आप और कांग्रेस के गठबंधन से दिल्ली में किसे होगा नुकसान?
नई दिल्ली। राजनीति में कुछ तय नहीं होता है यह सच है. राजनीति संभावनाओं का खेल है ही. अब कभी हाँ कभी न के बीच फिर से ये उम्मीद बंध रही है कि 2019 लोकसभा चुनाव (2019 lok sabha election) कांग्रेस पार्टी और आप मिल कर लड़ेंगे.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस गठबंधन के खिलाफ हैं तो वहीं कांग्रेस दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन इस गठबंधन के पक्ष में दिखते हैं. इन्होंने तो गठबंधन नहीं होने के हालात में दिल्ली से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने तक की भी बात कह डाली है. पिछले कई दिनों से आप और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच मुलाकात का दौर चल रहा है, हालांकि इस मध्यस्थता से शीला दीक्षित दूर रही हैं. जानकारी के अनुसार आप और कांग्रेस के बीच 4-3 के फार्मूले पर सहमति बन सकती है.
अब फैसला क्या होता है इस पर सबकी नजर है. विपक्षी पार्टियों ने अभी से इसपर तंज कसना शुरू कर भी दिया है. इसे बेमेल गठबंधन बता रही है.
कांग्रेस पार्टी इस गठबंधन के बहाने दिल्ली में फिर से अपनी राजनीतिक विरासत हासिल करना चाहेगी जो आप पार्टी के उभार से छिन गयी है. दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है. जबकि आप इस गठबंधन के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है. अरविंद केजरीवाल ने कई बार अपने चुनावी मंच से इसे कहा भी है कि वो गठबंधन करना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस सहमत नहीं हो रही है. इस बात से आप समर्थक और कुछ नेता भी आप के इस कदम को लेकर सशंकित हैं. कुमार विश्वास (Kumar Vishwash) ने तो इशारों इशारों में इस पर कई व्यंग्य भी किये हैं.
पिछली बार के लोक सभा चुनाव में यहाँ की सभी सात सीटें भाजपा के खाते में गयी थी जबकि विधानसभा में आप का प्रचंड बहुमत है. इस बात से अरविंद केजरीवाल परिचित हैं और समझते हैं कि लोकसभा चुनाव में उनकी राह आसान नही है.
राजधानी में भाजपा और कांग्रेस के अलावा कोई और ऐसी पार्टी नहीं है जिसका वोट हर लोकसभा क्षेत्र में हो. इसलिए अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए थे. हालांकि उनका कहना है कि वो हर हाल में साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकना चाहते हैं इसलिए आप पार्टी दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन कर रही है.
वहीं कांग्रेस दुविधा में है कि क्या किया जाय. आप से गठबंधन करके भाजपा को यहां से कड़ी चुनौती दें और फिर से दिल्ली में अपनी जमीन तैयार करे या फिर एकला चलो की राह पर अपनी खोई जमीन हासिल करे.
अब इस कदम से कांग्रेस और आप पार्टी को कितना फायदा और नुकसान होगा ये देखने लायक होगा लेकिन यह तय है कि इससे भाजपा की राह पिछले लोकसभा चुनाव की तरह आसान रहने वाली नहीं है.