कौन हैं वो सात महिलाएं जिन्होंने पीएम मोदी का ट्विटर एकाउंट किया हैंडल
नई दिल्ली- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जिन सात महिलाओं को अपना ट्विटर हैंडल समर्पित किया, सबने अपने-अपने क्षेत्र में कोई विशेष योगदान दिया है और सबकी कहानी वाकई समाज को प्रेरित करने वाली हैं। उनके बारे में जानने के बाद ऐसा लगता है कि देश में कितनी ऐसी प्रतिभाएं पड़ी हुई हैं, जो हमारे सामने नहीं आ पातीं। लेकिन, इस महिला दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी की एक पहल ने पूरे विश्व की महिलाओं और समाज के हर तबके को गौरवांवित करने का काम किया है कि आज भारत की महिलाएं दुनिया में हर किसी को अपने-अपने क्षेत्र में चुनौती देने में न सिर्फ सक्षम हैं, बल्कि देश और दुनिया की तरक्की में योगदान देने के लिए भी पूरी तरह से परिपूर्ण हैं।
प्रेरणा से भरी है मालविका की जिंदगी
पीएम मोदी के ट्विटर हैंडल का संचालन करने वाली एक महिला हैं मालविका अय्यर, जो इंटरनेशनल मोटिवेशनल स्पीकर, दिव्यांगों के हक की आवाज उठाने वाली एक्टिविस्ट और फैशन मॉडल के रूप में स्थापित हैं। मालविका ने महज 13 वर्ष की उम्र में एक खौफनाक घटना में अपना दोनों हाथ गंवा दिया था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने हौसले के दम पर हर बुलंदियों को छूने की कोशिश की है। तमिलनाडु की कुमबाकोनम में जन्मीं मालविका राजस्थान के बीकानेर में पलीं-बढ़ीं। बचपन में उनके घर के पास ही हथियार डिपो में आग लगने से शेल इधर-उधर बिखर गए थे। उन्हें एक ग्रेनेड पड़ा मिला था, जो उनके हाथ में ही फट गया। इस हादसे में उनके दोनों हाथ तो चले ही गए, दोनों टांगे भी फ्रैक्चर हो गईं और पूरे नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचा। इलाज के लिए वो दो साल चेन्नई के एक अस्पताल में रहीं। लेकिन, उन्होंने कभी हौसला नहीं हारा और वो दिव्यांग सुपरवुमन बनकर फिर से दुनिया में वापसी की। वो असिस्टेंट की मदद से एसएसएलसी परीक्षा पास की। पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजी अब्दुल कलाम ने उनके बारे में सुनकर उन्हें राष्ट्रपति भवन में बुलाया। इकोनॉमिक्स ऑनर्स की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से की और दिल्ली स्कूल से सोशल वर्क में मास्टर्स के बाद मद्रास स्कूल से एम फिल पूरी की। उनके बेहतरीन कार्यों के लिए उन्हें कई इंटरनेशनल पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
जब आरिफा ने बदली महिला कारीगरों की जिंदगी
प्रधानमंत्री मोदी के ट्विटर हैंडल को चलाने वाली दूसरी महिला का नाम आरिफा है, जो जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की रहने वाली हैं। 33 साल की आरिफा ने इतनी कम उम्र में ही महिला कारीगरों का जीवन बदलने का काम किया है। आरिफा ने अपने बारे में बताया है कि उन्होंने क्राफ्ट मैनेजमेंट किया है। कोर्स के दौरान उन्होंने पाया कि कश्मीर में क्राफ्ट खत्म हो रहा था और पैसों के अभाव में कारीगर कला से दूर हो रहे थे। तब उन्होंने कला को बचाने के लिए रिवाइवल ऑफ नमदा प्रोजेक्ट शुरू किया। क्योंकि, तब कारीगरों को महज 50 रुपये दिहाड़ी मिलती थी और महिलाएं वो करना नहीं चाहती थीं। आरिफा के मुताबिक निर्यात 98 फीसदी से घटकर 2 फीसदी पर रह गया था। तब उन्होंने आरी कढ़ाई और पश्मीना पर काम करने वाली 28 महिला कारीगरों का ग्रुप बनाया। उन्होंने इसपर सात साल कड़ी मेहनत की। आज आरिफा युवा पीढ़ी को कहती हैं कि वो जॉब ढूंढ़ने के बजाय जॉब क्रियेटर बनें। उन्होंने एक कश्मीरी पारंपरिक गलीचा इकाई को पनर्जीवित किया और तीन नई इकाइयों की स्थापना की। राष्ट्रपति के हाथों उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। आरिफा के पहल से आज महिला कारीगरों की कमाई अच्छी हो रही है और उनके प्रोडक्ट अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड जैसे देशों में जा रहे हैं। उन्हें 2014 में अमेरिकी नागरिकता पात्रता प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया था।
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स्नेहा मोहनदास हजारों गरीबों की मसीहा हैं
महिला दिवस पर चेन्नई की स्नेहा मोहनदास ने भी पीएम मोदी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया है। मोहनदास ने इसमें अपनी फूड बैंक इंडिया मुहिम के बारे में बताया है। मोहनदास ने कहा है कि गरीबों के अच्छे भविष्य के लिए यह काम करने का वक्त है। उनके मुताबिक उन्होंने अपनी मां से प्रेरित होकर बेघरों को खाना खिलाने की आदत डाली और फूडबैंक इंडिया के नाम से यह पहल की। उन्होंने एक विडियो शेयर कर फूड बैंक इंडिया के बारे में बात की है, जिसकी शुरुआत 2015 में की गई थी। स्नेहा मोहनदास फूड बैंक इंडिया की संस्थापक हैं। मौजूदा समय में इस संस्था के साथ सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं। वो कहती हैं कि, 'मेरा सपना है कि भारत हंगर फ्री नेशन बने।' स्नेहा के अनुसार उन्हें इसकी प्रेरणा उनकी मां से मिली। उनकी मां उनके जन्म पर बच्चों को घर बुलाकर खाना खिलाती थीं और उनमें भी तभी से इसकी आदत पड़ गई। वो इस पहल में युवा पीढ़ी को शामिल करना चाहती हैं, जिसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर फूड बैंक चेन्नई के नाम से फेसबुक पेज भी बनाया है। आज की तारीख में इस बैंक का 18 से ज्यादा चैप्टर भारत में और एक साउथ अफ्रीका में काम कर रहा है। वो लोगों को इस मुहिम से जुड़ने के लिए कहती हैं और रोजाना कुछ ज्यादा पकाने के लिए कहती हैं, जिसका एक हिस्सा जरूरतमंदों को दिया जा सके। उन्होंने मैटेरियल जुटाने से लेकर हंगर स्पॉट तक खाना पहुंचाने के लिए वॉलंटियर की फौज तैयार कर रखा है, जिन्हें वो इस सेवा कार्य का सारा क्रेडिट देती हैं।
विजया पवार का प्रेरक जीवन
पीएम मोदी के ट्विटर हैंडल को चलाने वाली अगली प्रेरणादायक महिला का नाम है विजया पवार। उन्होंने अपने बारे में लिखा है- गोरमाटी कला को बढावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने न केवल हमें प्रोत्साहित कियास बल्कि हमारी आर्थिक सहायता भी की। ये हमारे लिए गौरव की बात है। इस कला के संरक्षण के लिए मैं पूरी तरह से समर्पित हूं और महिला दिवस के अवसर पर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। मतलब साफ है कि पवार गोरमाटी कला को संरक्षित और संवर्धित करने में जुटी हुई हैं। गोरमाटी कला ग्रामीण महाराष्ट्र की बंजारा समाज का हैंडीक्राफ्ट है। इस कला को सहेजने और चमकाने में विजया पवार ने अपने जीवन का दो दशक खपाया है। आज की तारीख में उनके साथ एक हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं।
वॉटर वॉरियर कल्पना रमेश के बारे में जानिए
पीएम मोदी का ट्विटर हैंडल संभालने वाली कल्पना रमेश ने भी अपना एक विडियो शेयर कर अपने और अपने काम के बारे में बताया है। कल्पना खुद को वॉटर वॉरियर बताती हैं, जो पेशे से एक आर्किटेक्ट हैं। उनके मुताबिक जब वो अमेरिका से हैदराबाद शिफ्ट हुए तो उन्हें कई बार पानी की किल्लत का सामना करना पड़ा और पानी के टैंकर मंगाने पड़े।तब जाकर उन्होंने पानी बचाने की मुहिम शुरू की। करीब 8 साल पहले उन्होंने जब अपना घर बनाया तो इसका पूरा ख्याल रखा कि पानी की एक बूंद भी बर्बाद न जाए और उसे सहेज कर रखने का इंतजाम किया। उनकी मुहिम कारगर साबित हुई और 2016 में हैदराबाद में किसी को भी पानी की उतनी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा और न ही पानी के टैंक मंगाने पड़े। कल्पना रमेश कहती हैं कि पानी की हिफाजत की प्रेरणा उन्हें उनकी मां से मिली है। उन्होंने पीएम मोदी का ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल कर खुद को गौरवांवित महसूस किया है और इसके जरिए लोगों से अपील भी की है कि वो पानी की बचत करें।
कानपुर की कलावती ने पेश की मिसाल
कानपुर की रहने वाली कलावती ने बताया कि वो जिस झोपड़पट्टी में रहती थीं वहां की स्थितियां बहुत ही खराब थीं। जनता कीड़े-मकोड़ों की तरह रहती थी। न पीने का पानी था, न कपड़ा धोने या नहाने का कोई साधन। लोगों को घर-घर जाकर समझाया। शौचालय बनाने के लिए घूम-घूमकर एक-एक पैसा इकट्ठा किया। आखिरकार सफलता हाथ लगी। साल-दो साल लगे रहने के बाद जब जनता के समझ में बात आ गई तब शौचालय बनवाए। 10-20-50 और 100 रुपये मांग-मांग कर जुटाए। दूसरे साल 55 सीट का शौचालय और 11-11 हजार लीटर की दो टंकियां लगवाईं। बस्ती के अंदर घर-घर में टोटियां पहुंचाईं। स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता जरूरी है। इसके लिए लोगों को जागरूक करने में थोड़ा समय जरूर लगा। लेकिन, मुझे पता था कि अगर लोग समझेंगे तो काम आगे बढ़ जाएगा। मेरा अरमान पूरा हुआ, स्वच्छता को लेकर मेरा प्रयास सफल हुआ। हजारों शौचालय बनवाने में हमें सफलता मिली है।बहन-बेटी और बहुओं को यही संदेश है कि बाहर निकलकर फिर पीछे मुड़कर मत देखना। कोई कड़वी जुबान बोलता है तो उसे बोलने देना।
कमरे में मशरूम की खेती कर बनीं मिसाल
बिहार के मुंगेर की रहने वाली वीणा देवी 2013 से मशरूम की खेती कर रही हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए एक ऐसी मशरूम की खेती के बारे में बताया है, जो घर पर ही करके महिलाएं रोजी-रोटी पा सकती हैं। एक समय इन्होंने मशरूम की एक किलो बीज मंगाकर जिस पलंग पर सोती थीं, उसी के नीचे लगा दिया। जगह का अभाव था, इसीलिए उन्होंने उसे साड़ी से ढंक दिया। वैज्ञानिकों ने पूछा कि कहां खेती करती हैं तो इन्होंने बताया कि मेरे पास जगह नहीं है, एक कमरा है, वहीं मशरूम लगा चुकी हूं। अच्छी फसल देखकर वो लोग फोटो खींचकर विश्वविद्यालय सबौर ले गए, मुंगेर ले गए। उन्होंने कहा कि 'मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि गाड़ी में बैठकर विश्वविद्यालय सबौर जाएंगे। उसी दौरान मुख्यमंत्री ने हमें प्राइज दिया तब मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर हम सरपंच बन गए। फिर अररिया, फारबिसगंज और किशनगंज में ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। फिर अपने गांव में ही हाट लगाया जहां मैं भी मशरूम बेचती हूं और दूसरी महिलाएं भी बेचती हैं। महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है। खुद से बाहर निकलेंगे तो अच्छा लगेगा, आप आगे बढ़ेंगे।'