Karnataka Elections Results: जिन्हें कहा जा रहा था किंगमेकर वो खुद बनने जा रहे हैं किंग
बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है, लेकिन नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। बीजेपी कर्नाटक में सबसे पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन बहुमत के आंकड़े से कुछ सीटें कम है। दूसरी ओर तीसरे नंबर की जेडी-एस है, जिसे अब तक किंगमेकर कहा जा रहा था, वह किंग बनकर उभरी है। कांग्रेस ने बड़ा दांव चलते हुए तीसरे नंबर की पार्टी जनता दल- सेक्युलर को सीएम पद का ऑफर देकर खुले समर्थन का ऐलान कर दिया है। बीजेपी 107 सीटें जीत रही है और बहुमत के आंकड़े से 5 सीटें दूर है। दूसरी ओर कांग्रेस की 75 और जेडी-एस की 38 सीटों को मिला लिया जाए तो आंकड़ा बहुमत 112 से एक सीट ज्यादा हो जाता है। ऐसे में जेडी-एस न केवल बीजेपी बल्कि कांग्रेस का भी खेल बिगाड़कर सबसे छोटी पार्टी होने के बाद भी सीएम पद लेकर कर्नाटक में सरकार बनाती दिख रही है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब छोटी सी पार्टी जेडी-एस ने बड़े-बड़ों का खेल बिगाड़ दिया हो। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जेडी-एस पहले भी कई कमाल कर चुकी है।
राजनीति में जेडी-एस की टाइमिंग का नहीं है कोई सानी
किंगमेकर की भूमिका में माहिर हैं देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी ऐसा नहीं है कि देवगौड़ा के जीवन की एकमात्र उपलब्धि देश का पीएम बन जाना है। प्रधानमंत्री का पद जाने के 7 साल बाद 2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी, जिसके पास 79 सीटें थीं। दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी, जिसे 65 सीटें मिली थीं, लेकिन तीसरे नंबर की पार्टी जेडी-एस 20 या 30 नहीं बल्कि 58 सीटें जीतकर आई थी। उस वक्त जेडी-एस ने कांग्रेस को मजबूर कर दिया था, जिसकी वजह से एन धरम सिंह को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा, जबकि पार्टी एसएम कृष्णा को सीएम बनाना चाहती थी।
कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी को भी नाकों चने चबवा चुके हैं देवगौड़ा
जेडी-एस की कहानी सिर्फ कांग्रेस पर दबाव बनाने तक सीमित नहीं है। ये राजनीतिक किस्सा अभी और रोचक मोड़ लिए हुए है। कांग्रेस के साथ सरकार बनाते वक्त जेडी-एस ने तर्क दिया था कि वह सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखना चाहती है, लेकिन दो साल सरकार चलाने के बाद जेडी-एस ने पलटी मारी। नतीजा- देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के सीएम बन गए। जेडी-एस ने बीजेपी के साथ 'सीएम रोटेशन' का फार्मूला बनाया, जिसके तहत कुमारस्वामी 2007 तक कर्नाटक के सीएम रहे। इसके बाद बीजेपी के बीएस येदुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो जेडी-एस ने उन्हें रास्ता देने से साफ इनकार कर दिया था।
देवगौड़ा ने बेटे के लिए ले ली थी सिद्धारमैया की बलि
2004 का ही एक और किस्सा है। सिद्धारमैया जो कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के सीएम हैं, कभी जेडी-एस में देवगौड़ा की पार्टी के सदस्य हुआ करते थे। इतना ही नहीं, धरम सिंह की सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम के पद पर तैनात थे। उस वक्त कर्नाटक में जेडी-एस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार थी। लेकिन एक वर्ष बाद ही देवगौड़ा ने सिद्धारमैया को अनुशासनहीनता के आरोप लगाते हुए हटा दिया था। दरअसल, उन्हें डर था कि सिद्धारमैया कुमारस्वामी के लिए चुनौती बन सकते हैं। हालांकि, बाद में सिद्धारमैया ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली और सीएम बनने का उनका सपना पूरा हो गया।
कर्नाटक में कैसा रहा है उसका चुनावी रिकॉर्ड
2013 के पिछले विधानसभा चुनाव की बातें करें तो इसमें जेडी-एस को 40 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में पार्टी का वोट शेयर 20 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा रहा। 2008 के चुनाव में जेडीएस ने 28 सीटें जीती थीं। हालांकि, वोट शेयर में ज्यादा अंतर नहीं था, 18.96 प्रतिशत के साथ थोड़ी गिरावट जरूर थी। 2004 के चुनाव में जेडीएस ने 59 सीटें प्राप्त की थीं और उसका वोट शेयर भी 20 प्रतिशत के आसपास था। 1999 के चुनाव में पार्टी को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली थी और उसका वोट शेयर 10 प्रतिशत के आसपास रहा था।
कर्नाटक में आखिर क्या है जेडी-एस की ताकत
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं। जेडी-एस ने यह चुनाव मायावती के साथ मिलकर लड़ा है। कर्नाटक में करीब 24 प्रतिशत दलित हैं। कर्नाटक में जेडी-एस की सबसे बड़ी ताकत है वोक्कालिगा समुदाय। इनकी आबादी करीब 12 प्रतिशत है। ओल्ड मैसूरु रीजन में इनका अच्छा प्रभाव है। 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में करीब 53 सीटें ऐसी हैं, जिन पर वोक्कालिगा समुदाय का पूरा प्रभाव है। पिछली बार कांग्रेस ने यहां 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि जेडी-एस 23 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बीजेपी को इस रीजन में सिर्फ 2 सीटें जीतने में सफलता मिली थी।