वो पहले भारतीय कौन थे, जिन्होंने चर्चिल की भतीजी से बनवाई महात्मा गांधी की प्रतिमा
नई दिल्ली- गांधी जयंती के मौके पर आज देशभर में बापू की प्रतिमाओं पर फूल-माला चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। आज हम आपको बता रहे हैं उस पहले भारतीय शख्सियत के बारे में जिन्हों एक मशहूर मूर्तिकार से पहली बार बापू की प्रतिमा (अर्ध-मूर्ति) बनवाई थी। राष्ट्रपिता की वह मूर्ति उनके जीवित रहते ही बनाई गई थी और संभत: आज भी राष्ट्रपति भवन में मौजूद है। वह ऐसी प्रतिमा है जिसका जिक्र खुद महात्मा गांधी भी कर चुके हैं। उस प्रतिमा की एक बड़ी खासियत ये भी है कि उसे किसी भारतीय नहीं नहीं बनाया था, बल्कि ब्रिटेन की एक जानी-मानी मूर्तिकार ने तैयार किया था।
पहली बार दरभंगा महाराज ने बनवाई बापू की प्रतिमा
दरभंगा के अंतिम महाराजा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह (1907-62) वो पहले भारतीय थे, जिन्होंने उस समय की जानी-मानी मूर्तिकार क्लेयर शेरिडेन से महात्मा गांधी की एक अर्ध-प्रतिमा बनवाई थी। शेरिडेन पूर्व ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल की भतीजी थीं। एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक बाद में वह प्रतिमा तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस यानि आज के राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शित करने के लिए उस समय के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो को सौंप दी गई। 1940 में लॉर्ड लिनलिथगो को लिखी एक चिट्ठी में खुद महात्मा गांधी ने यह बात बताई थी। बाद में 1947 में बापू जब बिहार के दौरे पर गए तो एक इंटरव्यू में उन्होंने महाराजा कामेश्वर सिंह की खूब सराहना करते हुए उन्हें एक बेहद ही अच्छा इंसान और उन्हें अपने पुत्र के समान बताया था।
आजादी के आंदोलन में निभाई अहम भूमिका
दरअसल, महात्मा गांधी की अगुवाई वाले स्वतंत्रता आंदोलन और बाद के वर्षों में भी देश के लिए दरभंगा के महाराजा के योगदानों की काफी सराहना होती है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने एयरफोर्स को तीन फाइटर विमान दान में दिए थे। एक और मौके पर उन्होंने त्योहार मनाने के लिए सेना के हर एक जवान को 5,000 रुपये बतौर उपहार में दिए थे। आर्मी के मेडिकल कोर को उस जमाने में उन्होंने 50 एंबुलेंस दान में दिए थे। दरंभगा महाराज के जीवन से जुड़ी कई अहम जानकारियां 'करेज एंड बेनेवॉलेंस: महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह' नाम की किताब में मिलती है। इस किताब में महाराजा के संबंध में कई अहम बातें मौजूद हैं।
भारत के सबसे बड़े जमींदार थे
भारत की आजादी में उनका योगदान इतना अधिक माना जाता है कि उस जमाने के तमाम बड़े नेता और स्वतंत्रता सेनानियों को उन्होंने किसी न किसी रूप में सहायता देने की कोशिश की थी। देश के लिए संघर्ष करने वालों में जिन हस्तियों को दरभंगा महाराज की मदद मिली उनमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी जैसे नाम भी शामिल हैं। उन्हें महाराजा की उपाधि जरूर मिली थी, लेकिन वह किसी रियासत के राजा नहीं थे। बल्कि, वह भारत के सबसे बड़े जमींदार थे। वह अपने जमाने के एक बड़े उद्योगपति भी थे और जिस बिहार में आज भी उद्योग नहीं हैं, वह अंग्रेजों के जमाने में 14 औद्योगिक यूनिट के मालिक थे। दरभंगा राज में आज से 7-8 दशक पहले भी चीनी, जूट, कॉटन, लौह एवं इस्पात, एविएशन और प्रिंट मीडिया जैसे उद्योग मौजूद थे और हजारों लोगों के रोजगार का जरिया थे।
देश के कई यूनिवर्सिटी को दिए थे दान
दरभंगा महाराज की जमींदारी 2,500 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा दायरे में फैली थी, जिसमें बिहार और बंगाल के 18 सर्किल और 4,495 गांव आते थे। उन्होंने अपनी जमींदारी के संचालन के लिए 7,500 से ज्यादा अधिकारियों की तैनाती कर रखी थी। सिर्फ राजनीति, उद्योग और समाजसेवा में ही उनका योगदान नहीं था। उन्होंने शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देने के लिए भी दिल खोलकर दान दिए थे। कलकत्ता यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, पटना यूनिवर्सिटी और बिहार यूनिवर्सिटी सबको उन्होंने दाम में मोटी रकम दी थी। जबकि पार्टी के तौर पर कांग्रेस को तो उन्होंने हमेशा ही दान दिया था और गरीब तबकों और सामाजिक संगठनों को भी बढ़-चढ़ कर सहयोग किया। (आखिर की दो तस्वीरें सौजन्य विकिपीडिया)
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