क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

किसान आंदोलन को कहाँ से आ रहा है फंड?

दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पिछले छह दिनों से किसान धरने पर बैठे हुए हैं. वे केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं.

By दिलनवाज़ पाशा
Google Oneindia News
किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

छह फुट लंबे संदीप सिंह फतेहगढ़ साहिब से बीस लोगों के साथ प्रदर्शन में शामिल होने आए हैं. बीस लोगों का उनका दल दो ट्रॉलियों में आया है.

उनके समूह से चार लोग वापस गांव जा रहे हैं और उनके बदले आठ लोग आ रहे हैं.

संदीप कहते हैं, "मेरा तीन एकड़ गेहूँ की बुआई रह गई थी. मेरे गांव के लोगों ने मेरे पीछे वो फसल वो दी है." उन्होंने कहा है कि हम यहां डटे रहें, हमारे पीछे खेती के सारे काम होते रहेंगे.

संदीप जैसे दसियों हज़ार किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को हरियाणा से जोड़ने वाली सीमाओं पर डेरा डाल दिया है. वो ट्रॉलियों और ट्रकों से आए हैं और सड़क पर ही जम गए हैं.

वो यहीं पका रहे हैं, यहीं खा रहे हैं और यहीं सो रहे हैं. ये किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं. इन क़ानूनों से कृषि क्षेत्र में निजी सेक्टर के लिए रास्ता खुलेगा.

सरकार का तर्क ये है कि ये क़ानून किसानों के हित में हैं और इनसे उनकी आय बढ़ेगी जबकि किसानों का मानना है कि ये सरकार का उनकी ज़मीन क़ब्जा करने के प्लान का हिस्सा हैं.

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

फंड कहां से आ रहा है?

किसानों के इस आंदोलन को लेकर एक सवाल उठ रहा है कि इसमें फंड कहां से आ रहा है.

संदीप और उन जैसे जिन लोगों से हमने बात की, उनका कहना है कि यहां आने के लिए उन्होंने पैसे इकट्ठा किए हैं.

संदीप कहते हैं, "हम जिन ट्रैक्टर से आए हैं वो अधिक तेल खाते हैं. आने-जाने में ही दस हज़ार का डीज़ल खर्च हो जाएगा. अभी तक मेरा और मेरे चाचा के ही दस हज़ार रुपये ख़र्च हो चुके हैं."

लेकिन संदीप को इन पैसों का अफ़सोस नहीं है बल्कि उन्हें लगता है कि उनका ये पैसा उनके भविष्य में लग रहा है. वो कहते हैं, "अभी तो हमारे बस दस हज़ार ही ख़र्च हुए हैं, यदि ये क़ानून लागू हो गए तो हम होने वाला नुक़सान का अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते."

नृपेंद्र सिंह अपने दल के साथ लुधियाना ज़िले से आए हैं. उनके साथ आसपास के तीन गांवों के लोग हैं. नृपेंद्र सिंह के दल ने भी यहां पहुंचने के लिए चंदा किया है.

वो कहते हैं, "हमने ख़ुद पैसे इकट्ठा किए हैं, गांव के लोगों ने भी बहुत सहयोग किया है. मैं अकेले ही अब तक बीस हज़ार रुपए ख़र्च कर चुका हैं. बाकी जो लोग साथ आए हैं वो सब भी अपनी हैसियत से सहयोग कर रहे हैं."

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

एनआरआई कर रहे हैं मदद

नृपेंद्र के मुताबिक विदेश में रहने वाले उनके एक एनआरआई दोस्त ने मदद भेजी है.

वो कहते हैं, "मेरे एक एनआरआई दोस्त ने खाते में बीस हज़ार रुपये डाले हैं और कहा है कि अगर आगे भी ज़रूरत होगी तो वो भेजेगा. उसने कहा है कि वो अपने दोस्तों से भी इकट्ठा करके भेजेगा. हमारे आंदोलन में पैसे की कमी नहीं आएगी."

प्रदर्शन में शामिल कई लोग, जिनसे हमने बात की, उनका कहना था कि उनके एनआरआई दोस्त आंदोलन के बारे में जानकारी ले रहे हैं और पैसों की मदद भी भेज रहे हैं.

नृपेंद्र कहते हैं, "मेरे एनआरआई वीरे का कहना है कि पीछे नहीं हटना है, डटे रहना है, फंड की कमी नहीं होगी."

वो कहते हैं, "हम किसान इतने गरीब नहीं है कि अपना आंदोलन न चला सकें. जैसे यहां लंगर चल रहे हैं, हम सदियों से ऐसे लंगर चलाते रहे हैं. मिलकर खाना हमारी संस्कृति है. इस आंदोलन में किसी तरह की कोई कमी नहीं आएगी."

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

हरियाणा और पंजाब

सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब से आए हज़ारों ट्रैक्टर और ट्रॉलियां खड़े हैं और हर बीतते दिन के साथ ये संख्या बढ़ती ही जा रही है. ट्रॉलियों में खाने-पीने का सामान लदा है और किसानों के रहने और सोने की व्यवस्था है.

यहां दिन भर चूल्हे जलते रहते हैं और कुछ ना कुछ पकता रहता है. दिल्ली के कई गुरुद्वारों ने भी यहां लंगर लगाए हैं इसके अलावा दिल्ली के सिख परिवार भी यहां आकर लोगों को खाना खिला रहे हैं.

इंदरजीत सिंह भी अपना ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर प्रदर्शन में पहुंचे हैं. उनके साथ आए लोगों ने भी मिलकर चंदा किया है.

वो कहते हैं, "ट्रैक्टर मेरा अपना है, मैंने तेल डाला है. बाकी हम पंद्रह लोग हैं साथ, सभी ने पैसा जुटाया है. हर किसान ने अपनी हैसियत के हिसाब से पैसे जमा किए हैं. जिसके पास ज़्यादा ज़मीन है उसने ज़्यादा दिए हैं."

इंदरजीत कहते हैं, "हम घर से निकलने से पहले ये तय करके आए थे कि जब तक आंदोलन चलेगा लौटेंगे नहीं. किसी चीज़ की ज़रूरत होती है तो पीछे से आ जाती है. हमारे और आसपास के गांव के और लोग आ रहे हैं. वो सामान लेकर आते हैं."

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

राजनीतिक फंड का सवाल

ये सवाल पूछा जा रहा है कि आंदोलन में फंड कहां से आ रहा है. राजनीतिक पार्टियों के भी फंड देने के सवाल उठे हैं.

इस सवाल पर इंदरजीत और उनके साथ आए लोग कहते हैं, "जो लोग ये कह रहे हैं कि इस आंदोलन को पार्टियों से फंड मिल रहा है वो इसका सबूत पेश करें. हमारे गांवों में वो लोग भी पैसा दे रहे हैं जो यहां आए ही नहीं है. कुछ लोगों ने तो सौ-सौ रुपये तक दिए हैं."

मंदीप सिंह होशियारपुर से आए हैं. वो आसपास के तीन गांवों के किसानों के दल के साथ आए हैं. ये लोग दो ट्रैक्टर ट्रॉलियों और एक इनोवा कार से आए हैं.

वो कहते हैं, "मैंने 2100 रुपये दिए हैं, हम सबने फंड इकट्ठा किया है. हम यहां रहने, रुकने के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं."

मंदीप सिंह को लगा था कि वो चार-पांच दिन में लौट जाएंगे. लेकिन अब उन्हें लगता है कि आंदोलन लंबा चलेगा और वो यहीं टिके रहेंगे.

मंदीप कहते हैं, "अब लगता है कि यहां महीनों भी रहना पड़ सकता है. लेकिन हमें कोई चिंता नहीं है, जिस चीज़ की भी ज़रूरत होगी, हमारे गांव वाले पहुंचाते रहेंगे."

मंदीप को गेहूं की फसल बोनी थी. वो कहते हैं, "गांव के लोग कह रहे हैं कि वो ही हमारी फसल बो देंगे. अगर मैं वापस गया तो तो मेरी जगह दो लोग आ जाएंगे. हम सब ये समझते हैं कि ये बहुत बड़ा काम है जो हम कर रहे हैं. अगर ये काम पूरा नहीं हुआ तो हमारी पूरी नस्ल ही बर्बाद हो जाएगी. ये किसी एक बंदे की लड़ाई नहीं है, ये हम सबके भविष्य का सवाल है."

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

महीनों से हो रही थी ज़मीन पर आंदोलन की तैयारी

पंजाब की तीस से अधिक किसान यूनियनों ने ये आंदोलन खड़ा किया है. यूनियन से जुड़े नेता बताते हैं कि वो बीचे चार महीनों से इसके लिए ज़मीन पर काम कर रहे थे.

कीर्ति किसान यूनियन से जुड़े युवा किसान नेता राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं, "हमारी यूनियन अब तक इस आंदोलन पर पंद्रह लाख रुपये ख़र्च कर चुकी है और पंद्रह लाख का फंड अभी हमारे पास है. अगर सभी यूनियनों की बात की जाए तो अब तक क़रीब पंद्रह करोड़ रुपये इस आंदोलन पर ख़र्च हो चुके हैं."

राजिंदर सिंह कहते हैं कि इस आंदोलन में एनआरआई भी बढ़-चढ़कर हिस्सा भेज रहे हैं और वो फंड भेजने की पेशकश कर रहे हैं.

वो कहते हैं, "जहां तक फंड का सवाल है, पंजाब के किसान अपनी लड़ाई लड़ने में सक्षम है. लेकिन ये सिर्फ़ किसानों का ही सवाल नहीं है. इन क़ानूनों से मज़दूर और ग्राहक भी प्रभावित होंगे. जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ेगा, आम लोग और मज़दूर भी इससे जुड़ते जाएंगे."

किसान आंदोलन
BBC
किसान आंदोलन

पैसों का पूरा हिसाब

इस आंदोलन से जुड़ी यूनियनों ने चंदा इकट्ठा करने के लिए गांव से लेकर ज़िला स्तर तक पर समीतियां बनाई हैं और आ रहे पैसों का पूरा हिसाब रखा जा रहा है.राजिंदर सिंह कहते हैं, "हम एक-एक पैसे का हिसाब रख रहे हैं. जो लोग देखना चाहें वो यूनियन में आकर देख सकते हैं."सिर्फ पैसों का ही नहीं, यूनियन के नेता आंदोलन में आ रहे लोगों का भी हिसाब रख रहे हैं. एक थिएटर ग्रुप से जुड़े युवा भी आपस में चंदा करके आंदोलन में शामिल होने पहुँचे हैं.

इसी में शामिल एक युवा का कहना था, "बहुत ज़ाहिर सी बात है, जो पंजाब पूरे देश का पेट भर सकता है, वो ख़ुद भूखा नहीं मरेगा. हम सब अपनी व्यवस्था करके आए हैं. गांव-गांव में किसान यूनियनों की समीतियां हैं, हम सबने चंदा इकट्ठा है. ट्रॉली में भले ही एक गांव से पांच लोग आए हों, लेकिन पैसा पूरे गांव ने इकट्ठा किया है. हम अपनी नेक कमाई से इस आंदोलन को चला रहे हैं."शाम होते-होते पंजाब की ओर से आए कई नए वाहन प्रदर्शन में पहुंचे. इनमें से रोटियां बनाने की मशीनें उतर रही थीं.

इनकी ओर इशारा करते हुए एक किसान कहता है, "ज़रूरत पड़ी तो हम पंजाबी पूरी दिल्ली को खाना खिलाकर जाएंगे."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Where is the farmer movement fund coming from?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X