पेजावर मठ के महंत श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी कौन थे? जिनके निधन पर पीएम मोदी ने शोक जताया है
नई दिल्ली- कर्नाटक के पेजावर मठ के महंत श्री विश्वेश तीर्थ स्वामीजी का रविवार सुबह उडुपी स्थित श्रीकृष्ण मठ में निधन हो गया। उन्होंने सुबह साढ़े 9 बजे आखिरी सांस ली। वे काफी लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से कर्नाटक में शोक की लहर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने भी उनके निधन पर दुख जताया है और उन्हें श्रद्धांजलि दी है। आइए जानते हैं कि श्री विश्वेश तीर्थ स्वामीजी की इतनी चर्चा क्यों हो रही है और समाज, राष्ट्र और कर्नाटक के लिए उनका क्या योगदान था?
पेजावर मठ के 33वें महंत थे श्री विश्वेश तीर्थ स्वामीजी
उडुपी के पेजावर मठ के गुरु परंपरा के 33वें गुरु थे श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी। इनका जन्म 27 अप्रैल, 1931 को पुट्टुर के रामाकुंज में एक शिवाली मध्व ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नाराणाचार्य और माता का नाम कमलम्म था। 1938 में 7 वर्ष की आयु में ही इन्होंने संन्यास धारण किया था। संन्यासी बनने से पहले इनका नाम वेंकटरामा था और वे भगवान वेंकटेश्वर के अनन्य भक्त थे। आपको बता दें कि पेजावर मठ उडुपी के 8 प्रमुख मठों में से एक है। श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी ने श्री भंडारकेरी मठ और पलिमारु मठ के गुरु श्री विद्यामान्या तीर्थ से दीक्षा ली थी। श्री विद्यामान्या तीर्थ श्री भंडारकेरी मठ के गुरु थे। श्री विश्वेश तीर्थ ने श्री विश्वप्रसन्ना तीर्थ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।
पेजावर मठ का इतिहास
उडुपी के पेजावर मठ में मुख्य तौर विट्ठल और साथ में श्री देवी और भू देवी की प्रतिमाओं की पूजा होती है। ये प्रतिमाएं मठ के संस्थापक श्री अधोक्षज तीर्थ को श्री माध्वाचार्य जी ने उपहार में दिया था। श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी ने बचपन से ही स्वयं को कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया था। 1984 में इन्होंने उडुपी में एक भव्य हॉल का निर्माण कराया, जिसे कृष्णा धाम का नाम दिया। जबतक स्वामी स्वस्थ रहे वे स्वयं सुबह-शाम भगवान कृष्ण की पूजा करते थे। उडुपी के श्रीकृष्ण मठ को 800 वर्ष पहले श्री माधवाचार्य जी ने स्थापित किया था। कहते हैं कि यहां पर जो कृष्ण की प्रतिमा है, वह द्वापर युग की है। शालिग्राम शिला से बनी यह प्रतिमा द्वारका में कृष्ण ने स्वयं रुक्मणी जी को भेंट की, वही प्रतिमा 800 वर्ष पहले द्वारका से उडुपी में स्थापित की गई।
श्री विश्वेश तीर्थ जी के सामाजिक कार्य
स्वामी जी ने कई सामाजिक संस्थाओं की नींव रखी थी। उनकी अगुवाई में कई शैक्षणिक और सामाजिक संस्थाओं की स्थापना की गई। स्वामी श्री विश्वेश तीर्थ के हाथों ही गरीब बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने वाली अखिल भारतीय मध्व महामंडल की स्थापना हुई थी। पूरे देश में उन्होंने कई ऐसे धर्मस्थलों और मठों का निर्माण किया जो तीर्थ यात्रियों की सेवा में लीन हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर गौ रक्षा जैसे मुद्दों को इन्होंने पूरजोर समर्थन किया, शायद यही वजह है कि देश में ये 'राष्ट्र स्वामीजी' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। 1964 की शुरुआत से वे वीएचपी से जुड़े रहे और कई वर्षों तक इसके उपाध्यक्ष भी रहे। जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया तो उन्होंने वहां भव्य मंदिर देखने की इच्छा भी प्रकट की थी। वे समाज में समरसता की वकालत करते थे और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों के सख्त विरोधी थे। 2017 में उडुपी में धर्म संसद आयोजित कराने के पीछे भी वह एक प्रबल ताकत थे।
उमा भारती के गुरु थे श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी
विश्वेश स्वामी जी मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती के गुरु रहे। उनकी बीमारी के बारे में सुनकर वे उमा करीब एक हफ्ते से से उडुपी में ही हैं। उमा ने 1992 में स्वामी जी से संन्यास की दीक्षा ली थी। मंगुलुरु के श्रीनिवास यूनिवर्सिटी ने समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए ने स्वामी जी को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी नवाजा था।
लंबे समय से बीमार थे स्वामी
स्वामी जी को सांस लेने में तकलीफ होने पर 20 दिसंबर को उडुपी के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद से उन्हें आईसीयू में रखकर उनका इलाज किया जा रहा था। शनिवार को उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी। इसके बाद उडुपी के कस्तूरबा अस्पताल में भर्ती विश्वेश तीर्थ स्वामी को उनकी इच्छा के अनुरूप श्री कृष्णा मठ में शिफ्ट कर दिया गया था, जहां चिकित्सकों की टीम उनका इलाज कर रही थी।
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