चाइनीज 'फीमेल जीसस' Yang Xiangbin कौन हैं, जिसने उड़ा दी है भारतीय चर्चों की नींद
नई दिल्ली- चीन में 1991 में एक नए संप्रदाय का उदय हुआ, जिसके संस्थापक को उनके अनुयायियों ने प्रभु ईसा मसीह या जीसस का नया अवतार बताना शुरू कर दिया। यांग जियांगबिन नाम की उसकी संस्थापक एक महिला थी, इसलिए वह चाइनीज 'फीमेल जीसस' के नाम से जानी जाने लगीं। लेकिन, कुछ वर्षों बाद ही चीन ने उस संप्रदाय पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। उसपर गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगाए गए, उसके अनुयायियों को जेल में डाल दिया गया। लेकिन, भारत की टेंशन ये है कि यह संप्रदाय इस समय उत्तर-पूर्व के राज्यों और उनमें से खासकर नगालैंड में बहुत तेजी से पैर पसार रहा है। इसीलिए वहां के चर्चों की शिकायत है कि यह नया संप्रदाय असल में ईसाई धर्म की मान्यताओं को फर्जी तरीके से फैला रही है, इसलिए उन्होंने इससे जुड़े लोगों से सावधान रहने की चेतावनी दी है।
एनबीसीसी ने चर्चों से कहा- सावधान रहें
नगालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ऑफ इंडिया (एनबीसीसी) की आजकल नींद उड़ी हुई है। उसने क्रिश्चियन बहुल प्रदेश नगालैंड के सभी बैप्टिस्ट एसोसिएशन को 'ईस्टर्न लाइटनिंग कल्ट ऑफ चाइना' से सावधान रहने को कहा है। गौरतलब है कि ईस्टर्न लाइटनिंग कल्ट ऑफ चाइना यह बताता है कि ईसा मसीह का धरती पर एक महिला के रूप में पुनर्वतार हुआ है, जिसका नाम यांग जियांगबिन है और उन्हें लाइटनिंग डेंग के नाम से भी प्रचार-प्रसार करते हैं। चीन में क्रिश्चियनों के इस नए संप्रदाय का 1991 में गठन किया गया और वहां इसपर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
चर्चों को लिखी गई है चिट्ठी
नगालैंड बैप्टिस्ट चर्च काउंसिल ऑफ इंडिया का मानना है कि इस संप्रदाय ने नगालैंड समेत उत्तर-पूर्व में पहले ही एंट्री मार चुका है और यह संप्रदाय क्रिश्चियनों के पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल के स्थान पर अपनी नई बाइबिल को स्थापित करना चाहता है। एनबीसीसी के महासचिव डॉक्टर जेल्हु क्यहो ने अपनी ओर से जारी नोट में चर्चों को आगाह किया है कि, 'बहुत ही चिंता की स्थिति में चीन के इस संप्रदाय के बारे में लिख रहा हूं, जिसके हमारी धरती पर अपनी पकड़ जमाने की सूचना है और जिसे चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड कहते हैं।'
ईसाई धर्म के सिद्धांतो के गलत प्रचार का आरोप
इतना ही नहीं उन्होंने बताया है कि चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड या ईस्टर्न लाइटनिंग कल्ट पूरी तरह से एक संगठित समूह है, जो बहुत ही तेजी से फेसबुक पेज तैयार किए जा रहा है और उसपर रंगीन चित्रकारी की जा रही है जो बाइबिल से जुड़ी और मोहक प्रतीत होती हैं। उन्होंने चेताया है कि यह संप्रदाय ईसाई धर्म के सिद्धांतों के बारे में गलत प्रचार कर रहा है और उन्होंने इस फर्जी धर्म के प्रति सभी को सभी तरह के सुरक्षात्मक उपाय करने और उसके प्रति सावधान रहने को कहा है। उधर एनबीसीसी के युवा सचिव विकुओ री ने टाइम्स ऑफ इंडिया को कहा है कि उन्हें पता है कि वे लोग नगालैंड और उत्तरपूर्व भारत में पहले ही दाखिल हो चुके हैं। लेकिन, हमें अभी तक यह पता लगाना है कि यहां पर वे कितने हैं। वे लोग फेसबुक और व्हास्टऐप पर बहुत ही ज्यादा ऐक्टिव हैं। वे लोगों खासकर युवाओं को फुसलाना चाहते हैं।
पहली बार इस साल मई में मिली इसकी जानकारी
विकुओ री ने यह भी कहा कि यह संप्रदाय चीन और चाइनीज लोगों का है और हम सिर्फ इतना जानते हैं कि नगालैंड और उत्तरपूर्व में कई लोग इसे मानते हैं। यहां तक कि कुछ नगा भी उसमें हैं और उत्तरपूर्व के बाकी राज्यों से भी लोग हैं। वे लोग उस संप्रदाय को मानते हैं और उनमें से कई लोग उसके बारे में जानने के बाद उससे बाहर भी आ जाते हैं। उन्होंने दावा किया कि एनबीसीसी को पहली बार इनके बारे में मई में पता लगा। अब वो अपने चर्चों और बाकी माध्यमों से इसके बारे में जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
चीन में पाबंदी के बावजूद फैला 'चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड'
जानकारी के मुताबिक चीन में चर्च ऑफ ऑलमाइटी गॉड को 1995 में प्रतिबंधित कर दिया गया था और उसे दहशतगर्द संगठन संगठनों से जोड़ने की कोशिश की गई थी। लेकिन, चीन की वामपंथी शासन के स्टाइल में दमन की कोशिशों के बावजूद यह संप्रदाय वहां चोरी-छिपे फलता-फूलता रहा और आज की तारीख में मोटे तौर पर वहां 30 से 40 लाख लोग इसके अनुयायी बन चुके हैं। यांग जियांगबिन नाम की जिस महिला को 'फीमेल जीसस' के रूप में प्रचारित किया गया, उनका जन्म 1973 में हुआ था। कहते हैं कि उन्होंने अपनी बातों से इतना प्रभावित करना शुरू किया कि बड़े-बड़े लोग उसके अनुआयी बनने लगे और उन्होंने ही उसे जीसस का अवतार बताना शुरू कर दिया। खास बात ये है कि महिला होने के बावजूद उसे आदमी जैसा संबोधित किया गया।
अमेरिका में रह रही हैं यांग जियांगबिन
वैसे
'फीमल
जीसस'
के
नाम
से
चर्चित
यांग
जियांगबिन
अभी
अमेरिका
में
शरण
लिए
हुए
हैं
और
न्यूयॉर्क
में
रहकर
अपने
धर्म
का
प्रचार
कर
रही
हैं।
उनके
बारे
में
यह
भी
कहा
जाता
है
कि
उनकी
बातों
को
नहीं
मानने
वालों
के
साथ
बहुत
बुरा
बर्ताव
और
यहां
तक
प्रताड़ित
भी
किया
जाता
है।
लेकिन,
जबसे
इस
पंथ
के
उत्तरपूर्व
और
खासकर
नगालैंड
में
सक्रिय
होने
की
बात
सामने
आई
है,
चर्चों
से
जुड़े
संगठन
सावधान
हो
गए
हैं।
(तस्वीरें
सांकेतिक)