जयललिता की सीट RK Nagar जीतने वाले दिनाकरन, पढ़ें TTV Dinakaran का पूरा प्रोफाइल
चेन्नई। तमिलनाडु की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद काफी नए सियासी समीकरण खुलकर सामने आए हैं, इन समीकरणों में टीटीवी दिनाकरन सबसे प्रभावशाली नेता के तौर पर उभरे हैं। वह आरके नगर उपचुनाव जीत गए हैं। आरके नगर की सीट पर जिस तरह से एआईएडीएमके के खिलाफ दिनाकरन व डीएमके ने अपनी पूरी ताकत झोंकी है वह इस सीट की महत्ता को जाहिर करती है। आरके नगर की सीट इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि यहां से पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता दो बार चुनाव जीत चुकी हैं, ऐसे में यह सीट तमिलनाडु की राजनीति में काफी भावनात्मक जगह रखती है और इस बात को सभी नेता बखूबी समझते हैं।
शशिकला के भतीजे
टीटीवी दिनाकरन ने इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, यह सीट जयललिता के निधन के बाद खाली हुई थी। इस सीट पर एआईएडीएमके के ई मधुसूदनन, मुख्य विपक्षी दल डीएमके के एन मरूथु गणेश और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खुद दिनाकरन मैदान में हैं। दिनाकरन जयललिता की सहयोगी शशिकला के भतीजे हैं, जिन्हें जयललिता ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
सांसद रह चुके हैं
तमिलनाडु़ की राजनीति में दिनाकरन उस वक्त सुर्खियों में आए जब जयललिता के निधन के बाद पार्टी की कमान संभाल रही वीके शशिकला को कैद की सजा सुनाई गई। शशिकला ने बेंगलुरू की जेल से ही रिमोट के जरिए सरकार चलाना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने दिनाकरन को चुना था। दिनाकरन 1999 में पेरियकुलम लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं और वह 2004 व 2010 में राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं।
जयललिता के निधन के बाद हुए सक्रिय
वर्ष 2011 में जयललिता ने दिनाकरन व शशिकला के परिवार के अन्य सहयोगियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, इन लोगों पर लग रहे अलग अलग आरोपों के चलते जयललिता ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था। लेकिन जयललिता के निधन के बाद एक बार फिर से दिनाकरन सक्रिय हुए और उन्होंने पार्टी के भीतर अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश की। जयललिता के निधन के बाद दिनाकरन को पार्टी का डेप्युटी जनरल सेक्रेटरी बना दिया गया।
पहले रद्द हो चुका है चुनाव
लेकिन पार्टी के भीतर उप महासचिव के पद पर दिनाकरन लंबे समय तक नहीं रह सके, पार्टी के भीतर दो गुट बंटने के बाद एक खेमा ओ पन्नीसेल्वम के साथ हो गया, जबकि दूसरा गुट ओ पलानीस्वामी के साथ चला गया। दिनाकरन पहले पलानीस्वामी के गुट में थे और वह आरके नगर सीट से पार्टी के उम्मीदवार थे। लेकिन इस वर्ष अप्रैल माह में उपचुनाव के दौरान उनपर आरोप लगा कि उन्होंने मतदाताओं को पैसे देकर वोट अपने पक्ष में डलवाने की कोशिश की, जिसके बाद चुनाव आयोग ने इस चुनाव को रद्द कर दिया था।
चुनाव चिन्ह को लेकर हुआ था विवाद
चुनाव में धांधली के बाद आरके नगर के चुनाव को विलंबित कर दिया गया और इसे दोबारा कराने का ऐलान किया गया। जिसके बाद पार्टी के भीतर दोनों गुटों में तकरार खत्म हो चुकी थी और दोनों ही गुट एकसाथ आ गए थे, जिसके चलते दिनाकरन की पार्टी को तोड़ने की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा जब चुनाव आयोग ने उन्हे पार्टी का चुनाव चिन्ह दो पत्ती देने से इनकार कर दिया और उन्हें कुकर चुनाव चिन्ह दिया।
कई मामले हैं दर्ज
दिनाकर पर चुनाव आयोग के फैसले के बाद दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की। चुनाव में धांधली के अलावा दिनाकर पर आरोप है कि उन्होंने अवैध डीलरों से पैसे का लेन-देन किया है, जिसके चलते उनके खिलाफ फेरा का केस भी चल रहा है। बहरहाल जिस तरह से आरके नगर सीट पर एक बार फिर से दिनाकरन ने जीत हासिल की है वह प्रदेश की सियासत में फिर से नई हलचल पैदा करेगा।