मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की लड़कियां कहां और कैसी हैं? - ग्राउंड रिपोर्ट
प्रज्ञा कहती हैं, "नहीं. हमसे कोई पूछताछ नहीं हुई है. हां, सीबीआई ने मुज़फ़्फ़रपुर से आई लड़कियों से पूछताछ की है. उन्हीं में से एक लड़की के लापता होने के बाद पुलिस ने बाकी लड़कियों से पूछताछ की. वहां काम करने वाली महिला कर्मियों से भी पूछताछ की गई है."
बेहद आश्चर्य की बात है कि जिस बालिका गृह से मुज़फ़्फ़रपुर से आई एक लड़की लापता हो चुकी है, उसकी जांच में बालिका गृह की संचालिका प्रज्ञा भारती से कोई पूछताछ नहीं की गई है.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड को उजागर हुए अब सात महीने से अधिक का वक्त हो चला है और ऐसे कई सवाल जवाब की तलाश में अब भी भटक रहे हैं.
शेल्टर होम की वो लड़कियां कहां गईं जिनके बारे में पीमसीएच में हुई मेडिकल जांच के बाद बिहार की मीडिया में 'गर्भवती होने की पुष्टि ' होने की ख़बरें छपी थीं?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ (TISS) की वो रिपोर्ट जिसमें वहां रहने वाली बच्चियों के साथ यौन दुर्व्यवहार से लेकर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना की जानकारी दी गई थी, पिछले साल 26 मई को समाज कल्याण विभाग के निदेशक तक पहुंची.
विभाग द्वारा तत्काल कार्रवाई करते हुए 29 मई 2018 को बालिका गृह को खाली करा लिया गया और वहां रहने वाली सभी 44 बच्चियों को बेहतर देखभाल और सुरक्षा मुहैया कराने के लिए राज्य के दूसरे शेल्टर होम में शिफ़्ट कर दिया गया.
इनमें से 14 बच्चियों को बालिका गृह मधुबनी में, 14 को बालिका गृह मोकामा में और बाकी 16 लड़कियों को बालिका गृह, पटना भेजा गया था.
31 मई 2018 को समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन सहायक निदेशक दिवेश शर्मा के बयान के आधार पर मुज़फ़्फ़रपुर महिला थाने में मामले में पहला एफ़आईआर दर्ज हुआ और पुलिस इसकी जांच में लग गई.
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जो बातें अब तक मालूम हैं...
मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने 11 नामजद अभियुक्तों में से 10 को तुरंत गिरफ़्तार भी कर लिया. जिसमें मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर भी शामिल थे.
बाद में मामले की गंभीरता को देखते हुए और निष्पक्ष जांच का हवाला देकर बिहार सरकार ने बालिका गृह कांड की जांच का जिम्मा सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इनवेस्टिगेशन यानी सीबीआई को दे दिया.
सीबीआई ने 19 दिसंबर को विशेष पॉक्सो कोर्ट में मामले की चार्जशीट दायर कर दी है.
जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह में रहने वाली 44 में से 33 लड़कियों समेत कुल 102 गवाहों के बयानों और उनसे लिए गए साक्ष्यों के आधार पर 21 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए गए हैं.
सीबीआई की चार्जशीट कहती है कि इस मामले में अनुंसधान अभी भी जारी है. मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड का यह अब तक का सार है.
वैसे तो इन सात महीनों के दौरान इसके अलावा भी मामले में बहुत कुछ हुआ है. फिर चाहे वो समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का इस्तीफ़ा हो, या हाई कोर्ट से मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले से संबंधित ख़बरों के प्रकाशन और प्रसारण पर रोक.
सुप्रीम कोर्ट से रोक हटाने का आदेश और अब सीबीआई की चार्जशीट के हवाले से बच्चियों पर होने वाली यातनाओं की कहानी अख़बारों की सुर्खियां बनी हुई हैं.
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सवाल जिनके जवाब नहीं...
लेकिन, इन सात महीनों के दौरान एक बार भी ये बात नहीं उठी कि सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार उन 'सतायी हुई बच्चियों' का इन दिनों में क्या हुआ? वे अभी किस हाल में हैं?
क्या वे बच्चियां यातना से भरे उन दिनों को अब भूल चुकी हैं? उन बच्चियों का क्या हुआ जिनके 'गर्भवती होने की पुष्टि' की ख़बरें तब अख़बारों की हेडलाइन बनी थीं और आज भी इंटरनेट पर इसी हेडिंग के साथ उपलब्ध हैं? साथ ही सवाल ये भी कि सरकार ने उसके बाद उन 44 पीड़ित बच्चियों के लिया क्या किया?
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के ऐसे ही तमाम अनसुलझे सवालों के साथ 10 जनवरी, दिन गुरुवार की सुबह क़रीब 11 बजे हम बालिका गृह, मधुबनी के मेन गेट के सामने खड़े थे.
एकदम से घने बसावट वाले मधुबनी के वार्ड 17 में स्थित सूरतगंज मोहल्ले की एक गली में 'हुसैन मंजिल' के मुख्य गेट पर लिखा था, 'बालिका गृह मधुबनी, सौजन्य- राज्य एवं बाल विकास संरक्षण समिति समाज कल्याण विभाग, बिहार पटना, संचालक- परिहार सेवा संस्थान.'
मधुबनी का ये वही बालिकागृह है जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित 14 बच्चियों को लाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में बिहार सरकार ने जवाब दिया है, "पीड़ित बच्चियों की बेहतर देखभाल और सुरक्षा के लिए मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से हटाकर मधुबनी के बालिका गृह ले जाया गया है."
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मधुबनी शेल्टर होम
मधुबनी के सूरतगंज की पतली और संकरी गली में, जिसके दोनों तरफ मकान एक दूसरे से बिल्कुल सटकर बने थे, बजबजाती नाली और चारो तरफ़ गंदगी का अंबार लगा था और सबसे अव्वल तो ये कि बालिका गृह के पीछे का घर और गृह के कैंपस की दीवार एक था.
इसके पहले की रिपोर्टिंग के दौरान मैं मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह भी जा चुका था. जिसको लेकर ये सवाल उठे थे कि आखिर सरकार ने ब्रजेश ठाकुर को वैसी जगह पर, वैसे परिवेश में और वैसी संरचना के साथ बालिका गृह चलाने की अनुमति कैसे मिल गई?
बालिका गृह मधुबनी के गेट पर खड़ा मैं कुछ देर यही सोचता रहा कि मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से बेहतर देखभाल और सुरक्षा के नाम पर बच्चियों को यहां क्यों शिफ़्ट किया गया जबकि किसी नज़र से यह शेल्टर होम के लिए बनाए गए नियम-क़ायदों का पालन करता हुआ नहीं दिख रहा था. इसे एनजीओ परिहार सेवा संस्थान चला रही है.
यहां से मुज़फ़्फ़रपुर की एक पीड़िता लड़की के लापता होने का मामला भी दर्ज हुआ, जिसका आजतक कोई पता नहीं चल सका.
वहां मौजूद एक केयर टेकर महिला कर्मी ने हमसे पूछा, "किससे परमिशन लेकर आए हैं? अंदर आने के लिए आपको या तो बाल संरक्षण इकाई या फिर डीएम से परमिशन लेना होगा. और माफ़ करिएगा, हम कोई बात नहीं कर पाएंगे, यहां की सुप्रिटेंडेंट अभी नहीं हैं. आप उनसे फ़ोन पर बात कर लीजिए."
दाखिल होने की इजाज़त मिली...
यहां की सुप्रिटेंडेंट आलिया खुर्शीद ने भी फ़ोन पर कहा कि "ऊपर से ऑर्डर है, ऐसे हम किसी को प्रवेश नहीं दे सकते. परमिशन लेना होगा."
फिर मैंने मधुबनी के डीएम शीर्षत कपिल से फ़ोन पर परमिशन लेने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया. उसी दिन सीएम नीतीश कुमार का भी मधुबनी में कार्यक्रम था. डीएम वहीं थे.
जब बालिका गृह के अंदर जाने का मौका नहीं मिला तो मैंने बाहर लोगों से बातें करनी चाही. आश्चर्य की बात थी एक दर्ज़ी को छोड़ कोई बात नहीं करना चाह रहा था. दर्ज़ी भी नाम नहीं बताना चाहता था.
मैंने फिर बालिका गृह की सुप्रिटेंडेंट को फ़ोन लगाया. बहुत आग्रह पर वो बोलीं, "थोड़ा इंतज़ार कर सकते हैं तो करें, मैं वहां आ रही हूं, फिर बात करती हूं."
इस बातचीत के बाद अब हमें कैंपस में प्रवेश की इजाज़त भी मिल गयी.
उस कांड के बाद...
मेरे साथ बिहार महिला सेवा समाज की महासचिव राजश्री किरण भी थीं. उन्हें हमने इसलिए बुलाया था क्योंकि मधुबनी बालिका गृह से लापता हुई मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की लड़की के मामले को लेकर वो सड़क पर उतरी थीं. साथ ही सुप्रिटेंडेंट ने फ़ोन पर यह पूछा भी था कि, "बिना महिला के किसी भी हाल में प्रवेश नहीं मिल सकता."
बालिका गृह के कैंपस के सामने का हिस्सा टिन की दीवार से घेरा गया था. अंदर एक बुजुर्ग महिला सिपाही चीनी दूबे दो बजने (शिफ़्ट ख़त्म होने) का इंतज़ार कर रही थीं. इनकी दो साल की नौकरी बाकी रह गई है.
मैंने उनसे पूछा, यहां से एक बच्ची कैसे गायब हुई थी?
तो चीनी दूबे कहती हैं, "हम तो उस कांड के बाद यहां आए हैं. हमको कैसे मालूम होगा!"
डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद जब सुप्रिटेंडेंट आलिया खुर्शीद बालिका गृह पहुंचीं तो हमने उनसे पूछा कि जिन बच्चियों को यहां लाया गया था, शुरुआती जांच रिपोर्टों में उनमें से तीन की प्रेग्नेंसी की पुष्टि की गई थी. आखिर वो लड़कियां कहां हैं और कि हाल में हैं?
किस हाल में हैं लड़कियां...
आलिया कहती हैं, "हमारे यहां जो भी 14 लड़कियां मुज़फ़्फ़रपुर से आई थीं, मेडिकल रिपोर्ट में उनमें से किसी के भी गर्भवती होने की पुष्टि नहीं हुई थी. उनकी मेडिकल जांच की बोर्ड ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसे आप देख सकते हैं. इसमें कोई भी लड़की गर्भवती नहीं है."
जब इस बालिका गृह से मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की एक लड़की गायब हुई थी, तब भी यहां सुप्रिटेंडेंट आलिया खुर्शीद ही थीं.
जो लड़की ग़ायब हुई है वो मुज़फ़्फ़रपुर से आई एक पीड़िता हैं और उनका बयान सीबीआई की चार्जशीट में मौजूद है. उन्हें इस मामले में गवाह बनाया गया है, आखिर वही क्यों लापता हैं?
मामले की एफ़आईआर भी टाउन थाने में दर्ज है, क्या पुलिस को उसका कुछ पता लग पाया है?
सुप्रिटेंडेंट खुर्शीद कहती हैं, "मुझे नहीं मालूम कि उस लड़की का बयान दर्ज हुआ था या नहीं! क्योंकि वो लड़की कुछ बोलती नहीं थी. किसी तरह अपना नाम बोल रही थी. लेकिन दिमाग से तेज़ थी. उसने भागने की अच्छी तैयारी कर रखी थी. जांच से ये स्पष्ट हो गया है. दीवार फांदने के लिए रस्सी का सहारा लिया था. रही बात पता लगाने और कार्रवाई करने लिए तो आपको बता दें कि टाउन थाने में मेरे ही बयान के आधार पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी. लापरवाही बरतने वाले कर्मी को न सिर्फ़ निलंबित किया गया है बल्कि उसे सीबीआई ने गिरफ़्तार भी कर लिया है. रही बात लड़की को ट्रेस करने की तो उसका पता अभी तक नहीं चल पाया है. और ये काम हमारा नहीं पुलिस का है."
एफआईआर से उठे सवाल
मगर मधुबनी बालिका गृह की उस लापता लड़की पर सुप्रिटेंडेंट का जवाब नए सवालों का जवाब दे रहा था.
इसकी सबसे बड़ी वजह मामले में 12 जुलाई को टाउन थाने में दर्ज एफ़आईआर है.
सुप्रिटेंडेंट हमें यह नहीं बता सकीं कि एफ़आईआर में कुछ और भी जटिल सवाल थे. इसके अनुसार लापता बच्ची की उम्र 13 साल है, जबकि उक्त लड़की की मेडिकल जांच में मधुबनी सदर अस्पताल के डॉक्टरों के बोर्ड ने 3 जून को लिखा है कि लड़की की उम्र करीब 16 साल की थी.
थोड़ी देर के लिए हम सुप्रिटेंडेंट की बात पर यकीन कर भी लें कि लड़की खुद से भाग गई थी, मगर फिर मेडिकल रिपोर्ट और एफ़आईआर रिपोर्ट में दी गई जानकारियां आपस में मेल नहीं खा रही थीं.
एफ़आईआर में लिखा है कि लड़की गूंगी है जबकि मेडिकल रिपोर्ट में ये नहीं लिखा है.
कहीं उस लड़की का गायब हो जाना एक साजिश तो नहीं है!
सुप्रिटेंडेंट आलिया खुर्शीद कहती हैं, "ऊपरवाला मेरे साथ है. हम इन लड़कियों के लिए किस तरह काम करते हैं, ये ऊपरवाला देख रहा है. अगर ये सब साजिश होती तो उसकी जाँच में सबकुछ सामने आ जाता. सीबीआई और स्थानीय पुलिस की टीम भी कई बार मामले की जाँच करते हुए यहाँ आई है. हमसे इस संबंध में कई बार पूछताछ भी हुई है."
बालिका गृह के अंदर
मामला मधुबनी टाउन थाने में दर्ज हुआ था, तो हमने मधुबनी एसपी दीपक बर्णवाल से बात की.
उन्होंने कहा, "इसमें दो राय नहीं कि लड़की वहाँ से खुद भागी थी. हमने सीसीटीवी फुटेज समेत सभी चीजों की बारीक जांच की है. सीसीटीवी फुटेज में साफ़ दिख रहा था कि उस लड़की ने भागने के लिए तमाम तरह की कोशिशें की थीं."
क्या लड़कियां हुई यातनाओं को भूल चुकी हैं? क्या वे उस सदमे से उबर चुकी हैं? उन्हें फिलहाल किस हाल में रखा गया है?
सुप्रिटेंडेंट खुर्शीद कहती हैं, "शुरू में जब पहली पहली बार यहां बच्चियों को यहां लाया गया था, तब उनकी स्थिति ठीक नहीं थी. बच्चियां अपने कमरे से बाहर निकलने में भी डरती थी. अभी भी एकाध बच्चियां ऐसी हैं जिनके मन से हमें डर खत्म करना है. बाकी बच्चियां अब ठीक हैं. वो तो बाहर निकल कर खेलती भी हैं."
काफी गुजारिश के बाद आखिरकार आलिया हमें बालिका गृह के अंदर ले गईं. अंदर जाने से पहले सख्ती दिखाते हुए फ़ोन और कैमरा बाहर रखवा दिया गया.
बालिका गृह के मकान के अंदर प्रवेश करने के साथ ही दाहिनी ओर गृह कार्यालय है, और बाईं तरफ़ कंट्रोल रूम है जिसमें अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी के फुटेज एक मॉनिटर पर डिस्प्ले हो रहा था. गलियारे के सामने बालिका गृह का आंगन था.
स्पेशल केयर की ज़रूरत
ये बच्चियों के खाना खाने का समय था. आंगन में क़रीब दर्ज़नों बच्चियां मौजूद थीं. फर्श पर भात और दाल बिखरा पड़ा था.
सुप्रिटेंडेंट ने कहा, "इनके खाने खाने के बाद एक बार सफ़ाई करनी पड़ती है. यहां रहने वाले सभी 37 बच्चे विशेष इकाई वाले हैं. इन्हें स्पेशल केयर की ज़रूरत है. हमारे यहां एक काउंसिलर भी हर दिन आती हैं जो बच्चियों की डेली काउंसलिंग करती हैं."
हमने वहां मौजूद हर बच्ची से बात करने की कोशिश की. मगर कोई बच्ची हमारे सवालों का जवाब नहीं दे पा रही थी. जो बच्ची सामने आती हाथ जोड़कर नमस्कार करती और अपनी टूटी जबान में सिर्फ़ नमस्ते बोल पाती था. शायद उन्हें अब तक यही सिखाया गया था.
अंदर अचानक ही एक बच्चे की जोर से रोने की आवाज आई. हमने सुप्रिटेंडेंट से पू़छा कि इतनी तेज़ कौन रो रहा है?
सुप्रिटेंडेंट ने एक लड़की को आवाज़ दी कि बच्ची को लेकर आने के लिए. बालिका गृह के रिकॉर्ड्स के अनुसार वो सात साल की मासूम थी, जो घर की याद आने पर जोर-जोर से रोने लगती है. किसी तरह उसको चुप कराया जाता है.
परिहार सेवा संस्थान
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से आई लड़कियों में से एक जिसने सीबीआई की चार्जशीट में अपना बयान भी दिया है, जूठे बर्तन चापाकल पर धो रही थीं. क्या बच्चियों को वहां अपना काम खुद करना होता है? इसके लिए कोई कर्मी नहीं है वहां?
जवाब में सुप्रिटेंडेंट कहती हैं, "नहीं ऐसा नहीं है. यहां चार कर्मी हैं. मुझे मिला दें तो कुल पांच हो जाएंगी. वो लड़की (इशारे से बर्तन धोती लड़की को दिखाते हुए) यहां कि सबसे अच्छी बच्चियों में से है. बाकी बच्चियां उसकी बात मानती हैं और वो भी बिना किसी के बोले. वो नहीं रहे तो चार बच्चियां खाना भी नहीं खाएंगी."
मधुबनी बालिका गृह में रह रही उन बच्चियों देखकर लगा कि वाकई उन्हें विशेष देखभाल और संरक्षण की ज़रूरत है. जो उन्हें यहां नहीं मिलता दिख रहा था.
इस सवाल पर कि मुज़फ़्फ़रपुर मामले के उजागर होने और वहां के पीड़ितों को यहां शिफ़्ट करने के बाद इस बालिका गृह की बेहतरी के लिए क्या किया है?
सुप्रिटेंडेंट ने कहा, "जो है सब आपके सामने हैं. एक्स्ट्रा वो लेडी गार्ड हैं जो मुज़फ़्फ़रपुर कांड होने के बाद और यहां से एक लड़की के लापता होने बाद तैनात की गई हैं. हमलोग (परिहार सेवा संस्थान) ही इसके पहले भी थे, आज भी हम ही हैं. हमारी संस्थान ही इसे पहले भी चला रहा था. हालांकि, हमारी संचालिका प्रज्ञा भारती ने सरकार और विभाग को लिखित में चार-पांच बार दिया है कि वो इस बालिका गृह को नहीं चलाना चाहतीं. लेकिन अभी तक इस बाबत कोई कदम नहीं उठाया गया है."
एक लड़की पर दो हज़ार का खर्च
ये एक नई और अचरज भरी बात थी कि मधुबनी बालिका गृह को परिहार सेवा संस्थान चलाना नहीं चाहता है लेकिन सरकार उससे चलवा रही है.
हमने जब प्रज्ञा भारती से ये पूछा कि मुज़फ़्फ़रपुर जैसी परिस्थितियां होते हुए भी और उनके पत्र लिखकर मना करने के बावजूद भी उन 'सताई हुई लड़कियों' को फिर उन्हीं के शेल्टर होम में क्यों भेजा गया?
वो कहती हैं, "ये बात आप सरकार से पूछिए. जहां तक सवाल है मुज़फ़्फ़रपुर जैसी परिस्थितियों का तो वो हमने नहीं बनाई हैं. आप वहां के आस-पास के जिस माहौल और बच्चियों को दी जाने वाली सुविधाओं की बात कर रहे हैं तो उसके लिए हम पहले ही विभाग को लिख चुके हैं."
वो सवाल उठाती हैं, "बगल के एक लड़के के ख़िलाफ़ ख़मलाफ टाउन थाने में एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई है लेकिन पुलिस उसे भी नहीं पकड़ सकी. लड़कियों को तो छोड़िए, आस-पास के लोग हमें और हमारे यहां काम करने वाली महिला कर्मियों को लेकर ताने कसते हैं कि हम धंधा कराते हैं."
भारती आगे कहती हैं, "एक लड़की पर हमें 45 रुपये प्रतिदिन खिलाने के लिए मिलते हैं. महीने में एक लड़की पर 2000 रुपये के खर्च करने को दिया जाता है. सर्फ़, साबुन, पहनने के लिए कपड़ा और खाना. ये सब 2000 रुपये में आप कैसा चाहते हैं."
बिहार सरकार की जांच
क्या मधुबनी बालिका गृह से एक लड़की के गायब होने के बाद गृह की संचालिका प्रज्ञा भारती और उनके पति उदय झा से पुलिस और सीबीआई ने पूछताछ की है?
प्रज्ञा कहती हैं, "नहीं. हमसे कोई पूछताछ नहीं हुई है. हां, सीबीआई ने मुज़फ़्फ़रपुर से आई लड़कियों से पूछताछ की है. उन्हीं में से एक लड़की के लापता होने के बाद पुलिस ने बाकी लड़कियों से पूछताछ की. वहां काम करने वाली महिला कर्मियों से भी पूछताछ की गई है."
बेहद आश्चर्य की बात है कि जिस बालिका गृह से मुज़फ़्फ़रपुर से आई एक लड़की लापता हो चुकी है, उसकी जांच में बालिका गृह की संचालिका प्रज्ञा भारती से कोई पूछताछ नहीं की गई है.
अचरज और भी गहराता गया, जब आखिर में हमारे पास वो खत पहुंचा जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह से आई लड़कियों के मेडिकल रिपोर्ट का ज़िक्र था.
12 जुलाई 2018 को टाउन थाने में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार भागी हुई लड़की गूंगी थी.
लेकिन 3 जून को जारी हुए मधुबनी बालिका गृह की मेडिकल रिपोर्ट कहती है, "उन लड़कियों के साथ दुष्कर्म से इनकार नहीं किया जा सकता है."
लेकिन जिस तारीख़ को ये घटना हुई, उस तारीख़ की रिपोर्ट में ना तो इस बात का जिक्र हुआ है और ना ही इस घटना की जानकारी दी गई है.
सवाल अब भी यहीं टिका था कि मुज़फ़्फ़रपुर की वो गर्भवती लड़कियां कहां गईं?
जवाब के लिए हमें सरकार के उस जवाब की पड़ताल का इंतज़ार करना होगा जिसमें सरकार की ही ओर से ये लिखा गया है कि मामले की जांच चल रही है.