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यूपी में चाचा-भतीजे के बीच सुलह में अब कौन बन रहा है रोड़ा ? जानिए

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नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का परिवार सुलह की राह पर तो कब का चल पड़ा है, लेकिन अभी भी कुछ बाधाएं हैं जो चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव को राजनीतिक रूप से एक होने रोड़े अटका रही हैं। दोनों के बीच मध्यस्थता की भूमिका खुद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने निभानी शुरू की थी, जब वे बीमार होकर लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। वैसे दोनों के बीच की आपसी दूरियां इस साल होली से ही मिटनी शुरू हो गई थीं, जब मुलायम परिवार के सारे लोग अपने पैतृक गांव सैफई में इकट्ठा हुए थे। उसके बाद दोनों ओर से इस तरह के कई पहल हुए हैं, जिससे विवादों को खत्म करने में काफी हद तक मदद मिली है। लेकिन, दोनों फिर से एक नई राजनीतिक धारा के सूत्रधार बनते उससे पहले उनके सामने एक नई चुनौती आ गई है और अब वे फिलहाल उस आफत के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।

राजनीतिक संवाद के लिए भतीजे से बात करेंगे चाचा

राजनीतिक संवाद के लिए भतीजे से बात करेंगे चाचा

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के मुखिया शिवपाल सिंह यादव ने अपने भतीजे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ दोनों दलों के बीच राजनीतिक संवाद की अटकलों पर आखिरकार विराम लगा दिया है। उन्होंने कहा है कि वो इस संबंध में अखिलेश से बात करेंगे। भतीजे के लिए चाचा के रुख में नरमी तब आई है जब समाजवादी पार्टी ने जसवंतनगर विधानसभा सीट से उनकी विधायकी रद्द करने वाली यूपी के स्पीकर के पास दी हुई याचिका वापस ले ली है। शिवपाल ने 2018 में पीएसपीएल बनाने के लिए समाजवादी पार्टी छोड़ दी थी, इसी आधार पर सपा ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की याचिका दी थी। स्पीकर द्वार याचिका वापस किए जाने के बाद ही शिवपाल ने अखिलेश को खत लिखकर उन्हें धन्यवाद भी दिया था और भतीजे के नेतृत्व में यूपी में एक नए राजनीतिक विकल्प की शुरुआत होने की अपनी ओर से एक भावना भी व्यक्त की थी।

2022 के लिए फिर से एकजुट होने की मंशा

2022 के लिए फिर से एकजुट होने की मंशा

ईटी से की गई बातचीत में शिवपाल ने कहा है कि 'जब याचिका वापस ले ली गई थी तो उन्हें धन्यवाद करना मेरी जिम्मेदारी बनती थी।' इसके बाद उन्होंने भविष्य की राजनीति के मद्देनजर अपने मन में पल रहे मंसूबे को लेकर कहा कि, 'मैं काफी वक्त से कह रहा हूं की सभी समाजवादी ताकतों को 2022 की लड़ाई से पहले एकजुट होना होगा।' पार्टी सूत्रों के मुताबिक दोनों के बीच सुलह की संभावनाएं तब परवान चढ़ने लगीं जब लखनऊ में अपने बीमार भाई और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को देखने शिवपाल यादव अस्पताल पहुंचे थे। वहीं पर उनकी मुलाकात भतीजे अखिलेश और बहू डिंपल यादव से हुई थी। जानकारी के मुताबिक उसी दौरान मुलायम ने चाचा-भतीजे के बीच मध्यस्थता की पहल शुरू की। हालांकि, इसकी शुरुआत इस साल होने में ही हो गई थी।

कोरोना बन रहा है आगे की बातचीत में रोड़ा

कोरोना बन रहा है आगे की बातचीत में रोड़ा

मतलब साफ है कि जिस राजनीतिक मंसूबों को लेकर चाचा और भतीजा अलग हुए थे, उसमें दोनों ही मात खा चुके हैं। जाहिर है कि बदली हुई परिस्थितियों में साथ में मिलकर चलना दोनों की पारिवारिक और राजनीतिक मजबूरी भी है। तैयारियां 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर करनी है। इसलिए शायद शिवपाल चाहते हैं कि बाकी की औपचारिकताएं भी जल्द पूरी कर ली जाएं। लेकिन, इस समय में चाचा-भतीजे को साथ आने में सबसे बड़ा रोड़ा कोरोना बन गया है। खुद शिवपाल यादव का भी यही कहना है, 'महामारी से निपटना बहुत ही बड़ी चुनौती है। जब महामारी खत्म हो जाएगी तभी हम बातचीत को और आगे बढ़ा पाएंगे। हम एक ही परिवार हैं और हम बैठकें करते रहेंगे।' हालांकि, उन्होंने अभी तक ये पूरी तरह से स्पष्ट नहीं किया है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ अपने दल का विलय करना चाहते हैं या उनकी आपसी गठबंधन की योजना है।

जब अखिलेश ने मांगा चाचा से आशीर्वाद

जब अखिलेश ने मांगा चाचा से आशीर्वाद

दरअसल, लखनऊ के अस्पताल में मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश में जो सुलह करवाई थी, वह इस साल होली में उनके पैतृक गांव सैफई से ही कई रंगों में शराबोर होने लगी थी। होली के मौके ने दोनों के बीच गिले-शिकवे को दूर करने में काफी मदद की थी। सैफई में शिवपाल ने जैसे ही मुलायम का पैर छूकर आशीर्वाद लिया, अखिलेश ने भी आगे बढ़कर चाचा के पैर छूकर आशीर्वाद मांग लिया। इस दौरान वहां मौजूद कार्यकर्ताओं ने चाचा-भतीजा जिंदाबाद के नारे भी लगाने शुरू कर दिए। हालांकि, अखिलेश ने उन्हें यह कहकर शांत करा दिया कि ये कोई राजनीति का मंच नहीं है। मतलब, दोनों के बीच साथ आने का रास्ता तो साफ हो चुका है, लेकिन कई ऐसी बातें हैं जिसपर दोनों पहले अपना-अपना रुख स्पष्ट कर लेना चाहते हैं।

अगस्त, 2016 से ही दोनों के बीच आ गई थी खटास

अगस्त, 2016 से ही दोनों के बीच आ गई थी खटास

असल में शिवपाल और अखिलेश के बीच की खटास 2016 के अगस्त में ही सार्वजनिक हो गई थी। पार्टी और सत्ता पर अखिलेश का दबदबा बढ़ता जा रहा था और चाचा साइडलाइन होते जा रहे थे। जनवरी, 2017 में अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए और शिवपाल पूरी तर से अलग-थलग पड़ गए। इसके बाद शिवपाल यादव ने सपा से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई और 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग होकर चुनाव लड़ा। खुद शिवपाल फिरोजाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के सीटिंग एमपी अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए। हालांकि, यह सीट बीजेपी ने एसपी से छीन ली और मुलायम परिवार के दोनों सदस्यों को उनके गढ़ में ही पैदल कर दिया।

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English summary
Who is now creating a barrier in the reconciliation between uncle and nephew in UP? Learn
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