कौन हैं रोमिला थापर? और जेएनयू क्यूं मांग रहा हैं उनसे उनका रिज्यूमे?
बंगलुरू। मशहूर इतिहासविद रोमिला थापर को भारत के प्राचीन इतिहास से रूबरु कराने का क्रेडिट कोई उनसे नहीं छीन सकता है, लेकिन यह भी एक शाश्वत सत्य है कि पद की योग्यताएं वक्त के अनुसार बदलती रहती हैं, जो एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा हैं, क्योंकि जरूरी नहीं है कि कुर्सी पर आसीन विभूति से बेहतर कल कोई जन्म ही नहीं लेगा? वर्ष 1991 में जेएनयू से रिटायर हो चुकी इतिहासकार रोमिला थापर को उनकी अकादमिक क्षमता के आधार पर जेएनयू प्रशासन ने प्रोफेसर एमेरिटस की पदवी प्रदान की गई थी।
उल्लेखनीय है किसी भी विश्वविद्यालय में दी जाने वाली प्रोफेसर एमेरिट्स की पदवी एक सम्मानजनक पदवी होती है। जेएनयू प्रशासन ने 28 वर्ष तक बतौर प्रोफेसर एमेरिट्स जेएनयू को अपनी अकादमिक सेवाएं देती आ रही हैं 75 वर्षीय रोमिला थापर को ही नहीं, बल्कि 21 और प्रोफेसर्स से भी उनकी सीवी मांगी है, ताकि उनके स्वास्थ्य और शारीरिक क्षमताओं की समीक्षा की जा सके और जरूरत अनुसार रिटायर हो रहे दूसरे संभावित प्रोफसरों को भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिट्स की सम्मानजक पदवी से नवाजा जा सके।
आखिर महान रोमिला थापर को बुरा क्यों लगा?
जेएनयू प्रशासन ने प्रोफेसर एमेरिट्स की पदवी वाले 21 अन्य प्रोफसरों से उनकी अपडेटेड सीवी तलब की है जबकि रोमिला थापर 22वीं प्रोफेसर एमेरिट्स हैं। 21 प्रोफेसर एमेरिट्स में से 17 प्रोफेसर्स सोशल साइंस और ह्यूमैनिटीज संकाय से हैं जबकि 4 विज्ञान संकाय से आते हैं। विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव कांउंसिल एक सतत प्रक्रिया के तहत यह काम करता रहता है ताकि नियमानुसार प्रोफेसर एमेरिट्स के पद के लिए दूसरे विभागों से रिटायर हो चुके प्रोफेसर्स के अनुभव और शिक्षण से विश्वविद्यालय लाभान्वित हो सके।
नियमानुसार 75 वर्ष की उम्र के बाद निवर्तमान प्रोफेसर एमेरिट्स के पदों की समीक्षा की जाती है और जब जेएनयू एग्जीक्यूटिव कांउसिल ने नियमों पर अमल करते हुए रोमिला थापर से उनकी सीवी मांग की, तो रोमिला थापर के साथ-साथ एक पूरा तबका बिफर गया। वो भी तब जब सीवी तलब किए जाने वालों की लाइन 21 और प्रोफेसर एमेरिट्स खड़े हैं। रोमिला थापर को बुरा क्यों लगा. यह तो रोमिला थापर ही बता सकती हैं, लेकिन 75 वर्ष की उम्र तक पहुंच चुकी रोमिला थापर को लगता है कि वो अभी छात्रों को कुछ और दिन पढ़ा सकती हैं तो उन्हें समीक्षा के लिए अपनी सीवी तो भेज ही देनी चाहिए।
क्या कहता है जेएनयू प्रोफेसर्स एमेरिट्स का नियम
जेएनयू में प्रोफेसर एमेरिट्स पद के लिए नियम के मुताबिक 75 की उम्र के बाद ऐसे प्रोफेसरों के पदों की समीक्षा होनी चाहिए। जेएनयू एग्जीक्यूटिव कांउसिल समीक्षा के दौरान यह देखती है कि प्रोफेसर एमेरिट्स शारीरिक रूप से स्वास्थ्य हों ताकि वो विश्वविद्यालय के क्रियाकलापों में अपना बेहतर योगदान दे सकें, लेकिन एक खांचे में कैद रोमिला थापर को यह बात बुरी लग गईं और स्वयंभू समीक्षा को सर्वोपरि मानते हुए अपना सीवी जेएनयू की एग्जीक्यूटिव कांउसिल को देने से इनका कर दिया है। याद कीजिए वामपंथियों के वर्चस्व वाली जेनयू की एक एकेडमिक काउंसिल ने योग पर आधारित एक पाठ्यक्रम को सिर्फ इसलिए नकार दिया था, क्योंकि उसे डर था कि ऐसा करने से विश्वविद्यालय के भगवाकरण हो जाएगा।
रोमिला थापर के इतिहास लेखन पर उठते रहे हैं सवाल
इतिहासकार रोमिला थापर का नाम इतिहासकारों में शामिल है, जिन पर भारतीय इतिहास को तोड़-मरोड़ कर लेखन का आरोप लगता रहा है। ऐसी ही एक नजीर की चर्चा होनी यहां जरूरी है। रोमिला थापर का इतिहास मोहम्मद गजनवी को महान आक्रमणकारी बताते नहीं थकता है, वो मोहम्मद गजनवी जिसने भारत को लूटने, भारतीय स्त्रियों के बलात्कार करने के लिए एक नहीं कुल 17 बार आक्रमण किया। रोमिला थापर की लेखनी मोहम्मद गजनवी को महान और कभी हार न मानने वाला महान योद्धा साबित करने में लगा हुआ है, लेकिन मोहम्मद गजनवी को 17 बार हराने वाले महान राणा प्रताप की चर्चा करते समय उसकी लेखनी कुंद पड़ जाती है। भगत सिंह जैसे बलिदानियों और आजादी के क्रांतिवीरों को बागी और आतंकी करार देने वाले रोमिला थापर की इज्जत महज सीवी से दांव पर कैसे लग सकती है।
सीवी मांगे जाने की वजह आंशिक तौर पर व्यक्तिगत है
इतिहासकार रोमिला थापर का आरोप है कि प्रोफेसर एमिरेटस का दर्जे की सिफ़ारिश संबंधित केंद्र करता है और इसके लिए सीवी की ज़रूरत नहीं होती और कभी भी इसकी समीक्षा नहीं की जाती है। मौजूदा प्रशासन आरोप लगाते हुए रोमिला थापर कहती हैं कि जेएनयू प्रशासन उनसे संबंध तोड़ना चाहता है, क्योंकि वो जेएनयू को तोड़ने के उनके प्रयासों का विरोध करती हैं। उन्होंने आगे कहा कि ऐसा करके एक खास विचारधारा की आवाज को शांत करने का प्रयास किया जा रहा है। जेएनयू शिक्षक एसोसिएशन ने भी रोमिला थापर से सीवी मांगे जाने को राजनीति से प्रेरित बताया है और इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन से औपचारिक तौर पर माफ़ी मांगने की मांग भी की है।
विवाद पर शिक्षा सचिव आर. सुब्रमण्यम ने दी सफाई
भारत के शिक्षा सचिव आर सुब्रमण्यम ने एक ट्वीट के जरिए जारी विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि जेएनयू में प्रोफ़ेसर इमेरिटस के दर्जे को लेकर उठे विवाद पर उन्होंने वाइस चांसलर से चर्चा की है। उन्होंने साफ किया कि उक्त प्रक्रिया के तहत किसी भी प्रोफ़ेसर इमेरिटस को हटाने की कोई योजना नहीं है। यह कदम सिर्फ़ अध्याधेश के आदेशों का पालन करने के लिए किया जा रहा है। बकौल आर. सुब्रमण्यम, जेएनयू की कार्यकारी समिति ने 23 अगस्त 2018 को आयोजित एक बैठक में प्रोफ़ेसर एमेरिट्स के दर्जे के लिए मानकों में बदलाव किया था और प्रोफ़ेसर रोमिला थापर समेत कुल 22 लोगों को इसी का हवाला देकर रजिस्ट्रार ने पत्र भेजा है।
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