क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

जिन्हें कभी दर्द का अहसास नहीं होता

दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें शरीर में किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं होता.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
दर्द
Getty Images
दर्द

ग़ालिब ने कहा है कि दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना...

मगर क्या हो, जब दर्द महसूस ही न हो. आप कहेंगे इससे अच्छा क्या होगा कि दर्द महसूस ही न हो. आख़िर बड़े-बुजुर्ग हमें यही तो आशीर्वाद देते हैं कि ज़िंदगी में कभी दर्द न मिले.

मगर, हुजूर दर्द भी ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हैं. दर्द महसूस होना और दर्द को सहना हमारे लिए बहुत अहम हैं. वरना हम ख़ुद को तमाम तरह के जोखिम में डाल लेते हैं.

हम यहां हालात से मिलने वाले दर्द की बात नहीं कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं शरीर को मिलने वाले दर्द की. जब आपको चोट लगे या शरीर में कोई तकलीफ़ हो, घाव हो, तो आप उसका एहसास कर पाएं. अपने शरीर को ऐसी तकलीफ़ों से बचाएं. दर्द बढ़ जाए तो उसका इलाज करें.

दर्द का एहसास न होना एक बीमारी

अब आप कहेंगे ये कौन सी नई बात है? दर्द होगा तो एहसास तो होगा ही. आपका सवाल जायज़ है. लेकिन, दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं होता. फिर चाहे उनका हाथ या पैर कट जाए, या खौलते पानी या तेल में वो अपना हाथ डाल दें. वो अंगारों पर चलें. यहां तक कि अगर बेहोश किए बिना उनका ऑपरेशन कर दिया जाए तो भी वो कोई दर्द नहीं महसूस करेंगे.

अब आप सोच रहे होंगे ये तो अच्छी बात है कि दर्द का एहसास होता ही नहीं. लेकिन ये अच्छी बात नहीं है. जिन लोगों को दर्द का एहसास नहीं होता, उनके लिए ये बात किसी श्राप से कम नहीं.

दर्द का एहसास न होना बुरी बात क्यों है, ये बात बाद में. पहले आपको बता दें कि दर्द का एहसास न होना एक बीमारी है. डॉक्टर इसे अंग्रेज़ी में congenital insensitivity to pain, या CIP कहते हैं. दुनिया में बेहद गिने-चुने लोगों को ये विकार होता है. आम तौर पर ये दिक़्क़्त जन्मजात होती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ लोगों में दर्द का एहसास न होने की ये कमी बचपन में होती है. लेकिन बड़े होने तक ख़त्म हो जाती है. जबकि कुछ लोगों में उम्र के साथ साथ ये विकार भी बढ़ता चला जाता है.

शरीर को होने वाले नुक़सान से ख़ुद को बचाने के लिए दर्द की शिद्दत का एहसास होना ज़रूरी है. दर्द हमारे शरीर में एक अलार्म बेल की तरह काम करता है. जैसे ही शरीर में कहीं दर्द होता है, हमें अंदाज़ा हो जाता है कोई गड़बड़ हो सकती है. दिमाग़ हमें एलर्ट करता है और हम ख़ुद को ख़तरों से या जो चीज़ दर्द देती है, उससे बचाते हैं.

ब्रिटेन के केम्ब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिसीन के डॉक्टर ज्योफ़ वुड ने सीआईपी से पीड़ित बहुत से मरीज़ों के साथ काम किया है. वो बताते हैं कि जिन लोगों को दर्द महसूस नहीं होता, उनकी उम्र बहुत कम होती है. वो कई बार ख़ुद को जानलेवा ख़तरों में डालकर मौत को गले लगा लेते हैं. डॉक्टर ज्योफ़ वुड ने ऐसे बहुत से मरीज़ देखे हैं जो कम उम्र में मर गए. कुछ ने ऐसे जोखिम उठाए जो जानलेवा साबित हुए. क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाज़ा ही नहीं हुआ कि वो जो कुछ कर रहे हैं उसका अंजाम क्या हो सकता है. क्योंकि उन्होंने कभी दर्द सहा ही नहीं इसिलिए वो कभी किसी चोट की शिद्दत को भी नहीं समझ पाए.

सीआईपी का सबसे पहला केस 1932 में सामने आया था और इसे पहचाना था न्यूयॉर्क के एक डॉक्टर जॉर्ज डियरबोर्न ने. उसके बाद क़रीब 70 सालों तक इस विकार के बारे में कई तरह के मेडिकल जरनल में लिखा जाता रहा. लेकिन अब सोशल मीडिया का ज़माना है. इंटरनेट के ज़रिए पूरी दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी है. अब ऐसे मरीज़ों के ग्रुप सामने आ रहे हैं जो सीआईपी से ग्रसित हैं. वैज्ञानिक भी अब ये बात मानने लगे हैं कि इस दुर्लभ बीमारी के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हासिल करके बुहत से लोगों कि ज़िंदगी को बचाया जा सकता है. और बहुत से पुराने दर्द के मरीज़ों को भी उनके मर्ज़ में मदद मिलेगी.

दर्द से जुड़ा है दवा का कारोबार

दर्द सिर्फ़ इंसान की हिफाज़त के लिए अहम नहीं. ये बहुत बड़ा कारोबार भी है.

एक अंदाज़े के मुताबिक़ पूरी दुनिया में रोज़ाना क़रीब डेढ़ करोड़ ख़ुराक दवा दर्द मिटाने के लिए खाई जाती है. हर दस व्यस्कों में से एक ऐसा मरीज़ है जो किसी ना किसी बहुत पुराने दर्द से जूझ रहा है.

दर्द का एहसास हमारी चमड़ी के ठीक नीचे बिछे तंत्रिकाओं के जाल की वजह से होता है. इन्हें पेन न्यूरॉन कहते हैं. ये न्यूरॉन एक प्रोटीन की वजह से दर्द की शिद्दत को महसूस करते हैं और इसकी ख़बर हमारे दिमाग़ को करते हैं. फिर दिमाग़ हमारे शरीर को एहतियात के लिए एलर्ट करता है.

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

दर्द से राहत देने वाली जितनी दवाएं बनाई जाती हैं, उनमें थोड़ी तादाद में नशे वाले केमिकल भी होते हैं. जैसे मॉरफ़ीन, हेरोइन, ट्रेमाडोल आदि. लेकिन इनका ज़्यादा सेवन जानलेवा साबित हो सकता है. अमरीका में साल 2000 से लेकर अब तक हर रोज़ करीब 91 लोगों की मौत ज़्यादा पेन-किलर खाने की वजह से हो रही है.

दवाओं से भी हो सकती है बीमारी

एस्पिरिन एक विकल्प हो सकता है. लेकिन ये भी कोई कारगर उपाय नहीं है. अगर इसे भी लंबे समय तक खाया जाए तो पेट की बीमारियां हो सकती है. दर्द से राहत देने वाली दवाएं बनाने के क्षेत्र में अभी तक जितनी भी रिसर्च की गई हैं, उनके नतीजे बहुत तसल्लीबख़्श नहीं रहे हैं.

साल 2000 में कनाडा की कंपनी ज़ीनोन फ़ार्मास्यूटिकल कंपनी ने सीआईपी के मरीज़ों के जीन पर रिसर्च का काम शुरू किया. उन्होंने दुनिया भर से ऐसे मरीज़ों का डीएनए जमा किया गया. रिसर्च में पता चला कि SCNP9A नाम का जीन Nav1.7 हमारी तंत्रिकाओं के सोडियम चैनल को रेग्यूलेट करता है जिसकी वजह से दर्द महसूस होता है.

चूंकि सीआईपी के मरीज़ दर्द को छोड़ कर और सभी तरह की चीज़ों को महसूस करते हैं. लिहाज़ा ऐसी दवाएं बनाई गईं जिनके ज़रिए वो दर्द को महसूस कर सकें. यानी दवा के जरिए तंत्रिकाओं के सोडियम चैनल को एक्टिवेट किया गया.

इस हवाले से ये भी सोचा गया कि अगर इस चैनल को दवा से एक्टिवेट किया जा सकता है. तो इसे डिएक्टिवेट करके दर्द की शिद्दत को कम भी किया जा सकता है. हालांकि अभी इस बारे में रिसर्च अभी भी जारी हैं.

क्या खराब होती है सस्ती जेनरिक दवाओं की क्वालिटी ?

दरअसल Nav1.7 सोडियम चैनल शरीर में मौजूद नौ सोडियम चैनल में से ही एक होता है और ये सभी चैनल दिमाग, दिल और तंत्रिक तंत्र में सक्रिय होते हैं. लिहाज़ा ऐसी दवा बनाने की कोशिशें जारी हैं जो सिर्फ मुख्य जगह पर ही अपना असर करे. वरना अगर कोई दवा गलत चैनल को एक्टिवेट या डिएक्टिवेट कर दे तो उसके नतीजों का हमें फिलहाल कोई अंदाज़ा भी नही है.

जीन भी है कारण

सीआईपी के मरीज़ों पर रिसर्च के दौरान एक और बात निकलकर आई कि जिन मरीज़ों में पुराने दर्द की शिकायत थी उसकी वजह RDM12 नाम का जीन है. अगर ये जीन पूरी तरह से काम नहीं करता तो पुराने दर्द की शिकायत बनी रहती है.

बहरहाल इस दिशा में रिसर्च लगातार जारी हैं, ताकि ऐसी दवा ईजाद की जा सके, जो दर्द की शिद्दत को कम करने का रामबाण बन सके. फ़िलहाल हम उस कामयाबी से दूर हैं.

लेकिन इस रिसर्च को आगे बढ़ाने में उन लोगों का रोल अहम है, जो दर्द नहीं महसूस करते. यानी सीआईपी के मरीज़ हैं. उनको दर्द न होने की बीमारी, दुनिया भर के दर्द के मरीज़ों को राहत देने की बुनियाद बन सकती है.

(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी फ्यूचर पर उपलब्ध है.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Who never feel the pain
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X