इन चार युवाओं समेत 40 से ज़्यादा मजदूरों की मौत हो गई.

और ये नाम सरकारी फाइलों में क़ैद हो गए. मरने वालों में बच्चे भी शामिल हैं.

कई ऐसे परिवार हैं, जिनमें अब कमाने वाला कोई नहीं बचा है.

कई परिवार ऐसे हैं, जिनके गाँव घर से छह सात लड़कों की मौत हुई है.

लेकिन मोतिहारी, सहरसा, सीतामढ़ी से आने वाले लोग कौन थे और ये किन हालातों में दिल्ली आए थे.

मोहम्मद बबलू के भाई
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मोहम्मद बबलू के भाई

'पैसे कमाकर, भाई की शादी करानी है'

ये कहानी 20 साल के मोहम्मद बबलू की है, जो बिहार के मुजफ़्फ़रपुर से काम करने के लिए दिल्ली आए थे.

बबलू के भाई मोहम्मद हैदर का अपने भाई के ग़म में रो-रोकर बुरा हाल है.

हैदर बताते हैं, "मेरा भाई मुझसे बहुत प्यार करता था. बहुत अच्छा था. काम पर आने से पहले हमसे बोला था कि 'भाई हम दोनों भाई मिलकर काम करेंगे और घर पर पुताई करवाएंगे. फिर शादी करवाएंगे.' ये कैसा रंग हुआ कि मेरी ज़िंदगी की रंग ही उजड़ गया."

बबलू उस परिवार से आते थे जिनके भाई मोहम्मद हैदर भी पिछले काफ़ी सालों से दिल्ली में इलेक्ट्रिक रिक्शा चलाकर अपने घरवालों को पैसा भेजते हैं.

भाई के रास्ते पर चलकर ही बबलू भी मेहनत करके कमाने के लिए कुछ समय पहले ही दिल्ली आए थे.

बबलू और उनके भाइयों ने तिनका-तिनका जोड़कर अपने लिए एक घर खड़ा किया था.

बबलू अब अपनी मेहनत की कमाई से इस घर को पुतवाकर अपने बड़े भाई की शादी करवाना चाहते थे.

बबलू को अभी ज़्यादा पैसे नहीं मिलते क्योंकि काम नया नया शुरू किया था.

लेकिन कुछ साल बाद अगर वो यही काम करते रहते तो उनकी मासिक आय 15-20 हज़ार रुपए तक पहुंच सकती थी.

इस अग्निकांड में बबलू समेत उनके ही घर और गांव के पांच-छह लोगों की मौत हुई है.

मोहम्मद बबलू और मोहम्मद मुशर्रफ़
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मोहम्मद बबलू और मोहम्मद मुशर्रफ़

'भाई को बुलाया था काम सिखाने के लिए'

मोहम्मद अफ़साद की कहानी भी बबलू और उनके परिवार जैसी ही है.

मोहम्मद अफ़साद दिल्ली में बीते काफ़ी समय से काम कर रहे थे.

बिहार के सहरसा से आने वाले 28 साल के मोहम्मद अफ़साद इसी कारखाने में काम करते थे और अपने 20 साल की उम्र वाले भाई को भी गांव से काम सिखाने के लिए बुलाया था.

अफ़साद अपने घर में अकेले कमाने वाले शख़्स थे. उनके घर में उनकी पत्नी, दो बच्चे और वृद्ध माँ-बाप हैं.

अफ़साद की मौत की ख़बर सुनकर दौड़े चले आए उनके भाई मोहम्मद सद्दाम बताते हैं, "ये हमारे चाचा का लड़का था. मैं भी कारखाने में काम करता हूं. और ये भी करता था. गांव-घर छोड़कर दिल्ली आया था कि कुछ कमा सके. मेरा भाई बहुत मेहनती था. अब कौन है इसके परिवार में. सिर्फ़ एक लड़का बचा है और वो भी अभी सिर्फ़ 20 साल का है. बताइए अब कैसे क्या होगा."

मोहम्मद अफ़साद सोमवार को अपने गाँव जाने वाले थे. उनका टिकट हो चुका था.

रविवार को वे अपने भाई के साथ मिलकर कुछ खरीदारी भी करने वाले थे.

लेकिन अब सोमवार को बिहार जाने वाली ट्रेन में मोहम्मद अफ़साद के नाम की सीट ख़ाली जाएगी.

और ये ख़ालीपन आख़िरकार उनके घर और परिवार में हमेशा के लिए समा जाएगा.

अस्पताल के बाहर अपने परिजनों की तलाश में बिलखती दो महिलाएं
Getty Images
अस्पताल के बाहर अपने परिजनों की तलाश में बिलखती दो महिलाएं

'तीन बेटियां और दो बहनें'

बिहार के अलावा इस कारखाने में उत्तर प्रदेश के भी कुछ युवा काम करते थे.

मोहम्मद मुशर्रफ़ भी ऐसे ही लोगों में शामिल थे.

मुशर्रफ़ की मौत के बाद उनके परिवार में कमाने वाले कोई नहीं बचा है. मौत से पहले उन्होंने अपने दोस्त को फोन करके कहा था कि वो आग में फंस गए हैं और अपने दोस्त से वादा लिया था कि वो उनके परिवार का ख़्याल रखें.

लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के मुर्दाघर में उनकी शिनाख़्त करने आए उनके फूफ़ा बताते हैं, "मुशर्रफ़ अभी दो दिन पहले ही गाँव से आए थे. उनकी मौत ही उन्हें दिल्ली खींच लाई."

"मुशर्रफ़ ने कुछ समय पहले अपनी बहन की शादी कराने के लिए भूमि विकास बैंक से लोन लिया था. अब बैंक वाले परेशान कर रहे थे. इस वजह से वह घर गया था. गांव में उसने कुछ ज़मीन बेचकर अपना कर्जा भरा और फिर कमाने के लिए दिल्ली लौट आया."

ये उनमें से चंद लोगों की कहानियां हैं जिनके परिजन दिल्ली पहुंचकर शवों की शिनाख़्त कर पाए हैं.

क्योंकि अभी भी दर्जनों परिवार ऐसे हैं जिनके परिवारवाले अपने-अपने गाँव से किसी न किसी तरह दिल्ली पहुंच रहे हैं और उन्हें नहीं पता है कि उनके घरवाले ज़िंदा हैं या नहीं.

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English summary
Who were these workers from Bihar who died in the fire of Delhi?
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