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आख़िर कहां हैं अफ़ग़ानिस्तान में अगवा भारतीय मजदूर?

"हमार बेटवा ओतहीं रहतई का. ना हम जाई पाइबे, न घूमे पारिबे. अब कि करबई. एतना दिन से ढूंढते हई. कहां रखले हई दुश्मनवा, के जानत हई."

(मेरा बेटा वहीं रहेगा क्या. न हम जा पाएंगे, न घूम पाएंगे. अब क्या करें. इतने दिन से उन्हें खोज ही रहे हैं. दुश्मनों ने उन्हें कहां रखा है. इसकी ख़बर किसको है)'

 

By BBC News हिन्दी
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आख़िर कहां हैं अफ़ग़ानिस्तान में अगवा भारतीय मजदूर?

"हमार बेटवा ओतहीं रहतई का. ना हम जाई पाइबे, न घूमे पारिबे. अब कि करबई. एतना दिन से ढूंढते हई. कहां रखले हई दुश्मनवा, के जानत हई."

(मेरा बेटा वहीं रहेगा क्या. न हम जा पाएंगे, न घूम पाएंगे. अब क्या करें. इतने दिन से उन्हें खोज ही रहे हैं. दुश्मनों ने उन्हें कहां रखा है. इसकी ख़बर किसको है)'

घाघरा गांव की सुंदरी देवी यह कहते हुए दहाड़ मारकर रोने लगती हैं.

वे उस प्रकाश महतो की मां हैं, जिनका बीते 6 मई को अफ़गानिस्तान में अपहरण कर लिया गया था. उऩके साथ घाघरा के ही प्रसादी महतो, महूरी के हुलास महतो और बेडम (टाटी झरिया) के काली महतो भी पिछले 40 दिनों से अपहरणकर्ताओं के चंगुल मे फंसे हैं.

इन चारों लोगों के साथ बिहार के एक और केरल के दो मजदूर को भी अफ़गानिस्तान के बागलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-कुम्हरी के पास से अगवा कर लिया गया था. तबसे इनका पता नहीं चल सका है.

सबसे बड़ा सदमा

प्रकाश महतो के 71 वर्षीय दादा गोवर्धन महतो के लिए यह ज़िंदगी का सबसे बड़ा सदमा है. उन्होंने बताया कि अपहरण के बाद उनके घर पहुंचे नेताओं और अफ़सरों ने उनके पोते की शीघ्र रिहाई का भरोसा दिलाया था, लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला.

गोवर्धन महतो ने बीबीसी से कहा "मुझे न तो भारत सरकार की कोई चिट्ठी मिली है और न अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने कुछ बताया है. मुझे पता ही नहीं चल पा रहा कि मेरा पोता (प्रकाश) कहां और किस हाल में है. किसी कंपनी के लोग घर आए थे, तो पता चला कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मेरी बहू (प्रकाश की पत्नी) से मिलना चाहती हैं. इसलिए कंपनी वाले उसे लेकर दिल्ली गए हैं. वहां 15 जून को उनकी मुलाकात विदेश मंत्री से होनी है. शायद, इसके बाद मेरे पोते की रिहाई हो सके.

सुषमा स्वराज से मिलने गए परिजन

दरअसल, हुलास महतो की पत्नी प्रमिला देवी, प्रकाश महतो की पत्नी चमेली देवी और काली महतो की पत्नी पमिया देवी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने दिल्ली गए हैं. जरमुने वेस्ट पंचायत के मुखिया संतोष रजक ने बताया कि केइसी इंटरनेशनल (अगवा मजदूरों की नियोक्ता कंपनी) के प्रतिनिधि गुरुवार को इन सबको लेकर दिल्ली गए. वहीं, हुलास महतो के पिता और प्रसादी महतो के पुत्र मोहन पिछले सप्ताह से ही पहले से ही दिल्ली में मौजूद हैं.

संतोष रजक ने बीबीसी से कहा "पहले 8 जून को ही यह मुलाकात विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव से होनी थी लेकिन अंतिम समय में उसे टाल दिया गया. तब कहा गया कि यह मुलाकात नियोक्ता कंपनी के अधिकारियों की मौजूदगी में होगी. इसके बाद 15 जून की तारीख़ तय हुई. अब देखिए शुक्रवार को भी यह मुलाकात हो पाती है या नहीं. "

प्रसादी महतो की पत्नी बीमार

अफ़गानिस्तान में अगवा प्रसादी महतो की पत्नी मीना देवी तबीयत खराब होने के कारण विदेश मंत्री से मिलने नहीं जा सकीं. उन्होंने अपने बेटे मोहन को दिल्ली भेजा है.

उनकी बेटी पूनम ने महज़ एक दिन पहले दसवीं की परीक्षा पास की है. उसे यह रिज़ल्ट सुनाने के लिए अपने पापा की रिहाई का इंतजार है. मीना देवी ने मुझसे कहा कि उन्हें अपने पति को देखना है. अब उनके बगैर रह पाना मुश्किल हो रहा है. अगर पहले से पता होता कि परदेस (अफगानिस्तान) में ऐसी घटना होगी, तो उन्हें जाने ही नहीं देते.

रोती रहती हैं हुलास महतो की मां-बहन

अफ़ग़ानिस्तान में अगवा हुलास महतो का घर महूरी गांव में है. यहां उनकी मां डेलिया देवी अपने परिवार के साथ रहती हैं. उन्होंने बताया कि हुलास ने अपनी बहन शीला की शादी के लिए डेढ़ लाख कर्ज़ लिया था.

इसके बाद वे अफ़ग़ानिस्तान चले गए, ताकि ज़्यादा कमाई कर कर्ज़ उतार सकें. अब उनके छोटे-छोटे बच्चे रोज उनकी राह देख रहे हैं. कहते हैं वीडियो काल पर बात कराओ. अब आप ही बताइए, हम कैसे बात कराएं और इन बच्चों को क्या समझाएं.

हुलास महतो की बहन शीला देवी ने बीबीसी से कहा "जुलाई 2016 में मेरी शादी के बाद भैया (हुलास महतो) अफ़ग़ानिस्तान चले गए. ताकि, ज़्यादा पैसा कमा सकें.

मेरी बड़ी बहन की शादी में पापा को खेत बेचना पड़ा था. मेरी शादी में भैया ने खेत नहीं बेचने दिया. कुछ लोगों से उधार लिया और ज़्यादा कमाई के लिए अफ़ग़ानिस्तान चले गए. वापस आने पर अब हमलोग उन्हें विदेश नहीं जाने देंगे.

सैकड़ों लोग हैं विदेश में

प्रवासी ग्रुप के संचालक सिकंदर अली ने बताया कि बगोदर प्रखंड के कई गांवों के सौकड़ों लोग विदेशों में नौकरी करते हैं. उन्होंने बताया कि सिर्फ़ घाघरा और महूरी गांवों के करीब 500 लोग विदेश में हैं. झारखंड सरकार को इन मजदूरों को यहीं रोज़गार उपलब्ध कराने की पहल करनी चाहिए.

क्यों जाते हैं विदेश

बगोदर वेस्ट के मुखिया लक्ष्मण महतो ने बताया कि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण खेती की सीमित मौजूदगी है. कोई उद्योग भी नहीं है कि लोगों को रोज़गार मिले.

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मुखिया लक्ष्मण महतो ने बीबीसी से कहा "जहां सरकारी कर्मचारियों के लिए आठवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशें लागू कर दी गई हैं, वहीं मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक में तीन साल बाद महज़ एक रुपये की वृद्धि की गई है. इस वृद्धि के बाद उन्हें सिर्फ 168 रुपये रोज़ के हिसाब से भुगतान किया जाता है. रोज़ उन्हें काम मिल जाए, इसकी भी गारंटी नहीं है. ऐसे में गांव में रहकर कोई क्यों भूखे मरे."

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English summary
Where are the abducted Indian laborers in Afghanistan
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